Next Page (अहमद फ़राज़ Best gazals)

11.   रख दिया

उसने सुकुब शब में भी अपना पयाम रख दिया,
हिज्र की रात बाम ओर माहे तमाम रख दिया।
आमदे दोस्त की नवेद कुए ए वफ़ा में गर्म भी,
मैंने भी इक चराग सा दिल सरे शाम रख दिया।
शिदतें तिशनगी में भी गैरत मयकशी रही,
उसने जो फेर ली नजर मैंने भी जाम रख दिया।
उसने नजर नजर में ही ऐसे भले सुखन कहे,
मैंने तो उसके पांव में सारा कलाम रख दिया।
देखो ये मेरे ख्वाब थे देखो ये मेरे जख्म हैं,
मैंने तो सब हिसाबे जां बर सरे आम रख दिया।
अब के बहार ने भी कीं ऐसी शरारतें की बस,
कबरे  दरी की चाल में तेरा खिराम रख दिया।
जो भी मिला उसी का दिल हल्का बगोशे यार था,
उसने तो सारे शहर को करके गुलाम रख दिया।
और फ़राज़ चाहिये कितनी मुहब्बतें तूझे,
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया।

12. भली एक शक्ल थी

भले दिनों की बात है
भली सी एक शक्ल थी
न ये की हुस्न ताम हो,
न देखने में आम सी।

न ये की वो चले तो कहकशा सी रहगुजर लगे,
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफर लगे।

कोई भी रुत हो उसकी छब
फ़ज़ा का रंग रुप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी।

न ऐसी खुश लिबसियां,
की सादगी गिला करे
न इतनी बेतल्लुफी
की आईना हया करे।

न आशिकी जुनून की,
की जिंदगी अजाब हो,
न इस कदर कठोरपन
की दोस्ती खराब हो।

सी एक रोज क्या हुआ
वफ़ा वे बहस छिड़ गई,
मैं इश्क को अमर कहूँ
वो मेरी जिद से चिढ़ गई।

मैं इश्क का असीर था,
वो इश्क को कफ़स कहे
की उम्र भर के साथ को
वो बदतर अज हवस कहे।

तुम्हारी सोच जो भी हो,
मैं उस मिजाज की नहीं,
मूझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज कि नहीं।

सो अपना अपना रास्ता
हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया

भली सी एक शक्ल थी,
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन
नहीं मगर कभी कभी।


13. अच्छी लगी
 हिज्र जानॉ की घड़ी अच्छी लगी,
अब के तन्हाई बड़ी अच्छी लगी।
करिय ए जॉ पर उदासी की तरह,
धुंध की चादर पड़ी अच्छी लगी।
एक तन्हा फाख्ता उड़ती हुई,
एक हिरन की चौकड़ी अच्छी लगी।
जिंदगी की धूप अंधेरी रात में 
याद की इक फुलझड़ी अच्छी लगी।
शहरे दिल और इतने लोगों का हुजम,
वो अलग सबसे खड़ी अच्छी लगी।
एक शहजादी मगर दिल की फकीर,
उस को मेरी झोंपड़ी अच्छी लगी।
दिन में आ बैठी गजल सी वो गीजाल,
ये तसव्वुर सी घड़ी अच्छी लगी।
तेरा दुःख अपनी वफ़ा कारें जहाँ,
जो भी शे महंगी पड़ी अच्छी लगी।
आंख भी बरसी बहुत बादल के साथ,
अब के सावन की झड़ी अच्छी लगी।
ये गजल मुझको पसन्द आई फ़राज़,
ये गजल उसको बड़ी अच्छी लगी।


14.  वो तेरी तरह कोई थी।

यूँ ही दोश पर सम्भालें
घनी जुल्फ़ के दुशाले
वही सावली सी रंगत
वही नैने नींद वाले

वही मन पसन्द कामत
वही खुशनुमा सरापा।
जो बदन में नीम-ख्वाबी
तो लहुँ में रंग जगा सा।

कभी प्यास का समंदर
कभी आस का जजीरा
वहीं मेहरबान लहजा
वहीं मेजबान वतीरा।

तुझे शाइरी से रहबत
उसे शेर याद मेरे
वही उसके भी करीने
जो है खास तेरे।

किसी और ही सफर में,
सरे राह मिल गई थी।
तुझे ओर क्या बताऊँ,
वो तेरी तरह कोई थी।

किसी शहरे बे अमा में,
मैं वतन बदर अकेला
कभी मौत का सफर था
कभी जिंदगी से खेला।

मेरा जिस्म जल रहा था,
वो घटा का सायबान थी
मैं रिफ़ाक़तों का मारा,
वो मेरी मिजाज दा थी।

मुझे दिल से उसने पूजा,
उसे जां से मैंने चाहा,
इसी हमराही में आखिर
कहीं आ गया दोराहा।

यहां गुमराही के इमकान,
उसे रंगों बु का लपका
यहां लग्जिशों के सामां
उसे ख़्वाइशों ने थपका।

यहां दाम थे हजारों,
यहां हर तरफ कफ़स थे
कहीं जर जमीं का दलदल
कहीं जाल थे हवस के।
वो फ़ज़ा की फाख्ता थी,
वो हवा कि राजपुत्री
किसी घाट को न देखा
किसी झील पर न उतरी।

