1. तोड़ता है
मेरी हर आरजू हर अरमान तोड़ता है।
ऐ खुदा क्यु अपना ही समान तोड़ता है।
हुस्न और शोखी के गरूर का नशा है ये
अदा से बूत-ए-दिले -नादान तोड़ता है।
मैं वो शीशा हूँ जिसकी किस्मत है टूटना
कभी मुझे पत्थर कभी इंसान तोड़ता है।
ये ग़ज़ल नही मरसिया है उस यकीन की
जो रह रह के अपना ईमान तोड़ता है।
मंदिर हो चाहे मस्जिद पत्थर एक से है
उसे हिंदू ना जाने क्यूँ मुसलमान तोड़ता है।
2. जिसे चाहा
जिसे चाहा नहीं उसको निभाया
मेरे हिस्से में अजब किरदार आया।
चमन में कहर तो फूलों ने ढाया
मगर इलज़ाम काटों पर ही आया।
मेरी चुप्पी पर तो झुंझला गया वो
मेरे चेहरे को लेकिन पढ़ ना पाया।
वहीं मुझको गिराना चाहता है
जिसे मैने कभी चलना सिखाया।
बुझी आँखे भुझे सोने लिए शशि
सितारों के नगर से लोट आया।
3. हंसेगा जायगा
इस तरह कब तक हंसेगा जायगा।
एक दिन बच्चा बड़ा हो जायंग।
आ गया फिर खिलोने बेचने वाला।
सारे बच्चों को रुला कर जायगा।।
हर समय ईमानदारी की बात।
एक दिन ये आदमी बहुत पछतायगा।।
फाइले यदि मेज पर ठहरे नही।
दफ्तरों के हाथ क्या लग जायगा।।
दौड़ जीतेंगे यहां बैसाखियां वाले
पाँव वाला बस दोड़ता रह जायेगा।।
4. नहीं निकला
नजर में आज तक मेरी कोई तुझ सा नहीं निकला।
तेरे चेहरे के अन्दर एक भी चेहरा नहीँ निकला।।
कही मैं डूबने से बच ना जाऊं,सोचकर ऐसा
मेरे नजदीक से होकर कोई तिनका नहीँ निकला।।
जरा सी बात थी ओर कश्मकश ऐसी की मत पूछो।
भिकारी मूड गया और जेब से सिक्का नहीँ निकला।।
सड़क पर चोट खाकर आदमी ही गिरा था लेकिन।
गुजरती भीड़ का उस से कोई रिश्ता नहीँ निकला।।
जहाँ पर जिंदगी की यूँ कहें कि खेरात बंटती हो।
उसी मंदिर से देखा की कोई जिन्दा नहीँ निकला।।
5.वो खुद जान लेते है
वो खुद जान जाते है बुलंदी आसमानो की।
परिंदों को नही तालीम दी जाती उड़ानों की।।
जो दिल में हौसला हो तो कोई मंजिल नही मुश्किल।
बहुत कमजोर दिल ही बात करते है थाकानो कि।।
जिन्हें है सिर्फ मरना ही वो बेशक खुदखुशी कर लें।
कमी कोई नही है जीने के बहनो की।।
महकना और महकाना है केवल काम खुशबू का।
कभी खूश्बु नहीँ मोहताज होती कद्दनो की।।
हमें हर हाल में तूफान से महफूज रखती है।
छतें मजबूत होती है उम्मीदों के मकानों की।।
6. हो गई है पीर
हो गई है पीर पर्वत सी पघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर,हर गली में ,हर नगर,हर गांव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,
मेरी कोशिश है कि ये सुरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीँ भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।
7. हमने तन्हाई
हमने तन्हाई में जंजीरे से बातें की है,
अपनी सोई हुई तक़दीर से बातें की है।
तेरे दीदार की क्या खाक तमन्ना होगी,
जिन्दगी भर तेरी तस्वीर से बातें की है।
मौत के डर से मैं खामोश रहूं लानत है,
जबकि जल्लाद कि शमशीर से बातें की है।
केस की लैला या फरहाद की शीरी कह लो,
हम नहीं रांझा,मगर हीरे से बातें की है।
रंग का रंग जमाने ने बहुत देखा है,
क्या कभी आपने बलवीर से बातें की है।
8. रंजिश ही सही
रंजिश ही सही,दिल ही दुखाने के लिए आ
आ,फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिरांडे-मोह्हबत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझको मानने के लिए आ ।
पहले से मरासिम न सही,फिर भी कभी तो,
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ।
किसी-किस को बातेंयेंगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ।
एक उम्र से हूँ लज्जते-गिरियां से भी महरूम,
ऐ राहते-जां, मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिले-खुशफहम को तुझसे है उम्मीदें,
आ,आखरी शमएं भी बुझाने के लिए आ।
माना कि मुब्बत का छुपना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ।
जैसे तुझे आते है न आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज न जाने के लिए आ।।
9. कोई मस्जिद गुरद्वारे
कोई मस्जिद गुरुद्वारे न शिवाले होंगे,
सिर्फ तू होगा तेरे चाहने वाले होंगे।
जा के प्रदेश में माँ-बाप को जो भूल गए,
ये गरीबी वो तेरी गोद के पालें होंगे।
ऐब चहरों का छुपा लेना हुनर था जिनका,
सोचिये कितने वो आईने निराले होंगे।
बेच दे अपनी अना, अपनी जबां,अपना जमीर,
फिर तेरे हाथ मेँ सोने के निवाले होंगे।
तुमको तो मिल के पत्थर पे भरोसा है मगर,
मेरी मंजिल तो मेरे पाँव के छालें होंगे।
आज हर जख्म में बेकल है गुलाबों की महक,
संग वालों ने कहीँ फूल उझाले होंगे।।
