21.हमने पत्थर दिया
हमने माँगा फूल लेकिन अपने पत्थर दिया,
एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया।
फितरतन जो लोग थे बिजली के नंगे तार-से,
हमने अनजाने में उन पर हाथ अपना धर दिया।।
होठ,ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
होठ ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
घर के मालिक ने ना जाने किस व्यवस्था के तहत,
लेटने की बैठक दी,बैठने को घर दिया।
नायकों को छोड़कर,हर बार जोकर ही चुने,
इस तरह अपनी हँसी को मोल हमने भर दिया।
अब भी हम आदिम गुफाओं से निकल पायँ नहीँ,
हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया।
अपने अंदर का अँधेरा और भी गहरा गया,
जब कभी हमने जलाया दोस्तो बाहर दिया।।
22.जन्म से मरण तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।।
आँख गीली,होठ ठंडे और दिल में आँधियाँ,
तीन मौसम एक ही संग ओढ़ता है आदमी।
सुबह पलना,शाम अरथी और खटिया दोपहर,
तीन लकड़ी यार दिन में तोड़ता है आदमी।
एक रोटी,दो लँगोटी,तीन गज कच्ची जमीन,
तीन चीजें जिंदगी भर जोड़ता है आदमी।
है यहाँ विश्वाश कितना आदमी का मौत पर,
मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी।।
23. तेरी जावेद जिंदगी के
तेरी जावेद जिंदगी के लिए,
तेरे फूलों की ताजगी के लिए,
तेरी राहत तेरी ख़ुशी के लिए,
तेरी महफ़िल की रौशनी के लिए,
आज हम अपना दिल जलाते है।''
कर के तामीर प्यार की महफ़िल,
वो सुनाते है किस्सा-ए-मुहमिल
बारहा पूछते है हाले दिल
कत्ल करने से पेश्तर कातिल,
कितनी हमदर्दीया जताते है।।
24. यूँ तो सब
यूँ तो सब आदमी है,मगर
आदमी आदमी मेँ बड़ा फर्क है,
मय नहीं न सही जहर क्यों पीजिये,
मौत में खुदखुशी में बड़ा फर्क है।
यह मेरी ज़िंदगी वह तेरी ज़िन्दगी,
जिंदगी जिंदगी में बड़ा फर्क है।
तेरे शेरों ने सरशार समझा दिया,
शायरी शायरी में बड़ा फर्क है।।
25.निकलने दो
अभी तुम मशरिक उम्मीद से सूरज निकलने दो,
सवेरा हो जायेगा रात को ढलने दो।
न आंच आए कभी ऐ बिजलियों!सहने गुलिस्तां पर
बला से आशियाँ मेरा अगर जलता है जलने दो।
सबिहे जिंदगी में रंग भरने से जरा पहले,
हमें हर खद्धों खालें जिंदगानी को बदलने दो।
न रोको इनके रस्ते रहबरो!रहो मुहब्बत में,
जिन्हें चलने आदत हो गई है उनको चलने दो।
दिखा देंगे हम भी की जीना किसको कहते है,
अंधेरी रात में जख्मी,जिगर के दाग जलने दो।।
26. सी लगे
मयगुसरों में दुश्मनी सी लगे
शेख के जफ में कमी सी लगे।
साथ है एक उम्र से फिर भी,
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे।
जिसपे साया है तेरी जुल्फों का,
तीरगी भी वह रौशनी सी लगे।
इश्क का हर कदम गहरा गुजरे,
हुस्न की हर अदा भली सी लगे।
रूठकर आप क्या गए मुझसे,
मुझकों दुनियां तहि तहि सी लगे।
हैं कुछ ऐसे भी बुलहवस जिनको,
दिल लगाना भी दिल्लगी सी लगे।
है मकीं कौन खाना-ए-दिल में,
शक्लों सूरत तो आपकी सी लगे,
उस सितमगर से क्या मिला आतिश,
दुश्मनी जिसकी दोस्ती सी लगे।।
27. नजर से
फिजायें मुस्कुराई फूल बरसें,
नजर जब मिल गई उनकी नजर से।
बना जाते है वीरानों को गुलशन,
गुजर जाते है दीवाने जिधर से।
बजाते खुद नाजरों के अमीन हैं,
नजर वह क्या जो नाजज्जरों को तरसे,
मेरा दिल हे मुहब्बत का मदीना,
इसे देखोंल मुहब्बत की नजर से।
परेशां से नजर आते है वो भी,
मीरे हाले परेशां के असर से,
फिजायें आज तक महकी हुई हैं,
