हम उसको अपनी मुहब्बत का हिसाब क्या देते,
जवाब खुद ही सवाल पूछे तो हम ज़वाब क्या देते…
एक मासूम बच्चे ने तितली के पंखों को नोच डाला,
अब उसकी नादानी का हम उसको सिला क्या देते…
पहली बार आंखो ने सच को झूठ बोलते देखा,
अब हम अपनी बेगुनाही का सबूत क्या देते….
जिस शख्स की चाहत में हमने दुवाएं मांगी हों,
अब उसकी बेवफाई में हम उसे बद्दुआ क्या देते…
जो कुछ दूर तक अपनी जुबां पर ना चल सके,
ऐसे अपाहिज को हम अपना सहारा क्या देते…
जो समंदर सारी नदियां पी कर भी प्यासा हो,
उसकी प्यास में आंख का एक आंसू क्या देते …
तुफान में जख्मी होकर एक परिंदा जमी पर गिरा,
हम खुद टूटकर बिखरे थे तो हौंसला क्या देते…
कुछ रास्तों के बारे वो हमसे अक्सर पूछते थे,
जिन रास्तों पर गए नहीं तो मशवरा क्या देते …
मौत मेरे घर की दहलीज पर मेरे इंतजार में थी,
अब हम अपनी जान ना देते तो भला क्या देते…
आशीष रसीला