10. आँखों में रहा
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
किश्ती के मुसाफिर ने समंदर नही देखा।
बेवक़्त अगर जाऊंगा सब चोंक पड़ेंगे,
इक उम्र हुई दिन मेँ कभी घर नहीं देखा।
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पर नजर है,
आँखों ने कभी मिल का पत्थर नहीं देखा।
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काटों भरा बिस्तर नहीं देखा।
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ,उसने मुझे छूकर नहीं देखा।।
11.तेरी जन्नत से
तेरी जन्नत से हिजरत कर रहे है,
फ़रिश्ते क्या बगावत कर रहे हैं।
हम अपने जुर्म का इकरार कर लें,
बहुत दिन से ये हिम्मत कर रहे हैं।
वो खुद हरे हुए हैं जिंदगी से,
जो दुनिया पर हुकूमत कर रहे हैं।
जमीं भीगी हुई है आँसुओं से,
यहां बादल इबादत कर रहे हैं।
फजा में आयतें महकी हुई है,
कहीं बच्चे तिलावत कर रहे हैं।
परिदों के जमीनो-आसमान क्या,
वतन में रहके हिजरत कर रहे है।
गजल की आग में पलकों के साए,
मोह्हबत की हिफाजत कर रहे हैं।
हमारी बेबसी की इन्तहां है,
की ज़ालिम कि हिमायत कर रहे हैं।।
12. अब के सावन
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ कर कुल शहर में बरसात हुई।
आप मत पूछिए क्या हम पे सफर में गुजरी,
था लुटेरों का जहाँ गांव,वहीं रात हुई।
जिंदगी भर तो हुई गुफ्तगू गैरों से मगर,
आज तक हमसे हमारी न मुलाक़ात हुई।
हर गलत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझको,
एक आवाज तेरी जब से मेरे साथ हुई।
मैंने सोचा की मेरे देश की हालत क्या है,
एक कातिल से तभी मेरी मुलाकात हुई।।
13. सुबह हो
औरों के भी गम में जरा रो लूँ तो सुबह हो,
दामन पे लगे दागों को धो लूँ तो सुबह हो।
कुछ दिन से मेरे दिल में नई चाह जागी है,
सर रख के तेरी गोद में सो लूँ तो सुबह हो।
पर बांध के बैठा हूँ नशेमन में अभी तक,
आँखों की तरह पंख भी खोलूं तो सुबह हो।
लफ्जों में छुपा रहता है इक नूर का आलम,
यह सोच कर हर लफ्ज को बोलूं तो सुबह हो।
जो बन ले हवा रहती है जिस्म के अंदर,
उस गन्ध को सांसो में समो लूँ तो सुबह हो।
दुनिया में मुहब्बत का कुँवर कुछ भी नही है,
हर दिल में इसी रंग को घोंलु तो सुबह हो।
14. सँवर जाना
जिंदगी,आस की दुनिया का सँवर जाना है,
मोत,इंसान के सपनों का बिखर जाना है।
हमसे क्या पूछते हो हमको किधर जाना है,
हम तो खुशबु हे बरहाल बिखर जाना है।
हम तो खुशबू है बरहाल बिखर जाना है,
और खुसबू का बिखर जाना सँवर जाना।
जिन्दा रहना है तो मरने का सलीका सिखों,
वरना मरने को तो हर व्यक्ति मर जाना है।
जिंगदी क्या है मुसाफिर का निरंतर चलना,
मौत चलते हुए रही का ठहर जाना है।
आप औरों के हुनर को भी नही करते हुनर,
हमने तो आपके ऐबों को हुनर जाना है।
प्यार की राह में कांटे हों की शोले रोशन
हम गुजर जायँगे हमको तो गुजर जाना है।।
15. मुझे तो दोस्तो
मुझे तो दोस्तोतो इस बात ने डराया है,
की अपने आपसे हर आदमी पराया है।
ये रात मैने बताया एक पत्थर को,
की मैंने अपना मकां काँच का बनाया है।
वो फुट फुट कर रोया है बच्चों की तरह,
तुमहारे शहर में जिसको भी गुदगुदाया है।
पता लगाओ की पत्थर का तो नहीं हूँ मैं,
की मुझे देख के हर कांच कंपकपाया है।
पड़ीं है गांव के रास्ते में मुंतजिर होकर,
वो एक ठुठ की बीमार सी जो छाया है।
हर एक शख्श भटकता है इक बवंडर सा,
की ज़िन्दगी में यहाँ किसने चैन पाया है।
मुझे लगा कोई उत्सव है दर्द का वह भी,
कोई भी अश्क जब आँखों में टीमटीमाया है।
ग़लत पते का है मैं खत हूँ की डाकिया मुझको,
पराए हाथ में हर बार देके आया है।।
16. चिराग हो के न हो
चिराग हो के न हो दिल जला के रखते है,
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते है।
मिला दिया है पसीना भले ही मिटटी मेँ,
हम अपनी आँखों का पानी बचा के रखते है।
बस एक खुद से ही अपनी नही बनी वरना,
जमाने भर से हमेशा निभा के रखते है।
हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी,
जिसे निशाने पर रखते है बता कर रखते है।
कहीं खुलूस,कहीं दोस्ती,कहीँ पे वफा,
बड़े करीने से घर को सज़ा के रखते है।
अना पसदं है हस्ती जी सच सही लेकिन
नजर को अपनी हमेशा झुका के रखते है।।
17. वो मेरे रूबरू
वो मेरे रूबरू होकर ना मेरी कुछ खबर देगा,
मुझे पहचानने से आईना इंकार कर देगा।
लिखी है जो हवाओ पर इबादत मैं वो पढ़ लूंगा,
मुझे उम्मीद है मुझको वो इक ऐसी नजर देगा।
मेरे जख्मों को सीने तो मसीहा बनकर आया है,