हुई मुद्दत वो गुजरे थे इधर से।
मुहब्बत का सहारा ले के अखगर
गुजर जा जिंदगी की रहगुजर से।।
28. मिटा मुझे ने सकी
मिटा मुझे न सकी गर्दिशे जमाने की,
हजार कोशिशें करती रहीं मिटाने की,
जो जिनके क़दमों पे में जिन्दगी लुटा बैठा
वो बात करते हैं अब मेरे आजमाने की।
मैं उनकी राह में आँखें बिछाये बैठा हूँ।
जो खाये बैठे हैं कस्में इधर न आने की
मिटा दे देंरों हरम के ये फासले यारब
कोई जगह तो मिले हमको सर झुकाने की।।
29. आईना देखने से
आईना देखने से डरती है
जिंदगी हब्शियों की लड़की है
काँप उठते है मंदिरों के कलश,
जब वह बन ठन कर घर से निकलती है।
जहर पीते है रोजों शब जो लोग,
गम की डाईन उन्ही से डरती है।
अप्सराओं के नाच होते हैं,
जब हवा जंगलों में चलती हैं।
ऐसी क्या बात है मेरे खुन में,
गम की नागिन मुझे ही डसती है।
30. नाज
क्या कहूँ किस तौर से सूरत थी वो पाली हुई,
या किसी शायर के रंगीन ख्वाब में ढाकी हुई।
जुल्फ बल खाती हुई पर्वत पै जैसे हो घटा,
और सन्दल के शजर से सांप हो लिपटा हुआ।
क्या सुराहीदार गर्दन मदभरा वो जाम था,
पैकर ए हुस्न ओ अदा, गुल रुख था गुल अदाम था।
हुस्न की गर्मी से वो रुखसार क्या दहके हुए,
सुखी ए शर्म ओ हया से ओर भी महके हुए।
लाला जारों से कहीँ बड़ कर थे गालों के गुलाब,
कमसिनी पर आ रहा था झूमता गाता शबाब।
कहने से होती थी उसके सुबह भी और शाम भी,
उसके रुकने से थी रूकती गर्दिशे आययाम भी।
चाँद की चांदनी गोया सरापा नूर का,
और दोशीज़ा के कालिज में था पैकर हुर का।
हमने माँगा फूल लेकिन अपने पत्थर दिया,
एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया।
फितरतन जो लोग थे बिजली के नंगे तार-से,
हमने अनजाने में उन पर हाथ अपना धर दिया।।
होठ,ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
होठ ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
घर के मालिक ने ना जाने किस व्यवस्था के तहत,
लेटने की बैठक दी,बैठने को घर दिया।
नायकों को छोड़कर,हर बार जोकर ही चुने,
इस तरह अपनी हँसी को मोल हमने भर दिया।
अब भी हम आदिम गुफाओं से निकल पायँ नहीँ,
हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया।
अपने अंदर का अँधेरा और भी गहरा गया,
जब कभी हमने जलाया दोस्तो बाहर दिया।।
22.जन्म से मरण तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।।
आँख गीली,होठ ठंडे और दिल में आँधियाँ,
तीन मौसम एक ही संग ओढ़ता है आदमी।
सुबह पलना,शाम अरथी और खटिया दोपहर,
तीन लकड़ी यार दिन में तोड़ता है आदमी।
एक रोटी,दो लँगोटी,तीन गज कच्ची जमीन,
तीन चीजें जिंदगी भर जोड़ता है आदमी।
है यहाँ विश्वाश कितना आदमी का मौत पर,
मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी।।
23. तेरी जावेद जिंदगी के
तेरी जावेद जिंदगी के लिए,
तेरे फूलों की ताजगी के लिए,
तेरी राहत तेरी ख़ुशी के लिए,
तेरी महफ़िल की रौशनी के लिए,
आज हम अपना दिल जलाते है।''
कर के तामीर प्यार की महफ़िल,
वो सुनाते है किस्सा-ए-मुहमिल
बारहा पूछते है हाले दिल
कत्ल करने से पेश्तर कातिल,
कितनी हमदर्दीया जताते है।।
24. यूँ तो सब
यूँ तो सब आदमी है,मगर
आदमी आदमी मेँ बड़ा फर्क है,
मय नहीं न सही जहर क्यों पीजिये,
मौत में खुदखुशी में बड़ा फर्क है।
यह मेरी ज़िंदगी वह तेरी ज़िन्दगी,
जिंदगी जिंदगी में बड़ा फर्क है।
तेरे शेरों ने सरशार समझा दिया,
शायरी शायरी में बड़ा फर्क है।।
