1.कहाँ तो तय था चिराग हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।।
2.आँधिया तो सुना उधर भी आई
कोपलें कैसी है शुशों के मकाँ कैसे है।।
3. बासुरीं हाथ में पकड़े मुह पर छिड़क नीला रंग,
सब ही किशन बने तो राधा नाचे किसके संग।।
4.हो गई है पीर पर्वत सी,पिघलनी चाहिये,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये।।
5.गजलों ले चलो अब गांव के दिलकश नजरों मेँ,
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इरादों मेँ।।
6.इस राज को क्या जानें साहिल के तमाशाई,
हम डूबके समझे है दरिया तेरी गहराई।।
7.ये सफर ब हर सूरत तय मुझी को करना है,
जख्म-जख्म जीना है साँस- साँस मरना है।
8.मैं भी ऐ दोस्त बहुत झुक कर मिलूंगा तुझसे,
जब मेरा कद तेरे आकाश से ऊंचा होगा।।
9.मैं भी दरियाँ हूँ मगर मेरी मंजिल नहीं,
मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जायेगा।।
10.ओ शहर जाने वाले!ये बूढ़े शजर न बेच,
मुमकिन है लौटना पड़े गांव का घर न बेच।।
11.आग मजलूम के घर में जो लगाई होगी,
कुछ न कुछ आंच तो जालिम पे भी आई होगी।।
12.कल तक लबों को जिनके मयस्सर न थी हंसी,
बे-शख्ता हंसे है वहीं मेरे हाल पर।।
13.अंजाम उसके हाथ है आगाज करके देख़
भीगे हुए परों से ही परवाज करके देख।।
14.जिन्हें प्यार के अर्थ ही व्यर्थ लगते है,
वो इन्सानियत के ख़रीददार निकले।।
15.वो एक जख्मी परिंदा है,वार मत करना,
पनाह माग रहा है, शिकार मत करना।।
16.समुन्दर साहिलों से पूछता है,
तुम्हारा शहर कितना जागता है।।
17.हम खानाबदोशों का न घर है न ठिकाना,
मत पूछों की हम घर का पता क्यों नहीं देते।।
18.फुर्सत मिले तो तुम कभी मेरे भी भीतर देखना,
पत्थरों पर सिर पटकता इक समंदर देखना।।
19.इक कली हंसती हुई गुलजार में,
कह रही है फूल अब बुड़ा हुआ।।
20.खुद उस पर तंज करती है बहुत मजबूरियां उसकी,
कोई थक कर अगर फुटपाथ को बिस्तर बनाता है।।
21.वो तो हम थे की तुझे भीड़ में पहचान लिया,
तुझको ये वहम की तू सबसे जुदा लगता है।।
22.हर लफ्ज में सीने का नूर डाल के रख,
कभी कभार तो कागज पे दिल उतार के रख।।
23.जमीं पर सारे खुदाओं को टोक देता था,
मेरा जमीर था जिन्दा ये बात है तब की।।
24.उसे न रोक सकी कश्तियों की मजबूरी,
वो हौसलों से ही दरिया को पार करता था।।
25.नफ़स नफ़स में है तारिकियां कहाँ रख दूँ,
मैं इक चिराग उजाले कहाँ रख दूँ।।
26.सूरज है आसमां पे उजाला जमीन पर,
है आसमां का आज भी पहरा जमीन पर।।
27.तेरी जुलफें भी सुलझाना जरूरी है मेरे हमदम,
तकाजा का हाल कुछ है बागबां कुछ और कहता है।।
28.हम कहां जायँगे जज्बात का शीशा लेकर,
लफ्ज पत्थर का तो हर शख्स चला देता है।।
29.दिल के खिलाफ चल ने एना के खिलाफ चल
कुछ कर गुजरना है तो हवा के खिलाफ चल।।
30.जिनका जिक्र किया था केवल मौसम और हवाओ से