मुझे डर है कि वो मौका पाते ही मेरा कत्ल कर देगा।
वो जिसने मुझे भड़काया है सारी उम्र सहरा में,
मुझे मालूम है इक दिन वो ही दीवारों-डर कर देगा।
नहीं चाहेगा तो वो खाक कर देगा मुझे मंजर,
अगर चाहेगा मुझको बियाबान में शजर देगा।।
18. ठोकर खा
ठोकर खा,पछताकर देख,
आँख जरा छलकाकर देख।
धर्म धरा रह जायेगा,
पैसे चार कमा कर देख।
फिर ना हंसेगा मुझ पर तु,
मन का चैन लुटा कर देख।
खुद भी तू जल जाएगा,
नफरत को दहकाकर देख।
मुझमें क्या है? क्या हूँ मैं,
मुझको गले लगाकर देख।।
19. मुझे
पत्थर बना दिया तो मिली ये सजा मुझे,
चुपके से संगतराश उठा ले गया मुझे।
खुशबु में डूब जायेगी यादों की डालियाँ,
होंठ पे फूल रख के कभी सोचना मुझे।
पानी खरीदने लगे बादल भी आज कल,
बारिश में भीगना भी लगा बे-मजा मुझे।
घर में हो चिराग तो फिर आंधियां भी हों,
लेना पड़ा दबाव मेँ ये फैसला मुझे।
तकिये के नीचे मैं तो ग़ज़ल रख कर सो गया,
आँख खुली तो आपका चेहरा मिला मुझे।
हाथोँ की कुछ लकीरें बदलती हुई मिली,
लगता है उसने ख़्वाब में कल छू लिया मुझे।
20.पड़ता है
दिल को ये अहसान दिलाना पड़ता है,
खामोशी को बात बनाना पड़ता है।
खुशबु को आवाज लगाने से पहले,
बाग़ में कोई फूल खिलाना पड़ता है।
चाँद की परछाई थाली में दिखा कर,
बच्चों को यूँ भी बहलाना पड़ता है।
रिश्ते कुछ दुरी तक साथ निभाते है,
एक न एक दिन हाथ छुड़ाना पड़ता है।
कुछ रिश्ते ऐसे भी तो बन जाते है,
लोगों को जाकर समझाना पड़ता है।।
21.हमने पत्थर दिया
हमने माँगा फूल लेकिन अपने पत्थर दिया,
एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया।
फितरतन जो लोग थे बिजली के नंगे तार-से,
हमने अनजाने में उन पर हाथ अपना धर दिया।।
होठ,ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
होठ ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
घर के मालिक ने ना जाने किस व्यवस्था के तहत,
लेटने की बैठक दी,बैठने को घर दिया।
नायकों को छोड़कर,हर बार जोकर ही चुने,
इस तरह अपनी हँसी को मोल हमने भर दिया।
अब भी हम आदिम गुफाओं से निकल पायँ नहीँ,
हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया।
अपने अंदर का अँधेरा और भी गहरा गया,
जब कभी हमने जलाया दोस्तो बाहर दिया।।
22.जन्म से मरण तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।।
आँख गीली,होठ ठंडे और दिल में आँधियाँ,
तीन मौसम एक ही संग ओढ़ता है आदमी।
सुबह पलना,शाम अरथी और खटिया दोपहर,
तीन लकड़ी यार दिन में तोड़ता है आदमी।
एक रोटी,दो लँगोटी,तीन गज कच्ची जमीन,
तीन चीजें जिंदगी भर जोड़ता है आदमी।
है यहाँ विश्वाश कितना आदमी का मौत पर,
मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी।।
23. तेरी जावेद जिंदगी के
तेरी जावेद जिंदगी के लिए,
तेरे फूलों की ताजगी के लिए,
तेरी राहत तेरी ख़ुशी के लिए,
तेरी महफ़िल की रौशनी के लिए,
आज हम अपना दिल जलाते है।''
कर के तामीर प्यार की महफ़िल,
वो सुनाते है किस्सा-ए-मुहमिल
बारहा पूछते है हाले दिल
कत्ल करने से पेश्तर कातिल,
कितनी हमदर्दीया जताते है।।
24. यूँ तो सब
यूँ तो सब आदमी है,मगर
आदमी आदमी मेँ बड़ा फर्क है,
मय नहीं न सही जहर क्यों पीजिये,
मौत में खुदखुशी में बड़ा फर्क है।
यह मेरी ज़िंदगी वह तेरी ज़िन्दगी,
जिंदगी जिंदगी में बड़ा फर्क है।
तेरे शेरों ने सरशार समझा दिया,
शायरी शायरी में बड़ा फर्क है।।
25.निकलने दो
अभी तुम मशरिक उम्मीद से सूरज निकलने दो,
सवेरा हो जायेगा रात को ढलने दो।
न आंच आए कभी ऐ बिजलियों!सहने गुलिस्तां पर
बला से आशियाँ मेरा अगर जलता है जलने दो।
सबिहे जिंदगी में रंग भरने से जरा पहले,
हमें हर खद्धों खालें जिंदगानी को बदलने दो।
न रोको इनके रस्ते रहबरो!रहो मुहब्बत में,
जिन्हें चलने आदत हो गई है उनको चलने दो।
दिखा देंगे हम भी की जीना किसको कहते है,
अंधेरी रात में जख्मी,जिगर के दाग जलने दो।।
26. सी लगे
मयगुसरों में दुश्मनी सी लगे
शेख के जफ में कमी सी लगे।
साथ है एक उम्र से फिर भी,
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे।
जिसपे साया है तेरी जुल्फों का,
तीरगी भी वह रौशनी सी लगे।
इश्क का हर कदम गहरा गुजरे,
हुस्न की हर अदा भली सी लगे।
रूठकर आप क्या गए मुझसे,
मुझकों दुनियां तहि तहि सी लगे।
हैं कुछ ऐसे भी बुलहवस जिनको,
दिल लगाना भी दिल्लगी सी लगे।
है मकीं कौन खाना-ए-दिल में,
शक्लों सूरत तो आपकी सी लगे,
उस सितमगर से क्या मिला आतिश,
दुश्मनी जिसकी दोस्ती सी लगे।।
27. नजर से
