1. हमनें ढूंढे
हमने ढूंढे भी तो ढूंढे है सहरे कैसे,
इन सराबों पे कोई उम्र गुजरे कैसे।
हाथ को हाथ नहीं सूझे,वो तारीकी थी,
आ गए हाथ में क्या जाने सितारे कैसे।
हर तरफ शोर है उसी ना का है दुनिया में,
कोई उसको जो पुकारे तो पुकारे कैसे।
दिल बूझा जीतने थे अरमान सब खाक हुए,
राख में फिर ये चमकते शरारे कैसे।
न तो दम लेती है तू और न हवा थमती है,
जिंदगी जुल्फ तिरी कोई सवारे कैसे।।
2. यकीन का अगर
यकीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा,
तो शुक्र कीजिये की अब कोई गिला नहीं रहा।
न हिज्र है न वस्ल है, अब इनको कोई क्या कहे,
की फूल शाख पर तो है मगर खिला नहीं रहा।
खजाने तुमने पाए तो गरीब जैसे हो गए,
पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा।
बदल गई है ज़िन्दगी बदल गए है लोग भी,
खुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा।
वो दुश्मनी बखिल से हुई है तो इनती खैर है,
की जहर उसके पास है मगर पिला नहीं रहा।
लहुँ में जज्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है,
कई सवाल जहन को जो दे जिला नहीं रहा।।
3. जीना मुश्किल
जीना मुश्किल है कि आसान जरा देख लो,
लोग लगते है परेशान जरा देख तो लो।
फिर मुक़र्रर कोई सरगर्म सरे-मिम्बर है,
किसके है कत्ल का सामान जरा देख तो लो।
ये नया शहर तो है खूब बसाया तुमने,
क्यों पुराना हुआ वीरान जरा देख तो लो।
इन चिरागों के तले ऐसे अँधेरा क्यों है,
तुम भी रह जाओगे हैरान जरा देख तो लो।
ये सताइश की तम्मना ये सिले जी परवाह,
कहाँ लाए है ये अरमान जरा देख तो लो।।
4. तू किसी पे जान
तू किसी पे जान को निसार कर दे की दिल की क़दमों मेँ डाल दे,
कोई होगा तेरा यहाँ पर कभी ये ख्याल दिल से निकाल दे।
मेरा शासक भी अजीब हैं कि जवाब ले कर आय हैं,
मुझे हुक्म है कि जवाब का मुझे सीधा सीधा सवाल दे।
रंगों पै मैं जम गया सर्द खुँ न मैं चल सकूँ न मैं हिल सकूँ,
मीरे गम की धूल को तेज कर,मीरे खून को तू उबाल दे।
वो जो मुस्कुरा के मिला कभी तो ये फ़िक्र जैसे मुझे हई,
कहूं अपने दिल का जो मुद्दआ कहीँ मुस्कुरा के न ताल दे।
ये जो जहन दिन की है रौशनी तो ये दिल है रात में चाँदनी,
मुझे ख्वाब उतने ही चाहिये ये जमाना जितने ख्याल दे।।
5. एतेराफ़
सच तो ये है कुसूर अपना है
चाँद को छूने की तम्मना की
आसमान को जमीन पर माँगा
फूल चाहा की पत्थरों पे खिले
काँटों में की तलाश खुशबु की
आग से मांगते रहे ठंडक
ख्वाब जो देखा
चाहा सच हो जाए
इसकी हमको सजा तो मिलनी थी।
6. खुदा हाफ़िज़
मुझे वो धुंध में लिपटी हुई मासूम सदियां याद आती है,
की जब तुम हर जगह थे,
हर तरफ थे
हर कहीं थे तुम,
रिहाईश थी तुम्हारी आसमानो में,
जमीन के भी मकीं थे तुम,
तुम्ही थे चाँद और सूरज के मुल्कों में,
तुम्हीं तारों की नगरी में,
हवाओं में,