25.निकलने दो
अभी तुम मशरिक उम्मीद से सूरज निकलने दो,
सवेरा हो जायेगा रात को ढलने दो।
न आंच आए कभी ऐ बिजलियों!सहने गुलिस्तां पर
बला से आशियाँ मेरा अगर जलता है जलने दो।
सबिहे जिंदगी में रंग भरने से जरा पहले,
हमें हर खद्धों खालें जिंदगानी को बदलने दो।
न रोको इनके रस्ते रहबरो!रहो मुहब्बत में,
जिन्हें चलने आदत हो गई है उनको चलने दो।
दिखा देंगे हम भी की जीना किसको कहते है,
अंधेरी रात में जख्मी,जिगर के दाग जलने दो।।
26. सी लगे
मयगुसरों में दुश्मनी सी लगे
शेख के जफ में कमी सी लगे।
साथ है एक उम्र से फिर भी,
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे।
जिसपे साया है तेरी जुल्फों का,
तीरगी भी वह रौशनी सी लगे।
इश्क का हर कदम गहरा गुजरे,
हुस्न की हर अदा भली सी लगे।
रूठकर आप क्या गए मुझसे,
मुझकों दुनियां तहि तहि सी लगे।
हैं कुछ ऐसे भी बुलहवस जिनको,
दिल लगाना भी दिल्लगी सी लगे।
है मकीं कौन खाना-ए-दिल में,
शक्लों सूरत तो आपकी सी लगे,
उस सितमगर से क्या मिला आतिश,
दुश्मनी जिसकी दोस्ती सी लगे।।
27. नजर से
फिजायें मुस्कुराई फूल बरसें,
नजर जब मिल गई उनकी नजर से।
बना जाते है वीरानों को गुलशन,
गुजर जाते है दीवाने जिधर से।
बजाते खुद नाजरों के अमीन हैं,
नजर वह क्या जो नाजज्जरों को तरसे,
मेरा दिल हे मुहब्बत का मदीना,
इसे देखोंल मुहब्बत की नजर से।
परेशां से नजर आते है वो भी,
मीरे हाले परेशां के असर से,
फिजायें आज तक महकी हुई हैं,
हुई मुद्दत वो गुजरे थे इधर से।
मुहब्बत का सहारा ले के अखगर
गुजर जा जिंदगी की रहगुजर से।।
28. मिटा मुझे ने सकी
मिटा मुझे न सकी गर्दिशे जमाने की,
हजार कोशिशें करती रहीं मिटाने की,
जो जिनके क़दमों पे में जिन्दगी लुटा बैठा
वो बात करते हैं अब मेरे आजमाने की।
मैं उनकी राह में आँखें बिछाये बैठा हूँ।
जो खाये बैठे हैं कस्में इधर न आने की
मिटा दे देंरों हरम के ये फासले यारब
कोई जगह तो मिले हमको सर झुकाने की।।
29. आईना देखने से
आईना देखने से डरती है
जिंदगी हब्शियों की लड़की है
काँप उठते है मंदिरों के कलश,
जब वह बन ठन कर घर से निकलती है।
जहर पीते है रोजों शब जो लोग,
गम की डाईन उन्ही से डरती है।
अप्सराओं के नाच होते हैं,
जब हवा जंगलों में चलती हैं।
ऐसी क्या बात है मेरे खुन में,
गम की नागिन मुझे ही डसती है।
30. नाज
क्या कहूँ किस तौर से सूरत थी वो पाली हुई,
या किसी शायर के रंगीन ख्वाब में ढाकी हुई।
जुल्फ बल खाती हुई पर्वत पै जैसे हो घटा,
और सन्दल के शजर से सांप हो लिपटा हुआ।
क्या सुराहीदार गर्दन मदभरा वो जाम था,
पैकर ए हुस्न ओ अदा, गुल रुख था गुल अदाम था।
हुस्न की गर्मी से वो रुखसार क्या दहके हुए,
सुखी ए शर्म ओ हया से ओर भी महके हुए।
लाला जारों से कहीँ बड़ कर थे गालों के गुलाब,
कमसिनी पर आ रहा था झूमता गाता शबाब।
कहने से होती थी उसके सुबह भी और शाम भी,
उसके रुकने से थी रूकती गर्दिशे आययाम भी।
चाँद की चांदनी गोया सरापा नूर का,
और दोशीज़ा के कालिज में था पैकर हुर का।
31. कल चौदहवी की रात
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा यह चाँद है कुछ ने कहा चेहरा है तेरा।
हम भी वहीं मौजूद थे हमसे भी सब पूछा किए,
हम हंस दिए हम चुप रहे मंजूर था पर्दा तेरा।
इस शहर में किस से मिलें हमसे न छुंटी महफिलें,
हर शख्स तेरा नाम ले हर शख्स दीवाना तेरा।
तू बावफ़ा तू महरबान हम और तूझसे बदगुमां?