फिर इक ऐसी शाम आई,
की वो शाम आखिरी थी
कोई जलजला सा आया,
कोई बर्क सी गिरी थी।

अजब आंधियां चलीं फिर
की बिखर गए दिलोँ जान
न कहीं गुले वफ़ा था
न चराग अहदों पैमा।

वो जहाज उतर गया था,
ये जहाज उतर रहा है
तेरी आँख में है आँसू
मेरा दिल बिखर रहा है।

तू जहां मुझे मिली है
वो यहीं जुदा हुई थी
तुझे और क्या बताऊँ
तो तेरी तरह कोई थी।

15. बरसों के बाद देखा

बरसों के बाद देखा इक शख्श दिलरुबा सा,
अब जेहन में नहीं है और नाम था भला सा।
अबरू खिंचे-खिंचे से आंखें झुकी झुकी सी,
बातें रूकी रुकी सी लहजा थका थका सा।
अल्फाज थे कि जुगनू आवाज के सफर में,
बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा।
ख्वाबों में ख्वाब उसके यादों में याद उसकी,
नींदों में घुल गया हो जैसे कि रतजगा सा।
पहले भी लोग आए कितने ही जिंदगी में,
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा।
अगली मोहब्बतों ने वो  नामुरादियाँ दीं,
ताजा रिफ़ाक़तों से दिल था डरा-डरा सा।

16. मैने आगाज से

मैंने आगाज से आजामें सफर जाना है,
सबको दो चार कदम चलके ठहर जाना है।
गम तो सजरा ए तमन्ना की बगुले कि तरह,
जिसको मंजिल न मिली उसको बिखर जाना है।
तेरी नजरों में मेरे दर्द की कीमत क्या थी,
मेरे दामन ने तो आंसू को गुहर जाना है।
अब के बिछड़े तो न पहचान सकेंगे चेहरे,
मेरी चाहत तेरे पिनदार को मर जाना हैं।
जाने वाले को न रोको की भरम रह जाए,
तुम पुकारो भी तो कब उसको ठहर जाना है।
तेज सूरज में चले आते हैं मेरी जानिब,
दोस्तों ने मुझे सहरा का शजर जाना है।
जिंदगी को भी तेरे दर भिखारी की तरह,
एक पल के लिये रुकना है गुजर जाना है।
अपनी अफसुरदा मिजाजी का बुरा हो कि फ़राज़,
आकेज कोई भी हो आंख को भर जाना है।

17. की तुम हो

जिस सम्त भी देखूं नजर आता है कि तुम हो,
ऐ जाने जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो।
ये ख्वाब है खुशबू है कि झोंका है कि पल है,
ये धुंध है बादल है कि साया है कि तुम हो।
इस दीद की साअत में कई रंग है लरजां,
मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो।
देखो ये किसी और की आंखे है कि मेरी,
देखूं ये किसी ओर का चेहरा है कि तुम हो।
ये उम्र गुरेजा कहीं ठहरे तो ये जानू,
सर सांस में मुझको यही लगता है कि तुम हो।
हर वज्म में मोजू ए सुखन दिले जदगा का,
अब कौन है शीरी है कि लैला है कि तुम हो।
एक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ,
इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो।
वो वक्त न आए कि दिले-जार भी सोचे,
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो।
आबाद हम आशुफ्ता सरों से नहीं मकतल,
ये रस्म भी उस शहर में जिंदा है की तुम हो।
ऐ जाने फ़राज़ इतनी भी तौफीक किसे थी,
हम को गमें हस्ती भी गवारा है कि तुम हो।

18.     आईना

तूझसे बिछड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना खयाल,
एक कतरा भी नहीं बाकी की हों पलकें तो नम।
मेरी आँखों के समंदर कौन सहरा पी गए,
एक आंसू को तरसती है मिरी तरकरिबे गम।
मैं न रो पाया तो सोचा मुस्कुरा कर देख लूं
शायद इस बेजान में कोई जिंदा हो ख्वाब।
पर लबों के तन बरहना शाखचों पर अब कहाँ
 मुस्कुराहट के शगूफे खंद ए दिल के गुलाब।
कितना वीरां हो चुका है मेरी हस्ती का जमाल,
तझसे बिझड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना ख्याल।

19. वही इश्क़ जो था

वही इश्क जो था कभी जुनू उसे रोजगार बना दिया।
कहीं जख्म बेच के आ गए कहीं शेर कोई सुना दिया।
वही हम की जिन को अजीज थी दरे आबरू की चमक दमक,
यहीँ हम की रोजे सियाह में जरे दाग दिल भी लुटा दिया।
कभी यूँ थी था कि हजार तीर जिगर में थे तो दुखी न थे।
मगर अब ये है किसी मेहरबां के तपाक ने भी रुला दिया।
कभी खुद को टूटते फूटते भी जो देखते जो हजी ने थे,
मगर आज खुद पे नजर पड़ी तो शिकस्त जॉ ने हिला दिया।
कोई नामा दिलबरे शहर का की गजल गरी का बहाना हो,
वही हर्फ़ दिल जिसे मुद्दतों से हम अहलें दिल ने भुला दिया।

20.. जिंदगी से यही मिला है

जिंदगी से यहीं मिला है मुझे,
तू बहुत देर से मिला है मुझे।
तू मुहब्बत से कोई चाल तो चल,
हार जाने का हौसला है मुझे।
दिल धड़कता नहिं तपकता है,
कल जो ख्वाईश थी आबला है मूझे।
हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं,
इक मुसाफिर भी काफला है मुझे ।
कोहकन हो कि कैस हो कि फ़राज़,
सब में इक शख्श ही मिला है मूझे।।

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