उन बातों की खुशबु महकी है तेरी मुस्कानों में।।
31.सबसे मिलते हो एहतिहात के साथ
तुम भी दूध से जले हो क्या।।
31.पाले हुए ये सारे भरम टूट जायँगे
कुछ आइनों से आँख लड़ाकर तो देखिये।।
31.आंधियों आयीं उठा कर ले गयीं सब बस्तियाँ,
मैंने इक दिल में बनाया था मकां, अच्छा हुआ।।
32.मौसम के बल पर उचाई पाने वाले बादलों को,
मौसम रूह बदले तो पानी पानी होना पड़ता है।।
33.तमाम दिन जो कड़ी धूप में झुलसते है,
वही दरख़्त मुसाफिर को छाँव देते है।।
34.यह सियासत की तवायफ़ का दुपट्टा है,
ये किसी के आंसुओ से तर नहीं होता है।।
35.बादशाहों का इंतजार करें,
इतनी फुर्सत कहाँ फकीरों को।।
36.परिंदो में तो ये फिराकपरस्ती भी नहीं देखी,
कभी मंदिर पे जा बैठे,कभी मस्जिद पे जा बैठे।।
37.सिर्फ सांसों का खजाना है, खजाना ऐसा,
खत्म करके हि मरा करता है जीने वाला।।
38.देखे ना गए छाँव ठीठुरे हुए बदन,
आँगन तमाम धुप में भरना पड़ा मुझे।।
39.रोज खाली हाथ जब घर लौट जाता हूँ,
मुस्करा देते है बच्चे और मर जाता हूँ मैं।।
40.तुम्हारे ज़िस्म है पत्थर के डूब जाओगे,
ये मशवरा है कि तुम समुन्दर को पार मत करना।।
41.परिंदे भी नहीं रहते पराये आशियानों में,
हमारी उम्र गुजरी है किराये के मकानों में।।
42.वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से,
मैं एतबार न करना तो और क्या करता।।
43.जो देखता हूँ वहीं बोलने का आदि हूँ,
मैं अपने शहर में सबसे बड़ा फ़सादी हूँ।।
44.शहर में सब ही मनाते हैं हमें,
कैसे कैसे मुगालते है हमें।।
45.नाखुदा हमको डुबोते तो कोई बात न थी,
हम तो डूबे है खुदाओं पे भरोसा करके ।
46. सो गए बच्चे खिलेंनों की तमन्ना ओढ़ कर,
शाम ही से घर में सन्नटा कहाँ से आ गया।।
47.पानी खरीदने लगे बादल भी आजकल,
बारिश में भीगना भी लगा बे मजा मुझे।।
48.पंडित उलझ के रह गया पोथियों के जाम में,
क्या चीज है जिंदगी बच्चे बताते है।
49.हाथों की लकीरें बदलती हुई मिली,
लगता है कल रात ख्वाब में छू लिया उसने।।
50,मुहब्ब्त की कोई कीमत मुकरर हो नहीं सकती,
ये जिस कीमत में मिल जाए उसी में सस्ती है।
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45.नाखुदा हमको डुबोते तो कोई बात न थी,
हम तो डूबे है खुदाओं पे भरोसा करके ।
46. सो गए बच्चे खिलेंनों की तमन्ना ओढ़ कर,
शाम ही से घर में सन्नटा कहाँ से आ गया।।
47.पानी खरीदने लगे बादल भी आजकल,
बारिश में भीगना भी लगा बे मजा मुझे।।
48.पंडित उलझ के रह गया पोथियों के जाम में,
क्या चीज है जिंदगी बच्चे बताते है।
49.हाथों की लकीरें बदलती हुई मिली,
लगता है कल रात ख्वाब में छू लिया उसने।।
50,मुहब्ब्त की कोई कीमत मुकरर हो नहीं सकती,
ये जिस कीमत में मिल जाए उसी में सस्ती है।
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