फिजायें मुस्कुराई फूल बरसें,
नजर जब मिल गई उनकी नजर से।
बना जाते है वीरानों को गुलशन,
गुजर जाते है दीवाने जिधर से।
बजाते खुद नाजरों के अमीन हैं,
नजर वह क्या जो नाजज्जरों को तरसे,
मेरा दिल हे मुहब्बत का मदीना,
इसे देखोंल मुहब्बत की नजर से।
परेशां से नजर आते है वो भी,
मीरे हाले परेशां के असर से,
फिजायें आज तक महकी हुई हैं,
हुई मुद्दत वो गुजरे थे इधर से।
मुहब्बत का सहारा ले के अखगर
गुजर जा जिंदगी की रहगुजर से।।
28. मिटा मुझे ने सकी
मिटा मुझे न सकी गर्दिशे जमाने की,
हजार कोशिशें करती रहीं मिटाने की,
जो जिनके क़दमों पे में जिन्दगी लुटा बैठा
वो बात करते हैं अब मेरे आजमाने की।
मैं उनकी राह में आँखें बिछाये बैठा हूँ।
जो खाये बैठे हैं कस्में इधर न आने की
मिटा दे देंरों हरम के ये फासले यारब
कोई जगह तो मिले हमको सर झुकाने की।।
29. आईना देखने से
आईना देखने से डरती है
जिंदगी हब्शियों की लड़की है
काँप उठते है मंदिरों के कलश,
जब वह बन ठन कर घर से निकलती है।
जहर पीते है रोजों शब जो लोग,
गम की डाईन उन्ही से डरती है।
अप्सराओं के नाच होते हैं,
जब हवा जंगलों में चलती हैं।
ऐसी क्या बात है मेरे खुन में,
गम की नागिन मुझे ही डसती है।
30. नाज
क्या कहूँ किस तौर से सूरत थी वो पाली हुई,
या किसी शायर के रंगीन ख्वाब में ढाकी हुई।
जुल्फ बल खाती हुई पर्वत पै जैसे हो घटा,
और सन्दल के शजर से सांप हो लिपटा हुआ।
क्या सुराहीदार गर्दन मदभरा वो जाम था,
पैकर ए हुस्न ओ अदा, गुल रुख था गुल अदाम था।
हुस्न की गर्मी से वो रुखसार क्या दहके हुए,
सुखी ए शर्म ओ हया से ओर भी महके हुए।
लाला जारों से कहीँ बड़ कर थे गालों के गुलाब,
कमसिनी पर आ रहा था झूमता गाता शबाब।
कहने से होती थी उसके सुबह भी और शाम भी,
उसके रुकने से थी रूकती गर्दिशे आययाम भी।
चाँद की चांदनी गोया सरापा नूर का,
और दोशीज़ा के कालिज में था पैकर हुर का।
मेरी हर आरजू हर अरमान तोड़ता है।
ऐ खुदा क्यु अपना ही समान तोड़ता है।
हुस्न और शोखी के गरूर का नशा है ये
अदा से बूत-ए-दिले -नादान तोड़ता है।
मैं वो शीशा हूँ जिसकी किस्मत है टूटना
कभी मुझे पत्थर कभी इंसान तोड़ता है।
ये ग़ज़ल नही मरसिया है उस यकीन की
जो रह रह के अपना ईमान तोड़ता है।
मंदिर हो चाहे मस्जिद पत्थर एक से है
उसे हिंदू ना जाने क्यूँ मुसलमान तोड़ता है।
2. जिसे चाहा
जिसे चाहा नहीं उसको निभाया
मेरे हिस्से में अजब किरदार आया।
चमन में कहर तो फूलों ने ढाया
मगर इलज़ाम काटों पर ही आया।
मेरी चुप्पी पर तो झुंझला गया वो
मेरे चेहरे को लेकिन पढ़ ना पाया।
वहीं मुझको गिराना चाहता है
जिसे मैने कभी चलना सिखाया।
बुझी आँखे भुझे सोने लिए शशि
सितारों के नगर से लोट आया।
3. हंसेगा जायगा
इस तरह कब तक हंसेगा जायगा।
एक दिन बच्चा बड़ा हो जायंग।
आ गया फिर खिलोने बेचने वाला।
सारे बच्चों को रुला कर जायगा।।
हर समय ईमानदारी की बात।
एक दिन ये आदमी बहुत पछतायगा।।
फाइले यदि मेज पर ठहरे नही।
दफ्तरों के हाथ क्या लग जायगा।।
दौड़ जीतेंगे यहां बैसाखियां वाले
पाँव वाला बस दोड़ता रह जायेगा।।
4. नहीं निकला
नजर में आज तक मेरी कोई तुझ सा नहीं निकला।
तेरे चेहरे के अन्दर एक भी चेहरा नहीँ निकला।।
कही मैं डूबने से बच ना जाऊं,सोचकर ऐसा
मेरे नजदीक से होकर कोई तिनका नहीँ निकला।।
जरा सी बात थी ओर कश्मकश ऐसी की मत पूछो।
भिकारी मूड गया और जेब से सिक्का नहीँ निकला।।
सड़क पर चोट खाकर आदमी ही गिरा था लेकिन।
गुजरती भीड़ का उस से कोई रिश्ता नहीँ निकला।।
जहाँ पर जिंदगी की यूँ कहें कि खेरात बंटती हो।
उसी मंदिर से देखा की कोई जिन्दा नहीँ निकला।।
5.वो खुद जान लेते है
वो खुद जान जाते है बुलंदी आसमानो की।
परिंदों को नही तालीम दी जाती उड़ानों की।।
जो दिल में हौसला हो तो कोई मंजिल नही मुश्किल।
बहुत कमजोर दिल ही बात करते है थाकानो कि।।
जिन्हें है सिर्फ मरना ही वो बेशक खुदखुशी कर लें।
कमी कोई नही है जीने के बहनो की।।
महकना और महकाना है केवल काम खुशबू का।
कभी खूश्बु नहीँ मोहताज होती कद्दनो की।।
हमें हर हाल में तूफान से महफूज रखती है।
छतें मजबूत होती है उम्मीदों के मकानों की।।
6. हो गई है पीर
हो गई है पीर पर्वत सी पघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर,हर गली में ,हर नगर,हर गांव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,
मेरी कोशिश है कि ये सुरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीँ भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।
