वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
वो कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तुगू
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है
सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर
झोले में उस के पास कोई संविधान है
उस सर-फिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप
वो आदमी नया है मगर सावधान है
फिस्ले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए
हम को पता नहीं था कि इतनी ढलान है
देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं
पावँ तले ज़मीन है या आसमान है
वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है
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ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो
दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक़ से वो ख़त तो निकालो यारो
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो
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होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिए
गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए
उन की अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाक़ू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए
बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिए
जिस ने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए
एक गुड़िया की कई कठ-पुतलियों में जान है
आज शाइ'र ये तमाशा देख कर हैरान है
ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
ये हमारे वक़्त की सब से सही पहचान है
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यूँ कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशन-दान है
मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैं ने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है
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जाने किस किस का ख़याल आया है
इस समुंदर में उबाल आया है
एक बच्चा था हवा का झोंका
साफ़ पानी को खँगाल आया है
एक ढेला तो वहीं अटका था
एक तू और उछाल आया है
कल तो निकला था बहुत सज-धज के
आज लौटा तो निढाल आया है
ये नज़र है कि कोई मौसम है
ये सबा है कि वबाल आया है
हम ने सोचा था जवाब आएगा
एक बेहूदा सवाल आया है
अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
तिरी सहर हो मिरा आफ़्ताब हो जाए
हुज़ूर आरिज़-ओ-रुख़्सार क्या तमाम बदन
मिरी सुनो तो मुजस्सम गुलाब हो जाए
उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना
ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तियाब हो जाए
वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं
सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए
बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
ग़लत कहूँ तो मिरी आक़िबत बिगड़ती है
जो सच कहूँ तो ख़ुदी बे-नक़ाब हो जाए
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पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं
बूँद टपकी थी मगर वो बूंदों बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उन को ख़बर होगी नहीं
आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मा'लूम है
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं
आप के टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएँगे पर
आप की ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं
सिर्फ़ शाइ'र देखता है क़हक़हों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है
यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है
कोई रहने की जगह है मिरे सपनों के लिए
वो घरौंदा ही सही मिट्टी का भी घर होता है
सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है
ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है
सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है
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ये शफ़क़ शाम हो रही है अब
और हर गाम हो रही है अब
जिस तबाही से लोग बचते थे
वो सर-ए-आम हो रही है अब
अज़मत-ए-मुल्क इस सियासत के
हाथ नीलाम हो रही है अब
शब ग़नीमत थी लोग कहते हैं
सुब्ह बदनाम हो रही है अब
जो किरन थी किसी दरीचे की
मरक़ज-ए-बाम हो रही है अब
तिश्ना-लब तेरी फुसफुसाहट भी
एक पैग़ाम हो रही है अब
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