Page.1 (मिर्ज़ा ग़ालिब Best Gazals)

11 . ओहदे से मदह - ए - नाज के 
ओह्दे से मद्ह-ए-नाज़ के, बाहर न आ सका,
गर इक अदा हो, तो उसे अपनी कज़ा कहूं

जालिम मिरे गुमा से मुझे मुनफ'बिल न चाह,
हय, हय, खुदा न करदः, तुझे बेवफा कहूं

मेहरबा हो के बुला लो मुझे, चाहो जिस वक्त,
मै गया वक्त नही हू कि फिर आ भी न सकूं

जहर मिलता ही नही मुझ को, सितमगर वरन,
क्या कसम है तिरे मिलने की, कि खा भी न सकू

12‌. हम से खुल जाओ 
हम से खुल जाओ, बवक्त-ए-मै परस्ती एक दिन,
वरन हम छेडॅगे, रख कर 'अुज ए-मस्ती एक दिन

गर्र ए-औजे विना-ए- 'आलम-ए-इम्का न हो
इस वलदी के नसीवो मे है पस्ती, एक दिन.

कर्ज की पीते थे मै, लेकिन समझते थे, कि हा,
रग लाएगी हमारी फाक मस्ती, एक दिन.

नगम हा-ए-गम को भी, ए दिल गनीमल जानिए,
वेसदा हो जाएगा, यह साजे हस्ती, एक दिन

13. हम को सितम  अजीज सितमगर को

हम पर, जफा से तर्क वफा का गुमा नही,
इक छेड़ है, वगरन मुराद इम्तिहा नही.

किस मुह से शुक्र कीजिए, इस लुत्फे खास का,
पुरसिश है और पाए सुखन दरमिया नही.


हम को सितम 'अज़ीज़, सितमगर को हम 'अज़ीज,
नामेह्रवा नही है, अगर मेहरवा नहीं

पाता हूँ दाद उस से कुछ अपने कलाम की,
रूहुल-कुदूस अगरचे, मिरा हमजबा नही.

14. ‌कब से हूं, क्या बताऊ
 

‌कब से हूं, क्या बताऊ, जहाने खराब में,
शवहा- ए-हिज्र को भी रखू गर हिसाब में

ता फिर न इतिजार में नीद आए उम्र भर,
आने का वाद. कर गए, आए जो खूवाब में.

कासिद के आते आते, खत इक और लिख रखू,
में जानता हू, जो वह लिखगे जवाब मे

मुझ तक कब, उन की बज्म में आता था दौरे जाम,
साकी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में

जो मुनकिरे वफा हो, फरेव उस पे क्या चले,
क्यो बदगुमा हु दोस्त से, दुश्मन के बाब मे

में मुज़तरिव हु वस्ल में, खौफे रकीव से,
डाला है तुझ को वहम ने, जिस पेच-ओ-ताब में.

में और हज्जे वस्ल खुदासाज बात हैं,
जा नज्र देनी भूल गया, इज़तिराब मे

है तेवरी चढी हुई, अदर नकाब के,
है इक शिकन पडी हुई, तुर्फे-नकाब में

लाखो लगाव, एक चुराना निगाह का,
लाखो बनाव, एक विगडना 'अिताब में

गालिव' छुटी शराब, पर अब भी, कभी कभी,
पीता हू रोजे अब्र - शबे महताब में

अस्ल-ए-शहूद-ओो-शाहिद-ओ-मशहूद एक है,
हैरा हूं, फिर मुशाहिद. है किस हिसाब में

है गैवे-गीब, जिस को समझते है सम शहद,
है ख्वाव में हनोज़, जो जागे है ख्वाब में

15.किसी को दे के दिल कोई
‌किसी को दे के दिल कोई नवासंज-ए-फूगा क्यो हो
न हो जब दिल ही सीने में, तो फिर मुहु में जबा क्यों हो.

वो अपनी खू न छोडेंगे, हम अपनी वज "अ क्यो  बदलें,
सुबुक-सर हो के कहते है, कि हम से सरगिरा क्यो हो

किया ग़मख्वार ने रुसवा, लगे आग इस मुहब्बत को,
न लावे ताव जो गम की, वह मेरा राज़दा क्यो हो

वफा कैसी, कहा का इश्क,जब सर फोडना ठहरा,
तो फिर ऐ सगेदिल, तेरा ही सगेकास्ता क्यों हो

कहा तुम ने कि, वयो हो गैर के मिलने में रस्वाई,
बजा कहते हो, सच कहते हो, फिर कहिए कि हा क्यो हो


१६.निकाला  चाहता है

निकाला चाहता है काम क्या त नो से ऐ 'गालिव',
तिरे बेमेह्र कहने से, वह तुझ पर मेह्रबा क्यों हो

‌‌कोई उम्मीद बर नही आती,
कोई सूरत नज़र नही आती.

मौत का एक दिन मुअय्यन', हं,
नीद वयो रात भर नही आती

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हसी,
अब किसी बात पर नही आती

जानता हू सवाव-ए-ता'अत-ओ-जोह्द,
पर तबी'अत उधर नही आती.