7. हमने तन्हाई
हमने तन्हाई में जंजीरे से बातें की है,
अपनी सोई हुई तक़दीर से बातें की है।
तेरे दीदार की क्या खाक तमन्ना होगी,
जिन्दगी भर तेरी तस्वीर से बातें की है।
मौत के डर से मैं खामोश रहूं लानत है,
जबकि जल्लाद कि शमशीर से बातें की है।
केस की लैला या फरहाद की शीरी कह लो,
हम नहीं रांझा,मगर हीरे से बातें की है।
रंग का रंग जमाने ने बहुत देखा है,
क्या कभी आपने बलवीर से बातें की है।
8. रंजिश ही सही
रंजिश ही सही,दिल ही दुखाने के लिए आ
आ,फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिरांडे-मोह्हबत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझको मानने के लिए आ ।
पहले से मरासिम न सही,फिर भी कभी तो,
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ।
किसी-किस को बातेंयेंगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ।
एक उम्र से हूँ लज्जते-गिरियां से भी महरूम,
ऐ राहते-जां, मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिले-खुशफहम को तुझसे है उम्मीदें,
आ,आखरी शमएं भी बुझाने के लिए आ।
माना कि मुब्बत का छुपना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ।
जैसे तुझे आते है न आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज न जाने के लिए आ।।
9. कोई मस्जिद गुरद्वारे
कोई मस्जिद गुरुद्वारे न शिवाले होंगे,
सिर्फ तू होगा तेरे चाहने वाले होंगे।
जा के प्रदेश में माँ-बाप को जो भूल गए,
ये गरीबी वो तेरी गोद के पालें होंगे।
ऐब चहरों का छुपा लेना हुनर था जिनका,
सोचिये कितने वो आईने निराले होंगे।
बेच दे अपनी अना, अपनी जबां,अपना जमीर,
फिर तेरे हाथ मेँ सोने के निवाले होंगे।
तुमको तो मिल के पत्थर पे भरोसा है मगर,
मेरी मंजिल तो मेरे पाँव के छालें होंगे।
आज हर जख्म में बेकल है गुलाबों की महक,
संग वालों ने कहीँ फूल उझाले होंगे।।
10. आँखों में रहा
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
किश्ती के मुसाफिर ने समंदर नही देखा।
बेवक़्त अगर जाऊंगा सब चोंक पड़ेंगे,
इक उम्र हुई दिन मेँ कभी घर नहीं देखा।
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पर नजर है,
आँखों ने कभी मिल का पत्थर नहीं देखा।
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काटों भरा बिस्तर नहीं देखा।
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ,उसने मुझे छूकर नहीं देखा।।
11.तेरी जन्नत से
तेरी जन्नत से हिजरत कर रहे है,
फ़रिश्ते क्या बगावत कर रहे हैं।
हम अपने जुर्म का इकरार कर लें,
बहुत दिन से ये हिम्मत कर रहे हैं।
वो खुद हरे हुए हैं जिंदगी से,
जो दुनिया पर हुकूमत कर रहे हैं।
जमीं भीगी हुई है आँसुओं से,
यहां बादल इबादत कर रहे हैं।
फजा में आयतें महकी हुई है,
कहीं बच्चे तिलावत कर रहे हैं।
परिदों के जमीनो-आसमान क्या,
वतन में रहके हिजरत कर रहे है।
गजल की आग में पलकों के साए,
मोह्हबत की हिफाजत कर रहे हैं।
हमारी बेबसी की इन्तहां है,
की ज़ालिम कि हिमायत कर रहे हैं।।
12. अब के सावन
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ कर कुल शहर में बरसात हुई।
आप मत पूछिए क्या हम पे सफर में गुजरी,
था लुटेरों का जहाँ गांव,वहीं रात हुई।
जिंदगी भर तो हुई गुफ्तगू गैरों से मगर,
आज तक हमसे हमारी न मुलाक़ात हुई।
हर गलत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझको,
एक आवाज तेरी जब से मेरे साथ हुई।
मैंने सोचा की मेरे देश की हालत क्या है,
एक कातिल से तभी मेरी मुलाकात हुई।।
13. सुबह हो
औरों के भी गम में जरा रो लूँ तो सुबह हो,
दामन पे लगे दागों को धो लूँ तो सुबह हो।
कुछ दिन से मेरे दिल में नई चाह जागी है,
सर रख के तेरी गोद में सो लूँ तो सुबह हो।
पर बांध के बैठा हूँ नशेमन में अभी तक,
आँखों की तरह पंख भी खोलूं तो सुबह हो।
लफ्जों में छुपा रहता है इक नूर का आलम,
यह सोच कर हर लफ्ज को बोलूं तो सुबह हो।
जो बन ले हवा रहती है जिस्म के अंदर,
उस गन्ध को सांसो में समो लूँ तो सुबह हो।
दुनिया में मुहब्बत का कुँवर कुछ भी नही है,
हर दिल में इसी रंग को घोंलु तो सुबह हो।
14. सँवर जाना
जिंदगी,आस की दुनिया का सँवर जाना है,
मोत,इंसान के सपनों का बिखर जाना है।
हमसे क्या पूछते हो हमको किधर जाना है,
हम तो खुशबु हे बरहाल बिखर जाना है।
हम तो खुशबू है बरहाल बिखर जाना है,
और खुसबू का बिखर जाना सँवर जाना।
जिन्दा रहना है तो मरने का सलीका सिखों,
वरना मरने को तो हर व्यक्ति मर जाना है।
