गुलजार Best Gazals

1. यार जुलाहे

मुझको भी तरकीब सिख कोई,यार जुलाहे!
अक्सर तुझको देखा की तान बुनते
जब कोई तागा टूट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
एक भी गांठ गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं,मेरे यार जुलाहे!

2.मुझको एक नज्म का वादा है मिलेगी मुझको

मुझको एक नज्म का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नज्मो में जब दर्द को नींद आने लगे
जर्द-सा चेहरा लिए चाँद उफ़क और पहुंचे
दिन अभी पानी में हो,रात किनारे के करीब,
न अँधेरा,न उजाला हो,यह न रात,न दिन,
जिस्म जब खत्म हो और रुज को जब सास आये
मुझसे एक नज्म का है,मिलेगी मुझको।

3. वो जो शायर था

वो जो शायर था,चुप सा रहता था
बहकी बहकी सी बातें करता था
आंखे कानों वे रखके सुनता था
गूंगी खामोशियों की आवाजें जमा करता था
चाँद के साये गीली-गीली-सी नूर की बुँदे ओक में भर के खड़खड़ाता था
रूखे रूखे से रात के पत्ते ,वक्त के इस घनघोर जंगल मेँ कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ,वही तो वो अजीब सा शायर रात को उठके कोहनियों के बल चाँद की ठोड़ी को चूमा करता था
चाँद से गिरकर मर गया है वो
लोग कहते है खुदखुशी की है।

4.  वक़्त

मैं उजड़े हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलंगियां
गिरता हुआ गर्दने इन दरख्तों की छुपता हुआ
जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था वह सूरज
त आबुक में था उसके मैं गिरफ्तार करने गया था
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था।

5.  फ़सादात

आग का पेट बड़ा है
आग को चाहिए हर लहजा चबाने के लिए
ख़ुश्क करारे पत्ते
आग कर लेती है तिनको पे गुजारा लेकिन
आशियानों को निगलती है निवालों की तरह,
आग को सब्ज हरी टहनियां अच्छी नहीं लगती,
ढूंढती है कि कहीं सूखे हुए जिस्म मिलें!
उसको जंगल की हवा रास बहुत है फिर भी,
अब गरीबों की कई बस्तियों पर देखा है हमला करते,
आग अब मंदिर-मस्जिद की गीजा खाती है!
लोगों के हाथों में अब आग नहीँ.....
आग के हाथ में कुछ लोग है अब।

6. मुझको इतने से काम पे रख लो

मुझको इतने से काम पर रख लो
जब भी सीने में झूलता लाकेट उल्टा हो जाय
तो मैं हाथों से सीधा करता रहूँ उसको
जब भी आवेजा उलझे बालों में
मुस्कुरा के बस इतना सा कह दो
आह !चुभता है यह, अलग कर दो।
जब गरारे में पाँव फस जाये
या दुप्पटा किसी किवाड़ से अटके
इक नजर देख लो तो काफी है
प्लीज कह दो तो अच्छा है
लेकिन मुस्कुराने की शर्त पक्की है
मुस्कुराहट मुआवजा है मेरा
मुझको इतने से काम पर रख लो।

7.  बर्फ पिघलेगी

बर्फ पिघलेगी जब पहाड़ों से
और वादी से कोहरा सिमटेगा
बिज अंगड़ाई लेके जागेंगे
अपनी अलसाई आँखे खोलेंगे
सब्जा बह निकलेगा ढलानों पर
गौर से देखना बहारों में
पिछले मौसम के भी निशा होंगे
कोपलों की उदास आँखों में
आसुओ की नमी बची होगी।

8.     साहिल

चौक से चल कर,मण्डी से बाजार से हो कर
लाल गली से गुजरी है, कागज की कश्ती
बारिश के लावारिस पानी में बैठी बेचारी कश्ती
शहर की आवारा गलियों में सहमी-सहमी पूछ रही है
कश्ती का साहिल होता है
मेरा भी कोई साहिल होगा
एक मासूम से बच्चे ने
बेमानी को मानी दे कर
रद्दी के कागज पर कैसा जुल्म किया है।