फिजाओ में,दिशाओं में,
सुलगती धुप में तुम थे,
तुम्ही थे ठंडी झांवो में,
तुम्हीं खेतों में उगते थे,
तुम्ही पेड़ों पर फलते थे,
तुम्हीं बारिश की बूंदों में,
तुम्हीं सारी घटाओं में,
हर सागर के आगे तुम थे,
अगर पर्वत के ऊपर तुम थे,
वबाओं में
हर इक सैलाब में सब जलजलों में
हादसों में भी
रहा करते थे छिप कर तुम,
हर इक आंधी में
तूफ़ा में,समुन्दर में,बयांबान में,
हर एक मौसम हर एक रुत में थे,
तुम्हीं हर एक कर्म में थे,
सभी पाकीजा नदियों में,
मुकद्दस आग में तुम थे,
दरिंदो और चरिंदो
बिछुओं में नाग में तुम थे,
सभी के डंक में तुम थे,
जो इंसानों पे आते है
हर कहर में तुम थे
मगर सदियों के तन से लिपटी,
धुंध अब छट रही है,
अब कहीं रौशनी सी हो रही है,
और कहीँ कुछ तीरगी सी घट रही है,
ये उजाले साफ कहते है,
न अब तुम हो हवाओ में,
न अब तुम हो घटाओ में,
न बिच्छु में न तो अब नाग में तुम हो,
न आंधी और तूफान,
और न तो पाकीज़ा नदियों,
और मुक़द्दस आग में तुम हो,
अदब है शर्त
बस उतना कहूंगा
तुमने शायद पे है ये मेहरबानी की,
मैं अपने इल्म की मशाल लिए पहुँचा जहां हूँ,
मैंने देखा तुमने है नस्ले-मकानी की,
मगर अब भी खला के आसमान में
तुम ही रहते हो
जिसे कहते हैं किस्मत
अस्ल में हालात का बिफरा समुन्दर है,
मगर अब तक यकीन-आम है,
बनके समुन्दर तुम ही बहते हो,
मुझे ये मानना होगा,
वहां तुम हो,
जहां ये राज है पिंहाँ,
की ऐसी कायनाते-बेकरां की इब्तेदा,
और इंतिहा क्या है
वहां तुम हो
जहां ये आघ्ही है
मौत के, इस पर्दे के पीछे क्या है,
अभी कुछ दिन वहां रह लो,
मगर इतना बता दूं मैं
उधर मैं आने वाला हूँ।।
7. जब आईना कोई देखो
जन आईना कोई देखो इक अजनबी देखो,
कहां पर लाई है ये ज़िन्दगी देखों।
मुहहब्तों में कहां अपने वास्ते फुर्सत,
जिसे भी चाहो वो चाहे मिरी ख़ुशी देखो।
जो हो सके तो ज्यादा ही चाहना मुझको,
कभी जो मेरी मुहब्बत में कोई कमी देखो।
जो दूर जाए तो गम है जो पास आए तो दर्द,
न जाने क्या है वो कम्बक्त आदमी देखो।
उजाला तो नहीं कह सकते इसको लेकिन,
जरा सी कम तो हुई ये तिरंगी देखो।।
8. निगल गए सब
निगल गए सब की सब समुन्दर, जमीं बची अब कहीं नहीं है,
बचाते हम अपनी जान जसमें वो किश्ती भी अब कहीँ नहीं है।
बहुत दिनों बाद पाई फुर्सत तो मैने खुद को पलट कर देखा,
मगर मैं पहचानता था जिसको वो आदमी अब कहीँ नहीं है।
गुजर गया वक्त दिल पे लिखकर ना जाने कैसी अजीब बातें,
वर्क पलटता हूँ मैं जो दिल के तो सादगी अब कहीँ नहीँ है।
वो आग बरसी है दोपहर में की सारे मंजर झुलस गए है,
यहाँ सवेरे जो ताजगी थी वो ताजगी अब कहीँ नहीं है।
तुम अपने कस्बों में जा कर देखों वहाँ भी अब शहर ही बसे है,
कि ढूढ़ते हो जो जिंदगी तुम वो जिंदगी अब कहीँ नहीं है।।
9. बरसों की रस्मों राह थी
बरसों की रस्मों राह थी इक रोज उसने तोड़ दी,