जिंगदी क्या है मुसाफिर का निरंतर चलना,
मौत चलते हुए रही का ठहर जाना है।
आप औरों के हुनर को भी नही करते हुनर,
हमने तो आपके ऐबों को हुनर जाना है।
प्यार की राह में कांटे हों की शोले रोशन
हम गुजर जायँगे हमको तो गुजर जाना है।।
15. मुझे तो दोस्तो
मुझे तो दोस्तोतो इस बात ने डराया है,
की अपने आपसे हर आदमी पराया है।
ये रात मैने बताया एक पत्थर को,
की मैंने अपना मकां काँच का बनाया है।
वो फुट फुट कर रोया है बच्चों की तरह,
तुमहारे शहर में जिसको भी गुदगुदाया है।
पता लगाओ की पत्थर का तो नहीं हूँ मैं,
की मुझे देख के हर कांच कंपकपाया है।
पड़ीं है गांव के रास्ते में मुंतजिर होकर,
वो एक ठुठ की बीमार सी जो छाया है।
हर एक शख्श भटकता है इक बवंडर सा,
की ज़िन्दगी में यहाँ किसने चैन पाया है।
मुझे लगा कोई उत्सव है दर्द का वह भी,
कोई भी अश्क जब आँखों में टीमटीमाया है।
ग़लत पते का है मैं खत हूँ की डाकिया मुझको,
पराए हाथ में हर बार देके आया है।।
16. चिराग हो के न हो
चिराग हो के न हो दिल जला के रखते है,
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते है।
मिला दिया है पसीना भले ही मिटटी मेँ,
हम अपनी आँखों का पानी बचा के रखते है।
बस एक खुद से ही अपनी नही बनी वरना,
जमाने भर से हमेशा निभा के रखते है।
हमें पसन्द नहीं जंग में भी चालाकी,
जिसे निशाने पर रखते है बता कर रखते है।
कहीं खुलूस,कहीं दोस्ती,कहीँ पे वफा,
बड़े करीने से घर को सज़ा के रखते है।
अना पसदं है हस्ती जी सच सही लेकिन
नजर को अपनी हमेशा झुका के रखते है।।
17. वो मेरे रूबरू
वो मेरे रूबरू होकर ना मेरी कुछ खबर देगा,
मुझे पहचानने से आईना इंकार कर देगा।
लिखी है जो हवाओ पर इबादत मैं वो पढ़ लूंगा,
मुझे उम्मीद है मुझको वो इक ऐसी नजर देगा।
मेरे जख्मों को सीने तो मसीहा बनकर आया है,
मुझे डर है कि वो मौका पाते ही मेरा कत्ल कर देगा।
वो जिसने मुझे भड़काया है सारी उम्र सहरा में,
मुझे मालूम है इक दिन वो ही दीवारों-डर कर देगा।
नहीं चाहेगा तो वो खाक कर देगा मुझे मंजर,
अगर चाहेगा मुझको बियाबान में शजर देगा।।
18. ठोकर खा
ठोकर खा,पछताकर देख,
आँख जरा छलकाकर देख।
धर्म धरा रह जायेगा,
पैसे चार कमा कर देख।
फिर ना हंसेगा मुझ पर तु,
मन का चैन लुटा कर देख।
खुद भी तू जल जाएगा,
नफरत को दहकाकर देख।
मुझमें क्या है? क्या हूँ मैं,
मुझको गले लगाकर देख।।
19. मुझे
पत्थर बना दिया तो मिली ये सजा मुझे,
चुपके से संगतराश उठा ले गया मुझे।
खुशबु में डूब जायेगी यादों की डालियाँ,
होंठ पे फूल रख के कभी सोचना मुझे।
पानी खरीदने लगे बादल भी आज कल,
बारिश में भीगना भी लगा बे-मजा मुझे।
घर में हो चिराग तो फिर आंधियां भी हों,
लेना पड़ा दबाव मेँ ये फैसला मुझे।
तकिये के नीचे मैं तो ग़ज़ल रख कर सो गया,
आँख खुली तो आपका चेहरा मिला मुझे।
हाथोँ की कुछ लकीरें बदलती हुई मिली,
लगता है उसने ख़्वाब में कल छू लिया मुझे।
20.पड़ता है
दिल को ये अहसान दिलाना पड़ता है,
खामोशी को बात बनाना पड़ता है।
खुशबु को आवाज लगाने से पहले,
बाग़ में कोई फूल खिलाना पड़ता है।
चाँद की परछाई थाली में दिखा कर,
बच्चों को यूँ भी बहलाना पड़ता है।
रिश्ते कुछ दुरी तक साथ निभाते है,
एक न एक दिन हाथ छुड़ाना पड़ता है।
कुछ रिश्ते ऐसे भी तो बन जाते है,
लोगों को जाकर समझाना पड़ता है।।
21.हमने पत्थर दिया
हमने माँगा फूल लेकिन अपने पत्थर दिया,
एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया।
फितरतन जो लोग थे बिजली के नंगे तार-से,
हमने अनजाने में उन पर हाथ अपना धर दिया।।
होठ,ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
होठ ऑंखें,कान तो पहले ही थे उनके गुलाम,
एक अपना दिल बचा था-वो भी हाजिर कर दिया।
घर के मालिक ने ना जाने किस व्यवस्था के तहत,
लेटने की बैठक दी,बैठने को घर दिया।
नायकों को छोड़कर,हर बार जोकर ही चुने,
इस तरह अपनी हँसी को मोल हमने भर दिया।
अब भी हम आदिम गुफाओं से निकल पायँ नहीँ,
हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया।
अपने अंदर का अँधेरा और भी गहरा गया,
जब कभी हमने जलाया दोस्तो बाहर दिया।।
22.जन्म से मरण तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।।
आँख गीली,होठ ठंडे और दिल में आँधियाँ,
तीन मौसम एक ही संग ओढ़ता है आदमी।
सुबह पलना,शाम अरथी और खटिया दोपहर,
तीन लकड़ी यार दिन में तोड़ता है आदमी।
एक रोटी,दो लँगोटी,तीन गज कच्ची जमीन,
तीन चीजें जिंदगी भर जोड़ता है आदमी।