है कुछ ऐसी ही वात, जो चुप हू
वरन वया बात कर नही आती

हम वहा हैं, जहा से हम को भी
कुछ हमारी खबर नही आती

मरते हैं आरजू में मरने की,
मौत आती है, पर नही आती

दिल-ए- नादा तुझे हुआ क्या है

‌दिल-ए-नादा, तुझे हुआ वया है,
आखिर इस दर्द की दवा वया है

हम है मुश्ताक और वह वेज़ार,
या इलाही, यह माजरा य्या है।

मैं भी मुंह के जुबान रखता हूं,
काश, पूछा, कि मुद्दआ क्या

जब कि तुझ बिन नही कोई मौजूद,
फिर यह हगाम -ऐ-खुदा वया है

यह परी चेहर लोग कसे है,
गमज -ओ -अिश्व -ओ-अदा क्या

सब्ज़ -ओ-गुल कहा से आए है,
अब्न क्या चीज़ है, हवा वया है।

हम को उन से, वफा की है उम्मीद,
जो नही जानते, वफा क्या हैँ

हा भला कर, तिरा भला होगा,
और दरवेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता है।
मै नही जानता, दुआ क्या है

मै ने माना कि कुछ नही 'गालिव',
मुफ्त हाथ आए, तो बुरा क्या है


१७. बोसे ‌देते नहीं, और दिल पे है 

बोस देते नही, और दिल प है हर लह्ज़ निगाह,
जी में कहते है, कि मुफ्त आए, तो माल अच्छा है

और बाजार से के आए,अगर टूट गया,
जाम-ए-जम' से यह मेरा जाम-ए-सिफाल' अच्छा है

बेतलब दें तो मज़ा उस में सिवा मिलता है,
वह गदा', जिस को न हो खू-ए-सवाल अच्छा है

उन के देखे से, जो आ जाती है मुह पर रौनक,
वह समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है

देखिए, पाते है 'अुश्शाक, बुतो से वया फैज,
इक व्रह्मन ने कहा है, कि यह साल अच्छा है

हम सुखन तेशे ने फरहाद को, शीरी से किया,
जिस तरह का कि किसी मे ही कमाल, अच्छा है

कतरः दरिया में जो मिल जाए, तो दरिया हो जाए,
काम अच्छा है वह, जिस का कि मआल अच्छा है.

हम को मालूम है, जन्नत की हकीकत, लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब', यह खयाल अच्छा है

शिकवे के नाम से

‌शिकवे के नाम से, बेमेह्र खफा होता है,
यह भी मत कह, कि जो कहिए, तो गिला होता है

पुर हू मै गिकवे से यू, राग से जैसे वाजा,
इक जरा छेडिए, फिर देखिए क्या होता है।

वो समझता नही, पर हुस्न-ए-तलाफी देखो,
शिकव -ए-ज़ौर से सरगर्म-ए-जफा होता है

क्यो न ठहरे हृदफ-ए-नावक-ए वेदाद, कि हम,
आप उठा लाते हैं, गर तीर खता होता है

खूब था, पहले से होते जो हम अपने वदरूवबाह,
कि भला चाहते है और बुरा होता है.

रखियो, 'गालिब', मुझे इस तल्खनवाई से मु'आफ,
आज कुछ दर्द मेरे दिल में सिवा होता है

१८ क्या  है

‌हर एक वात पे कहते हो तुम, कि तू क्या है,
तुम्ही कहो कि यह अदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है।

न शोले में यह करिश्मा न वर्क मे यह अदा
कोई बताओ, कि वह शोख ए-तुद खू गया है

जला है जिस्म जहा , दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या हैँ

रगों में दौड़ते फिरने के, हम नहीं काईल,
जब आख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है

पियू शराब, अगर खुम भी देख लू दो चार,
यह शीश -ओ-कदह-ओ-कूज.- ओ-सुबू क्या है-

रही न ताकत-ए-गुफ्तार, और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरजू क्या है

हुआ है शाह' का मुसाहिब', फिरे हैं इतराता,
शहर में गालिब की आवरू क्या हैl


१९.गैर लें महफ़िल में 

‌गैर लें महफिल में, बोसे जाम के,
हम रहें यो तश्नः लब, पैगाम के

खत लिखँगे, गरचे मतलब कुछ न हो,
हम तो 'आशिक है, तुम्हारे नाम के

रात पी ज़मज़म पे मे और सुव्ह-दम,
धोए ध्ब्बे जाम -ए-अहराम के

इश्क ने गालिब निक्कमा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के

२०.मेरे आगे 

‌वाजीच-ए-अत्फाल हैं दुनिया, मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाश, मेरे आगे

इक खेल है औरग-ए-सुलेमा, मेरे नजदीक,
इक वात है, ए 'जाज-ए-मसीहा, मेरे आगे

जुज' नाम, नही सूरत-ए-आलम मुझे मजूर,
जुज़ वहम, नही हरस्ति-ए-अशिया मेरे आगे

होता है निहा गर्द में सहरा मेरे होते,
घिसता है जवी खाक पे दरिया, मेरे आगे

मत पूछ, कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख, कि क्या रग है तेरा, मेरे आगे

सच कहते हो, खुदबीन' ओ-खुदआरा हू, न क्यों हू,
बैठा है बुत-ए-आइन सीमा मेरे आगे

फिर देखिए अदाज़ ए-गुल अलशानि्- ए- गुफ्तार'.
रख दे कोई, पंमान-ओ-सहबा मेरे आगे

आशिक ह, प माशुक फरेवी है मेरा काम,
मजनू को बुरा कहती है लैला, मेरे आगे

है मोंजजन इक कुल्जुम-ए-खूं, काश, यही हो,
आता है, अभी देखिए, क्या क्या, मेरे आगे

गो हाथ को जुंबिश नही, आखो में तो दम है,
रहने दो अभी साग्र-ओ-मीना मेरे आगे

हम पेशः-ओ-हम मश्रव-ओ-हम राज है मेरा,
गालिव को बुरा क्यो कहो, अच्छा, मेरे आगे

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