हुशियार हम भी कम नहीं,उम्मीद हमने छोड़ दी।
गाँठ पड़ी है किस तरह ये बात है कुछ इस तरह,
वो डोर टूटी बारहा,हर बार हमने जोड़ दी।
उसने कहा कैसे हो तुम, बस लब खोले ही थे,
और बात दुनिया की तरफ जल्दी से उसने मोड़ दी।
वो चाहता है सब कहें, सरकार तो बेऐब है,
जो देख पाय ऐब वो हर आँख उसने फोड़ दी।
थोड़ी सी पाई खुशि तो सो गई थी जिंगदी,
ऐ दर्द तेरा शुक्रिया,जो इस तरह झंझोड़ दी।।
10. प्यास की कैसे
प्यास की कैसे लाए ताब कोई,
नहीं दरिया तो हो सराब कोई।
जख्म दिल में जहाँ महकता है,
इसी क्यारी में था गुलाब कोई।
रात बजती थी दूर शहनाई,
रोया पीकर बहुत शराब कोई।
दिल को घेरे है रोजगार के गम,
रद्दी में खो गई किताब कोई।
कौन सा जख्म किसने बक्शा है,
इसका रखे कहाँ हिसाब कोई।
फिर मैं सुनाने लगा हूँ इस दिल की,
आनेवाला है फिर अज़ाब कोई।
शब की दहलीज पर शफक है लहुँ,
फिर हुआ कत्ल आफ़ताब कोई।।
11. मैं कब से कितना तन्हा हूँ
मैं कब से कितना हूँ तनहा मुझे पता भी नहीँ,
तेरा तो कोई खुदा है मेरा खुदा भी नहीं।
कभी ये लगता है अब तो ख़त्म हो गया है सब कुछ,
कभी ये लगता है कि अभी तो कुछ हुआ भी नहीं।
कभी तो बात की उसने कभी रहा खामोश,
कभी हंस के मिला और कभी मिला भी नहीं।
कभी जो तल्ख-कलामी थी वो भी खत्म हुई,
कभी गिला था हमें उनसे अब गिला भी नहीं।
वो चीख उभरी बडी देर गुंजी,डूब गई,
हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं।।
12. अभी जमीर में
अभी जमीर में थोड़ी-सी जान बाकि है,
अभी हमारा कोई इम्तेहान बाकी है।
हमारे घर को तो उजड़े हुए जमाना हुआ,
अगर सुना है अभी वो माकन बाकि है।
हमारी उनसे जो थी गुफ्तगू,वो खत्म हुई
मगर सुकूत-सा कुछ दरमियान बाकी है।
हमारे जहन की बस्ती में आग ऐसी लगी है,
की जो था खाक हुआ एक दुकान बाकि है।
जो जख्म भर गया अरसा हुआ मगर अब तक,
जरा सा दर्द जरा सा निशान बाकि है।
जरा-सी बात जो फैली तो वो दास्तां बनी,
वो बात खत्म हुई दास्तान बाकी है।
अब आया तीर चलाने का फन तो क्या आया,
हमारे हाथ मेँ खाली कमान बाकि है।।
13. वो जमाना
वो जमाना गुजर गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का।
ढूढ़ता था जो इक नई दुनिया,
लौटके अपने घर गया कबका।
वो जो लाया था, हमको दरिया तक,
पार अकेले उतर गया कब का।
उसका जो हॉल है वही जाने,
अपना तो जख्म भर गया कबका।
ख्वाब डर ख्वाब था जो शिरजा,
अब कहाँ है बिखर गया कब का।।
14. अजीब आदमी था वो
अजीब आदमी था वो
मुहब्बतों के गीत गाता था,
बगावतों का राग था
कभी वो सिर्फ फूल था
कभी वो सिर्फ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफ़्सीलों से कहता था
की एक दिन बदल भी सकते है
वो जबीरों से कहता था
तुम्हारे सर पर जो सोने के जो ताज है
कभी पिंघल भी सकते है
वो बाशिदों से कहता था