है यहाँ विश्वाश कितना आदमी का मौत पर,
मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी।।
23. तेरी जावेद जिंदगी के
तेरी जावेद जिंदगी के लिए,
तेरे फूलों की ताजगी के लिए,
तेरी राहत तेरी ख़ुशी के लिए,
तेरी महफ़िल की रौशनी के लिए,
आज हम अपना दिल जलाते है।''
कर के तामीर प्यार की महफ़िल,
वो सुनाते है किस्सा-ए-मुहमिल
बारहा पूछते है हाले दिल
कत्ल करने से पेश्तर कातिल,
कितनी हमदर्दीया जताते है।।
24. यूँ तो सब
यूँ तो सब आदमी है,मगर
आदमी आदमी मेँ बड़ा फर्क है,
मय नहीं न सही जहर क्यों पीजिये,
मौत में खुदखुशी में बड़ा फर्क है।
यह मेरी ज़िंदगी वह तेरी ज़िन्दगी,
जिंदगी जिंदगी में बड़ा फर्क है।
तेरे शेरों ने सरशार समझा दिया,
शायरी शायरी में बड़ा फर्क है।।
25.निकलने दो
अभी तुम मशरिक उम्मीद से सूरज निकलने दो,
सवेरा हो जायेगा रात को ढलने दो।
न आंच आए कभी ऐ बिजलियों!सहने गुलिस्तां पर
बला से आशियाँ मेरा अगर जलता है जलने दो।
सबिहे जिंदगी में रंग भरने से जरा पहले,
हमें हर खद्धों खालें जिंदगानी को बदलने दो।
न रोको इनके रस्ते रहबरो!रहो मुहब्बत में,
जिन्हें चलने आदत हो गई है उनको चलने दो।
दिखा देंगे हम भी की जीना किसको कहते है,
अंधेरी रात में जख्मी,जिगर के दाग जलने दो।।
26. सी लगे
मयगुसरों में दुश्मनी सी लगे
शेख के जफ में कमी सी लगे।
साथ है एक उम्र से फिर भी,
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे।
जिसपे साया है तेरी जुल्फों का,
तीरगी भी वह रौशनी सी लगे।
इश्क का हर कदम गहरा गुजरे,
हुस्न की हर अदा भली सी लगे।
रूठकर आप क्या गए मुझसे,
मुझकों दुनियां तहि तहि सी लगे।
हैं कुछ ऐसे भी बुलहवस जिनको,
दिल लगाना भी दिल्लगी सी लगे।
है मकीं कौन खाना-ए-दिल में,
शक्लों सूरत तो आपकी सी लगे,
उस सितमगर से क्या मिला आतिश,
दुश्मनी जिसकी दोस्ती सी लगे।।
27. नजर से
फिजायें मुस्कुराई फूल बरसें,
नजर जब मिल गई उनकी नजर से।
बना जाते है वीरानों को गुलशन,
गुजर जाते है दीवाने जिधर से।
बजाते खुद नाजरों के अमीन हैं,
नजर वह क्या जो नाजज्जरों को तरसे,
मेरा दिल हे मुहब्बत का मदीना,
इसे देखोंल मुहब्बत की नजर से।
परेशां से नजर आते है वो भी,
मीरे हाले परेशां के असर से,
फिजायें आज तक महकी हुई हैं,
हुई मुद्दत वो गुजरे थे इधर से।
मुहब्बत का सहारा ले के अखगर
गुजर जा जिंदगी की रहगुजर से।।
28. मिटा मुझे ने सकी
मिटा मुझे न सकी गर्दिशे जमाने की,
हजार कोशिशें करती रहीं मिटाने की,
जो जिनके क़दमों पे में जिन्दगी लुटा बैठा
वो बात करते हैं अब मेरे आजमाने की।
मैं उनकी राह में आँखें बिछाये बैठा हूँ।
जो खाये बैठे हैं कस्में इधर न आने की
मिटा दे देंरों हरम के ये फासले यारब
कोई जगह तो मिले हमको सर झुकाने की।।
29. आईना देखने से
आईना देखने से डरती है
जिंदगी हब्शियों की लड़की है
काँप उठते है मंदिरों के कलश,
जब वह बन ठन कर घर से निकलती है।
जहर पीते है रोजों शब जो लोग,
गम की डाईन उन्ही से डरती है।
अप्सराओं के नाच होते हैं,
जब हवा जंगलों में चलती हैं।
ऐसी क्या बात है मेरे खुन में,
गम की नागिन मुझे ही डसती है।
30. नाज
क्या कहूँ किस तौर से सूरत थी वो पाली हुई,
या किसी शायर के रंगीन ख्वाब में ढाकी हुई।
जुल्फ बल खाती हुई पर्वत पै जैसे हो घटा,
और सन्दल के शजर से सांप हो लिपटा हुआ।
क्या सुराहीदार गर्दन मदभरा वो जाम था,
पैकर ए हुस्न ओ अदा, गुल रुख था गुल अदाम था।
हुस्न की गर्मी से वो रुखसार क्या दहके हुए,
सुखी ए शर्म ओ हया से ओर भी महके हुए।
लाला जारों से कहीँ बड़ कर थे गालों के गुलाब,
कमसिनी पर आ रहा था झूमता गाता शबाब।
कहने से होती थी उसके सुबह भी और शाम भी,
उसके रुकने से थी रूकती गर्दिशे आययाम भी।
चाँद की चांदनी गोया सरापा नूर का,
और दोशीज़ा के कालिज में था पैकर हुर का।
31. कल चौदहवी की रात
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा यह चाँद है कुछ ने कहा चेहरा है तेरा।
हम भी वहीं मौजूद थे हमसे भी सब पूछा किए,
हम हंस दिए हम चुप रहे मंजूर था पर्दा तेरा।
इस शहर में किस से मिलें हमसे न छुंटी महफिलें,
हर शख्स तेरा नाम ले हर शख्स दीवाना तेरा।
तू बावफ़ा तू महरबान हम और तूझसे बदगुमां?
हमने तो पूछा था जरा यह वस्फ क्यों ठहरा तेरा।
कुचे को तेरे छोड़कर जोगी न बन जाएं मगर,
जंगल तेरे पर्वत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा।
हम पर ये सख्ती की नजर?हम हैं फकीर रहगुजर,
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा?
