Page 3 (बशीर बद्र Best Gazals)

31. थर्टी फाइव है बहुत भरपूर औरते-सी लगी

थर्टी फाइव है बहुत भरपूर औरते-सी लगी,
उससे मिलकर जिंदगी कुछ खूबसूरत सी लगी।
धूप के साधु को किसने प्यार से पानी दिया,
सुबह की पूजा मुझे शब की इबादत सी लगी।
फूल सी बच्ची ने मेरे हाथ से छिना गिलास,
आज अम्मी की तरह वो पूरी ओरत सी लगी।
आखिरी बेटी की शादी करके सोयी रात भर,
सुबह बच्चों की तरह खूबसूरत सी लगी।
कुछ दिनों के बाद उसने भी जरूरत ओढ़ ली,
कोई लड़की जब आई कयामत सी लगी।
लान की नाराजगी,ये शाम की परछाइयाँ,
आज आँगन की खामोशी भी शिकायत सी लगी।
चाँद के माथे पे बल,पलकों तलें झिलमिल चिराग,
उसकी नफरत भी मुझे कल शब मुहब्बत सी लगी।
सब मुगल दरबार की पोशाक पहने है फकीर,
शह की तनक़ीद कब्रों की तिजारत सी लगी।
बा वजू शाखों पे सोयी थी परिंदों की अज़ान,
रात बारिश भी मुझे सुबह-इबादत सी लगी।
वह बड़ी-सी कार से उतरी सियासत की तरह,
इक तवायफ़ आज मुझको शुहत सी लगी।
रोटियां कच्ची पकीं, कपडे बहुत गन्दे धुले,
मुझको पाकिस्तान की उसमें शरारत सी लग।।


32.मेरी आँखों में गम की निशानी नहीं

मेरी आँखों में गम की निशानी नहीं,
पत्थरों के प्यालों में पानी नहीं।
मैं तुझे भूलकर भी नहीं भूलता,
प्यार सोना,सोने का पानी नहीं।
मेरी अपनी भी मजबूरियां है बहुत,
मैं समुन्दर हूँ पिने का पानी नहीं।
मेरा चेहरा लकीरों की तकसीम है,
आइनों में मेरी बदगुमानी नहीं।
शाम के बाद बच्चों से कैसे मिलूं,
अब मेरे पास कोई कहानी नहीं।
मौसमो के लिफाफे बदलते रहे,
कोई ताहिर इतनी पुरानी नहीं।
कोई आसेब है इस हसीं शह पर,
शाम रोशन है लेकिन सुहानी नहीं।।


33.साथ चलते जा रहे है।

साथ चलने जा रहे हैं, पास आ सकते नहीं,
इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं।
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज़ में,
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं।
उसकी भी मजबूरियां है, मेरी भी मजबूरियां,
रोज मिलते है मगर घर पर बता सकते नहीं।
किसने किसका नाम ईंटों पर लिखा है खून से,
इश्तिहारों से ये दीवारों छुपा सकते नहीं।
राज जब सीने से बाहर हो गया तो अपना कहाँ,
रेत पर बिखरे हुए आंसू उठा सकते नहीं।
शह में रहते हुए हमको जमाना हो गया,
कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीँ।
उसकी बातों से महकने लगता है सारा बदन,
प्यार की खुश्बू को सीने में छुपा सकते नहीं।
पत्थरों के बरतनों में आँसुओं को क्या रखें,
फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीँ।।


34. आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना

आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना,
शीशे का मुकद्दर है टूट कर भिखर जाना।
तारों की तरह शब के सीने में उतर जाना,
आहट न हो कदमों की इस तरह गुजर जाना।
नश्शे में सम्भलने का फन यूँ ही नहीं आता,
उन जुल्फों से सीखा है,लहरा के सम्भल जाना।
भर जायेंगे आँखों में आँचल में बंधे बादल,
याद आयेगा जब गुल का शबनम पे भिखर जाना।
हर मौड़ पे दो आँखे हमसे यहीं कहती है,
जिस तरह भी मुमकिन हो,तुम लौट कर घर आना।
पत्थर को मेरा साया आइना सा चमका दे,
जाना तू मेरा शीशा यूँ दर्द से भर जाना।
ये चाँद सितारे तुम औरों के लिए रख लो,
हमको यहीं जीना है हमको यहीं मर जाना।
जब टूट गया रिश्ता सर-सब्ज पहाड़ों से,
फिर तेज हवा जाने,हमको है किधर जाना।।

35.इसीलिए तो अजनबी हूँ मैं

इसिकिए तो यहां अब भी अजनबी हूँ  मैं,
तमाम लोग फ़रिश्ते है, आदमी हूँ मैं।
जईफ बूढ़ी जो पुल पर उदास बैठी है,
उसी की आँख में लिखा है, जिंदगी हूँ।
है पक्की उम्रों की इक बेजबान सी लड़की,
उसी का रिश्ता हूँ और वो भी आखिरी हूँ मैं।
तमाम रात चिरागों में मुस्कुराती थी,
वो अब नहीं है,अगर उसकी रौशनी हूँ मैं।
कहीं मैं और था मगरिब कि जो अजान सुनी,
इन आँसुओं में सहर की नमाज हूँ मैं।
सितारे राह के है, गलिब मीर और इक़बाल,
कलम हूँ बच्चे का,तख्ती नयीं नयीं हूँ मैं,
अगर वो चाहें तो जिन्दा जला भी सकते है,
दुआ के हाथ,हुकूमत की बेबसी हूँ मैं।।


36. पत्तों का दुःख खोज रहे हो

पत्तों का दुःख खोज रहे हो उड़ने वाले पंछी में,
आंसू तो पल भर का मुसाफिर पलकों की इस बस्ती में।
हर चेहरे में तेरा चेहरा ढूढं के तुझको खो बैठे,
घर का रास्ता भूल गए हम घर जाने की जल्दी मेँ।
इक इक घर का नाम ओ नम्बर पूछ के दिन भी डूब चला,
बेलों के साये के पीछे शाम खड़ी थी खिडकी में।
वो तितली दिये की लो को फूल समझ कर बैठ गई,
जब चांदी के बाल नजर आये बच्ची को कंगी में।
वो अनपढ़ था फिर भी उसने पढ़े लिखे लोगों से कहा,
इक अस्वीर कई खत भी है साहब आपकी रद्दी में।


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