मिर्ज़ा ग़ालिब Best Shayari

1. दिल में, जौके वस्ल यादे-यार तक बाकी नही,
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया
दिल नही, तुझ को दिखाता वरनः दागो की बहार,
इसे चराग। का करू क्या, कारफरमा जल गया

2. बू-ए-गुल नाल-ए दिल, दूदे चरागे महफिल, जो तेरी बजम से निकला सो परीशा निकला
थी नौआमोज फना, हिम्मते दुशवार-पसद, सख्न मुश्किल है कि यह काम भी आासा निकला
दिल किर गिरियः ने इक शोर उठाया 'गालिब
आह जो कतर न निकला था, सो तुफा निकला

3.था जिन्दगी मे मौत का खटका लगा हुआ,
उडने पहले भी तो मेरा रंग जर्द था
जाती है कोई कशमकश अदोहे इश्क की,
दिल भी अगर गया, तो वही दिल का दर्द था

4.महरम नही है तू ही नवाहाए-राज का,
या वरन जो हिजाव है, पर्द है साज का
रगे शिकस्त. रावहे वहारे नजारः है,
यह वक्त है शिगुफ्तने गुलहाए नाज का

5.वस कि दुश्वार है, हर काम का आसा होना,
आदमी को भी मुयस्सर नही, इनसा होना

6. हवस को हे निशाते कार क्या क्या,
ने हो मरना तो जीने का मजा क्या.

7.न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता, तो खुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता.
हुआ जब गम से यू बेहिस, तो गम क्या सर के कटने का,
न होता गर जुदा तन से, तो जानू पर धरा होता

8.हुई ताखीर', तो कुछ बाइसे ताखीर भी था,
आप आते थे, मगर कोई हमागीर भी था
रेख्ती' के तुम्ही उस्ताद नही हो, गालिब',
कहते है, अगले जमाने मे कोई 'मीर' भी था

9. न गुल-ए-नगम हूँ न परदः-ए-साज
मै ह अपनी शिकस्त की आवाज.
मुझ को पूछा, तो कुछ गजब न हुआ,
मैं गरीब और तू गरीब नवाज

10..... आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक,
कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होने तक.

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