41.क्या कहिए कि इस अहद में क्या क्या देखा,
उठता हुआ उल्फत का जनाजा देखा।
बेदर्दी ए अगयार का शिकवा है फजूल,
अहबाब को भी खून का प्यासा देखा।।
42.खुदा तक मैं किसी बूत का सहारा लेकर पहुंचा हूँ,
की तूफान में समंदर का किनारा ले के पहुंचा हूँ।
तुम्हें मौजों से डर है और मेरा तजरुबा यह है,
की मैं साहिलों पे मौजों का सहारा लेके पहुंचा हूँ।।
43.जो भूक के मारे पे रवा है ही नहीं,
ऐसा कोई जोर और जफ़ा है ही नहीं,
लब बन्द है जिसके उसे मिलती है सजा,
मजदूर का जैसे की खुदा है ही नही।।
44.अपना चराग आप बुझाता भी कौन है,
अपने ही घर को आग लगाता भी कौन है।
सुनते तो है कि कोई नहीं सुनता दिल की बात,
सोचों तो दिल की बात बताता भी कौन है।।
45.जब दुआ ही बेअसर हो जाये,
तब जीने वाला किधर जाये।
अपनी मर्जी का जब न हो जीना,
ऐसे जीने से क्यों न मर जाएं।।
46.वक्त को हमने बदलते देखा,
हमने सूरज को ढलते देखा है।
सीधे मुह बात जो ना करते थे,
सर के बल उनको चलते देखा।।
47.ओरों को तो मर्दुदे खुदा कहते है,
और खुद को बरहाल भला कहते है।
जो लोग की रावण से भी बढ़कर है,
हैरत है कि रावण को बुरा कहते है।।
48.मुझ गुमशुदा ए होश कि परवान न करें आप,
इस हुस्न को सफें गमें बेजा न करें आप,
उम्मीद त्तड़प उठती है टूटे हुए दिल में,
जाते हुए मुड़कर मुझे देखा न करें आप।।
49.भीगा कागज है जिंदगी मेरी,
पिछली बातें लिखीं नहीं जाती,
ऒर यह भी अजीब मुश्किल है
ताजा बातें लिखीं भी नहीं जाती।।
50.वो पूछे की मातम किसका है,
कहना तेरी आँखों का काँटा गया,
बारी उसकी थी मगर उसकी जगह,
मैं बलि के वास्ते छांटा गया।।
51.न सूरत न उसकी अदा देखते है,
नहीं हम वफ़ा या जफ़ा देखते हैं,
समाया है आँखों में बस नूरे वहदत
हसीनों में हम तो खुदा देखते हैं।
52.मौजों में उतरने का सलीका सीखो,
तूफान में उभरने का सलीका सीखो।
मरना है तो फिर मौत से डरना कैसा
जीना है तो मरने का सलीका सीखो।।
53.चेहरों के खुदो खाल का मंजर नहीँ देखा,
तुमने कभी आइनों के अंदर नहीं देखा,
ऐ दस्ते तलब सर न अना का कहीँ झुक ना जाए,
मैंने कभी हसीनाओं को मुड़कर नहीं देखा।।
54.तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते हैं,
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
हर अजनबी हमें मरहम दिखाई देता है,
जो अब भी तेरी गली से गुजरने लगते हैं।
55.दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए गम आते हैं,
जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं।
एक इक करके हुए जाते हैं तारे रौशन,
मेरी मंजिल की तरफ तेरे कदम आते हैं।
56.कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में हात नहीं,
सद-शुक्र की अपनी रातों में अब हिर्ज की कोई रात नहीं।
गर बाजी इश्क की बाजी है जो चाहो लगा दो डर कैसा,
गर जीत गए तो क्या कहना,हारे भी तो बाजी मात नहीं।
57. मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तूने तो जाके जुदाई मेरी किस्मत कर दी।
मुझको दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है,
तेरी उल्फत ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी।
58.क्या जमाना था कि हम रोज मिला करते थे,
रात भर चांद के हमराह फिरा करते थे।
देखकर जो हमें चुपचाप गुजर जाता है,
कभी उस शख्स को हम प्यार किया करते थे।
59.रास्ता देखने वाली आंखों के अनहोने ख्वाब,
प्यास में भी दरियाओं जैसी बातें करते हैं।
खुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं,
फिर भी लोग खुदाओं जैसे बातें करते हैं।
60.बादबां खुलने से पहले का इशारा देखना,
मैं समंदर देखती हूँ तुम किनारा देखना।
यूँ बिछड़ना भी यूँ तो आसां न था उससे मगर,
जाते जाते उसका वो मुड़कर दोबारा देखना।
61.मैं टूटकर उसे चाहूँ यह इख़्तियार भी हो,
समेत लेगा मुझे इसका एतबार भी हो।
नई रुतों में वह कुछ और भी करीब आए,
गई रुतों का सुलगता सा इंतजार भी हो।
62.मैं तेरी आंख से ढलना हुआ इक आंसू हूँ,
तू अगर चाहे,बिखरने से बचा ले मुझको।
सुबह से शाम हुई रूठा हुआ बैठा हूँ,
कोई ऐसा नहीं आ कर जो मना ले मुझको।
63.सितम भी करता है,उसका सिला भी देता है,
कि मेरे हाल पे वह मुस्कुरा भी देता है।
शिनवरों को उसी ने डुबो दिया शायद,
जो डुबतों को किनारे लगा भी देता है।
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