9.    गुफ्तगू

कभी-कभी जब मैं बैठ जाता हूँ
अपनी नज्मों के सामने निस्फ दायरे में
मिजाज पूछू
की एक शायर के साथ कटती है किस तरह से?
वो घूर के देखती है मुझ को
सवाल करती है!उनसे मैं हूँ?
या मुझसे है वो?
वो सारी नज्में,की मैं समझता हूँ वो मेरे जिन से है लेकिन
वो यूँ समझती है उनसे है मेरा नाक नक्शा
ये शक्ल उनसे मिली है मुझको!
मिजाज पूछू मैं क्या? की इक नज्म आगे आती है
छू के परेशानी पूछती है
'बताओ गर इन्तिशार है कोई सोच में तो?
मैं पास बैठूँ?
मदद करूँ और बिन दूँ उलझनें तुम्हारी?"
"उदास लगते हो"एक कहती है पास आ कर
"जो कह नहीं सकते तुम किसी को
तो मेरे कानों में डाल दो राज
अपनी सरगोशियों के,लेकिन
गर एक सुनेगा,तो सब सुनेंगे!"
भटक के कहती है एक नाराज नज्म मुझसे
मैं कब तक अपने गले में लुंगी तुम्हारी
आवाज की खुराशे।
इक और छोटी सी नज्म कहती है
पहले भी कह चुकी हूँ शायर,
चढ़ाने चढ़ते अगर तेरी साँस फूल जाये
तो मेरे कंधो पे रख दे,कूछ बोझ मैं उठा लूँ।
वो चुप सी इक नज्म पीछे बैठी जो टकटकी बाधे
देखती रहती है मुझे बस,
न जाने क्या है उसकी आँखों का रंग तुम और चला गया है
अलग अलग है मिजाज सब के
मगर कहीं ना कहिं वो सारे मिजाज मुझमें बसे हुए है।
मैं उनसे हूँ या,,,,,,,
मुझे ये एहसास हो रहा है
जब मैं उनको तखलिफ दे रहा था
वो मुझे।

10.जिक्र जेहलम का है,बात है दिने की

जिक्र जेहलम का है, बात है दिने की
चाँद पुखराज का,रात पश्मीने की
कैसे ओडेगी उधड़ी हुई चांदनी
रात कोशिश में है चाँद को सीने की
कोई ऐसा गिरा है नजर से की बस
 हम ने सुरत न देखी फिर आईने की
दर्द में जावदानी का अहसास था
हम ने लड़ो से पाली खलिश सीने की
मोत आती है हर रोज ही रु -ब-रु
जिंदगी ने कसम दी है कल जीने की।

11. हाँ मेरे गम उठा लेता है गमख्वार नही

हाँ मेरे गम तो उठा लेता है,गमख्वार नही।
दिल पड़ोसी है मगर मेरा तरफदार नही।।
जाने वालों को कहाँ रोक सकता है कोई।
घर में दरवाजा तो है,पीछे की दीवार नही।।
आप के बाद ये महसूस हुआ है हम को।
जीना मुश्किल नहीं और मरना भी दुश्वार नही।।
कांच के घर है यहां सब के,बस इतना सोचें।
अर्ज करते है फक्त आप से तकरार नही।।


12. दर्द हल्का है

दर्द हल्का है सांस भारी है।
जिये जाने की रस्म जारी है।।
आप के बाद हर घड़ी हमने।
आप के साथ गुजारी है।।
रात को चाँदनी तो ओढा दो।
दिन की चादर अभी उतारी है।।
शाख पर कोई कहकहा तो खिले।
कैसी चुप- सी चमन में तारी है।।
कल का हर वाकया तुम्हारा था।
आज की दास्ताँ हमारी है।।