हमने तो पूछा था जरा यह वस्फ क्यों ठहरा तेरा।
कुचे को तेरे छोड़कर जोगी न बन जाएं मगर,
जंगल तेरे पर्वत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा।
हम पर ये सख्ती की नजर?हम हैं फकीर रहगुजर,
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा?
हाँ हाँ तिरी सूरत हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
उस शख्स के अश्आर से शुहरा हो क्या क्या तेरा।
बेदर्द सुन्नी हो तो चल कहता है क्या अच्छी गजल,
आशिक तेरा रुस्वा तेरा शायर तेरा इंसां तेरा।
32. कर दे
मिरे खुदा मूझे इतना तो मोतबर कर दे,
मैं जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे।
ये रोशनी के तआकुब में भागता हुआ दिन,
जो थक गया है तो अब उसको मुख्तसर कर दे।
मैं जिंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत,
जो हो सके तो दुआओं की बेअसर कर दे।
सितारा ए सहरी डूबने को आया है,
जरा कोई मेरे सूरज को बाख़बर कर दे।
कबीला वार कमानें कड़कने वाली हैं,
मेरे लहुँ की गवाही मुझे निडर कर दे।
मैं अपने ख्वाब से कटकर जियूँ तो मेरा खुदा,
उजाड़ दे मेरी मिट्टी को दर बदर कर दे।
मेरी जमीन मेरा आखिरी हवाला है,
सो मैं रहूं न रहूं इसको बारवर कर दे।
33. चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल,
एक तू ही धनवान है गौरी बाकी सब कंगाल।
हर आँगल ने सजे न तेरे उजले रूप की धूप,
छैल छःबिलि रानी थोड़ा घूँघट और निकाल।
भर भर नजरें देखें तुमको आते जाते लोग।
देख तुझे बदनाम न कर दे यह हिरनी सी चाल।
कितनी सुन्दर नार हो कोई मैं आवाज न दूँ,
तुझ से जिसका नाम नहीं है वह जी का जंजाल।
सामने तू आए तो धड़के मिलकर लाखों दिल,
अब जाना धरती और कैसे आते हैं भूचाल।
बीच में रंगमहल है तेरा खाई चारों ओर,
हमसे मिलने की अब गोरी तू ही राह निकाल।
कर सकते हैं चाह तिरी अब सरमद या मंसूर,
मिले किसी को दार यहाँ और खिंचे किसी की खाल।
आज की रात भी है कुछ भारी लेकिन यार क़तील,
तूने हमारा साथ दिया तू जिये हजारों साल।
34. सजा ले मुझको
अपने हांथों की लकीरों में सजा ले मुझको,
में हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मैं जो कांटा हुँ तो चल मुझसे बचाकर दामन,
मैं हूं गर फूल तो जुड़े में सजा के मुझको।
मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामां प्यारे,
तू दबे पांव कभी आके चुरा के मुझको।
तर्के उल्फत की कसम भी कोई होती है कसम,
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी,
यह तेरी सादादिली मार न डाले मुझको।
मैं समंदर भी हुँ मोती भी हूँ गोताजान भी,
कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको।
तूने देखा नहीं आईना से आगे कुछ भी,
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गवां ले मुझको।
कल की बात और है,मैं अब सा रहूं या न रहूँ।
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको।
बाधकर संगे वफ़ा कर दिया तू ने गरकाब,