हाँ हाँ तिरी सूरत हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
उस शख्स के अश्आर से शुहरा हो क्या क्या तेरा।
बेदर्द सुन्नी हो तो चल कहता है क्या अच्छी गजल,
आशिक तेरा रुस्वा तेरा शायर तेरा इंसां तेरा।
32. कर दे
मिरे खुदा मूझे इतना तो मोतबर कर दे,
मैं जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे।
ये रोशनी के तआकुब में भागता हुआ दिन,
जो थक गया है तो अब उसको मुख्तसर कर दे।
मैं जिंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत,
जो हो सके तो दुआओं की बेअसर कर दे।
सितारा ए सहरी डूबने को आया है,
जरा कोई मेरे सूरज को बाख़बर कर दे।
कबीला वार कमानें कड़कने वाली हैं,
मेरे लहुँ की गवाही मुझे निडर कर दे।
मैं अपने ख्वाब से कटकर जियूँ तो मेरा खुदा,
उजाड़ दे मेरी मिट्टी को दर बदर कर दे।
मेरी जमीन मेरा आखिरी हवाला है,
सो मैं रहूं न रहूं इसको बारवर कर दे।
33. चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल,
एक तू ही धनवान है गौरी बाकी सब कंगाल।
हर आँगल ने सजे न तेरे उजले रूप की धूप,
छैल छःबिलि रानी थोड़ा घूँघट और निकाल।
भर भर नजरें देखें तुमको आते जाते लोग।
देख तुझे बदनाम न कर दे यह हिरनी सी चाल।
कितनी सुन्दर नार हो कोई मैं आवाज न दूँ,
तुझ से जिसका नाम नहीं है वह जी का जंजाल।
सामने तू आए तो धड़के मिलकर लाखों दिल,
अब जाना धरती और कैसे आते हैं भूचाल।
बीच में रंगमहल है तेरा खाई चारों ओर,
हमसे मिलने की अब गोरी तू ही राह निकाल।
कर सकते हैं चाह तिरी अब सरमद या मंसूर,
मिले किसी को दार यहाँ और खिंचे किसी की खाल।
आज की रात भी है कुछ भारी लेकिन यार क़तील,
तूने हमारा साथ दिया तू जिये हजारों साल।
34. सजा ले मुझको
अपने हांथों की लकीरों में सजा ले मुझको,
में हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मैं जो कांटा हुँ तो चल मुझसे बचाकर दामन,
मैं हूं गर फूल तो जुड़े में सजा के मुझको।
मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामां प्यारे,
तू दबे पांव कभी आके चुरा के मुझको।
तर्के उल्फत की कसम भी कोई होती है कसम,
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी,
यह तेरी सादादिली मार न डाले मुझको।
मैं समंदर भी हुँ मोती भी हूँ गोताजान भी,
कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको।
तूने देखा नहीं आईना से आगे कुछ भी,
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गवां ले मुझको।
कल की बात और है,मैं अब सा रहूं या न रहूँ।
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको।
बाधकर संगे वफ़ा कर दिया तू ने गरकाब,
कोन ऐसा है जो अब ढूंढ निकाले मुझको।
खुद को मैं बाँट न लूं कहीं दामन दामन,
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
बादा फिर बादा है मैं जहर भीपी जाऊं क़तील,
शर्त यह है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।।
35. जब रात जाके
जब रात जाके दूर उजालों में खो गई,
हर सोच थकके जेहन के अंदर ही सो गई।
अंदाज अजनबी था न लहजा उदास था,
कुछ बात ऐसी थी कि बस आँखे भिगो गई।
सब सूरतें बुझे हुए साए में ढल गई,
अब घर चलो की बहुत शाम हो गई।।
वो था करीब बहुत फिर भी जरा दुरियाँ के साथ,
इक लहर आके फासले इतने भी धो गई।
36. चांदनी रात में
चांदनी रात में कुछ फीके सितारों की तरह,
याद मेरी है वहां,गुजरी बहारों की तरह।
जज्ब होती रही हर बूंद मेरी आँखों में,
बात करता रहा वह हल्की फुहारों की तरह।
ये बयबा सही तन्हा तो यहां कुछ भी नहीं,
दूर तक फैले हैं साय भी चिनारों की तरह।
बार बस इतनी है इस मोड़ पे रास्ता बदला,
दो कदम साथ चला,वह भी हजारों की तरह।
कोई ताबीर नहीं कोई कहानी भी नहीं,
मैंने तो ख्वाब भी देखे है नजरों की तरह।
बादबा खोले जो मैने तो हवाएं पलटी,
दूर होता गया एक शख्स किनारों की तरह।
फातिमा तेरी खमोशी को भी समझा है कभी,
वह जो कहता रहा हर बात इशारों की तरह।।
37. पानी की तरह
पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा
या फिर तू धुआं बन के खलाओ में बिखर जा।
लहरा किसी छनकार पे ओ मोत हवा के,
सूखे हुए पत्तों से दबे पांव गुजर आ।
चढ़ती हुई इस धूप में साया तो ढलेगा,
एहसास कोई रेत की दीवार पे धर जा।
बुझती हुए इक शब का तमाशाई हूँ मैं भी,
ऐ सुबह के तारे मेरी पलकों पे ठहर जा।
लहरायेगा आकाश पे सदियां तेरा पैकर,
इक बार मेरी रूह के सांचे में उतर जा।
इस बन में रह करती है परछाई सदा की,
ऐ रात के राही तू जरा तेज गुजर जा।
उस पार चला है तो रशीद अपना असासा,
बेहतर है किसी आंख की दहलीज पे धर जा।
38.दिले हर कुष्ण
दिले हर कृष्ण ने अर्जुन को जीता,
वफ़ा हर दौर में लिखती है कविता।
मिलेंगे अब भी बनबासी हजारों,
नहीं किस राम के सीने में सीता।
जनम सागर में अमृत के बजाए,
जो शिव होता तो अब भी जगर पीता।
हवस को बस्ता ए जंजीरे गम रख,
खुला मत यह खूंखार चिता।
पुजारी हूँ मैं जिस देवी का सहबा,
उसी का दान है ये मेरी कविता।।
39. हम आप कयामत से
हम आप कयामत से गुजर क्यों नहीं जाते,
जीने की शिकायत है तो मर क्यों नहीं जाते ।
कतराते है बल खाते है घबराते है क्यों लोग,
सर्दी है तो पानी में उतर क्यों नहीं जाते।
आंखों में चमक है तो क्यों नहीं आती,
पलकों पे गुहर है तो बिखर क्यों नहीं जाती।
ये बात अभी मुझको भी मालूम नहीं है,
पत्थर इधर आते है उधर क्यों नहीं जाते।
तेरी ही तरह अब ये तेरे हिर्ज के दिन भी,
जाते नजर आते है मगर क्यों नहीं जाते।
अब याद कभी आये तो आईने से पूछो,
महबूब खिजां शाम को घर क्यों नहीं जाते।।
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