13.दिखाई देते है, धुंध में अब भी आये कोई

दिखाई देते है धुंध में अब भी साये कोई।
मगर बुलाने से वक्त लौटे न लौटे आय कोई।।
मेरे मुहल्ले का आसमां सुना हो गया है।
पतंग उड़ाय,फलक में पेचे लड़ायें कोई।।
वो जर्द पत्ते जो पेड़ से टूट कर गिरे थे।
कहाँ गये बहते पानियों में,बुलाये कोई।।
जईफ बरगद के हाथ में रेशा आ गया है।
जताएं आँखों पे गिर रही है,उठाए कोई।।
मजार पे खोल कर गरेबां, दुवाएं मांगे।
जो आय अबके,तो लौट कर फिर न जाये कोई।।

14.फूलों की तरह लब खोल कभी

फूलों की तरह लब खोल कभी।
खुशबु की जबाँ में बोल कभी।।
अल्फाज परखता रहता है।
आवाज हमारी तोल कभी।।
अनमोल नही लेकिन फिर भी।
पूछो तो मुफ्त का मोल कभी।।
खिड़की में कटी है सब रातें।
कुछ चोरस कुछ गोल कभी।।
ये दिल भी दोस्त जमीं की तरह।
हो जाता है डांवाडोल कभी।।

15.तिनका-तिनका काटें तोड़े

तिनका-तिनका काटें तोड़े,सारी रात कटाई की।
क्यों इतनी लंबी होती है,चांदनी रात जुदाई की।।
नींद में कोई अपने आप से बातें करता रहता है।
काल कुएं में गूँजती है, आवाज किसी सौदाई की।।
सीने में दिल की आहट जैसे कोई जासूस चले।
हर साये का पीछा करना,आदत है हरजाई की।।
आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे-से भर जाते है।
क्या तुमने उड़ती देखी है, रेत कभी तन्हाई की।।
तारों की रोशन फसलें और चाँद की दराती थी।
साहू ने गिरवी रख ली थी मेरी रात कटाई की।।

16.    शहर

खोल कर बाँहों के उलझे हुए से मिसरे
हौले से चुमके दो नींद से झलकी हुई  पलकें
होंठ से लिपटी हुई जुल्फ को मिन्नत से हटा कर
कान पर धीमें से रख दूंगा जो आवाज के दो होंठ
मैं जगाऊँगा तुम्हे नाम से"सोना-ओए-सोना"!!
और तुम धीरे से जब पलंके उठाओगी न,
उस वक्त दूर ठहरे पानी पे सहर खोलेगी आंखे
सुबह हो जायेगी तब सुबह जमीन पर।

17.        लैण्डस्केप

दूर सुनसान से साहिल के करीब
एक जवां पेड़ के पास
उम्र के दर्द लिए,वक्त का मटियाला दुशाला ओढे
बूढा सा पाम का इक पेड़ खड़ा है कब से
सैकड़ों सालों से तन्हाई के बाद
झुझके कहता है जवां पेड़ से,
यार सर्द सन्नटा है तन्हाई है,
कुछ बात करो'

18.     दंगे

शहर में आदमी कोई नहीं कत्ल हुआ।
नाम थे लोगों के जो कत्ल हुए
सर नही काटा किसी ने भी कहीं पर कोई
लोगों ने टोपियाँ काटी थी,की जिनमें सर थे
और ये बहता हुआ सुर्ख लहू है जो सड़क पर
सिर्फ आवाजें जबां हुए खून गिरा था।।

19.     विरासत

अपनी मर्जी से तो मजहब भी नहीं उसने चुना था,
उसका मजहब था जो माँ बाप से ही उसने विरासत में लिया था।
अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है?
उस पे ये मल्क भी लाज़िम था,की माँ बाप का घर था इसमें,
ये वतन उसका चुनाव तो नहीं था।
वो तो कुल नो ही बरस का था उसें क्यूँ चुनकर
फिर्कादाराना फसादात ने कल कत्ल किया।।

20.      फासला

तकिये पे तेरे सर का वो टिप्पा है पड़ा है।,
चादर में तेरे जिस्म की वो सोंधी सी खुशबु
हाथों में महकता है तेरे चहरे का अहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी करीब है कि तुझे देखूं तो कैसे,
थोड़ी सी अलग हो तो तेरे चहरे को देखूँ।।

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