कोन ऐसा है जो अब ढूंढ निकाले मुझको।
खुद को मैं बाँट न लूं कहीं दामन दामन,
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
बादा फिर बादा है मैं जहर भीपी जाऊं क़तील,
शर्त यह है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।।
35. जब रात जाके
जब रात जाके दूर उजालों में खो गई,
हर सोच थकके जेहन के अंदर ही सो गई।
अंदाज अजनबी था न लहजा उदास था,
कुछ बात ऐसी थी कि बस आँखे भिगो गई।
सब सूरतें बुझे हुए साए में ढल गई,
अब घर चलो की बहुत शाम हो गई।।
वो था करीब बहुत फिर भी जरा दुरियाँ के साथ,
इक लहर आके फासले इतने भी धो गई।
36. चांदनी रात में
चांदनी रात में कुछ फीके सितारों की तरह,
याद मेरी है वहां,गुजरी बहारों की तरह।
जज्ब होती रही हर बूंद मेरी आँखों में,
बात करता रहा वह हल्की फुहारों की तरह।
ये बयबा सही तन्हा तो यहां कुछ भी नहीं,
दूर तक फैले हैं साय भी चिनारों की तरह।
बार बस इतनी है इस मोड़ पे रास्ता बदला,
दो कदम साथ चला,वह भी हजारों की तरह।
कोई ताबीर नहीं कोई कहानी भी नहीं,
मैंने तो ख्वाब भी देखे है नजरों की तरह।
बादबा खोले जो मैने तो हवाएं पलटी,
दूर होता गया एक शख्स किनारों की तरह।
फातिमा तेरी खमोशी को भी समझा है कभी,
वह जो कहता रहा हर बात इशारों की तरह।।
37. पानी की तरह
पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा
या फिर तू धुआं बन के खलाओ में बिखर जा।
लहरा किसी छनकार पे ओ मोत हवा के,
सूखे हुए पत्तों से दबे पांव गुजर आ।
चढ़ती हुई इस धूप में साया तो ढलेगा,
एहसास कोई रेत की दीवार पे धर जा।
बुझती हुए इक शब का तमाशाई हूँ मैं भी,
ऐ सुबह के तारे मेरी पलकों पे ठहर जा।
लहरायेगा आकाश पे सदियां तेरा पैकर,
इक बार मेरी रूह के सांचे में उतर जा।
इस बन में रह करती है परछाई सदा की,
ऐ रात के राही तू जरा तेज गुजर जा।
उस पार चला है तो रशीद अपना असासा,
बेहतर है किसी आंख की दहलीज पे धर जा।
38.दिले हर कुष्ण
दिले हर कृष्ण ने अर्जुन को जीता,
वफ़ा हर दौर में लिखती है कविता।
मिलेंगे अब भी बनबासी हजारों,
नहीं किस राम के सीने में सीता।
जनम सागर में अमृत के बजाए,
जो शिव होता तो अब भी जगर पीता।
हवस को बस्ता ए जंजीरे गम रख,
खुला मत यह खूंखार चिता।
पुजारी हूँ मैं जिस देवी का सहबा,
उसी का दान है ये मेरी कविता।।
39. हम आप कयामत से
हम आप कयामत से गुजर क्यों नहीं जाते,
जीने की शिकायत है तो मर क्यों नहीं जाते ।
कतराते है बल खाते है घबराते है क्यों लोग,
सर्दी है तो पानी में उतर क्यों नहीं जाते।
आंखों में चमक है तो क्यों नहीं आती,
पलकों पे गुहर है तो बिखर क्यों नहीं जाती।
ये बात अभी मुझको भी मालूम नहीं है,
पत्थर इधर आते है उधर क्यों नहीं जाते।
तेरी ही तरह अब ये तेरे हिर्ज के दिन भी,
जाते नजर आते है मगर क्यों नहीं जाते।
अब याद कभी आये तो आईने से पूछो,
महबूब खिजां शाम को घर क्यों नहीं जाते।।
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