मैं तुमको तोड़ सकता हूँ
सहुलतों से कहता था
में तुमको छोड़ सकता हूँ
हवाओ से कहता था
मैं तुमको मोड़ सकता हूँ
वो ख्वाब से ये कहता था
की तुझको सच करूँगा मैं
वो आरजू से कहता था
मैं तेरा हमसफ़र हूँ
तेरे साथ ही चलूंगा मैं
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंजिलें
कभी नहीँ थाकुंग मैं
वो ज़िन्दगी से कहता था
की तुझको मैं सजाऊंगा
तू मुझ से चाँद मांग ले
मैं चाँद लेके आऊँगा
वो आदमी से कहता था
की आदमी से प्यार कर
उजड़ रही है ये जमीं
कुछ इसका अब सिंगार कर
अजीब आदमी था वो
वो जिंदगी के सारे गम
तमाम दुख
हर एक सितम से कहता था
मैं तुमको जित जाऊंगा
की तुमको तो मिटा ही देगा
एक रोज आदमी
भुला ही देगा ये जहाँ
मेरी अलग है दास्ताँ
वो आँखों जिनमें है सकत
वो होठं जिनपे लफ्ज है
रहूंगा उनके दरमियान
की जब मैं बीत जाऊंगा
अजीब आदमी था वो।।।
15. मेले
बाप की उंगली थामें
एक नन्हा सा बच्चा
पहले पहल मेले में गया तो
अपनी भोली भाली
कचों जैसी आँखों से
इक दुनिया देखी
ये क्या है और वो क्या है
सब उससे पूछा
बाप ने झुककर
कितनी सारी चीजों और खेलों का नाम बताया
नट का,बाजीगर का,जादूगर का,
उसको नाम बताया
फिर वो घर की जानिब लोटे
गोद के झूले में
बच्चे से बाप के कंधे पर सर रखा
बाप ने पूछा
नींद आती है?
वक्त भी एक परिंदा है
उड़ता रहता है
गाँव में फिर एक मेला आया,
बड़े बाप ने कांपते हाथों से
बेटे की बाह को थामा
और बेटे ने
ये क्या है वो क्या है जितना भी बन पाया समझाया,
बाप ने बेटे के कंधे पर सर रखा
बेटे ने पूछा नींद आती है
बाप ने मुड़के
याद की पगडंडी पर चलकर
बीते हुए सब अच्छे-बुरे और कड़वे-मीठे
लम्हों के पेरों से उड़ती
धूल को देखा फिर
अपने बेटे को देखा
होंठों पर
इक हल्की सी मुस्कान आई
होले से बोले हां!!!
मुझको अब नींद आती है।
16. याद उसे भी एक
याद उसे भी एक अधूरा अफसाना तो होगा,
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा।
डर हमको भी लगता है रस्ते ने सन्नाटे से,
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल,अब जाना तो होगा।
कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें,
जो ये फर्क समझ लेगा वो दीवाना तो होगा।
दिल की बातें नहीं है तो दिलचस्प ही कुछ बातेँ हों,
जिन्दा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा।
जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाजां,
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा।।
17. हमारे दिल में
हमारे दिल में अब तल्खी नहीं है,
मगर वो बात पहले सी नहीं है।
मुझे मायूस भी करती नहीं है,
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है।
बहुत-से फायदे है मसलेहत में,
मगर दिल की तो ये मर्जी नहीं है।
हर इक की दास्ताँ सुनते है जैसे,
कभी हमने मुहब्बत की नहीं है।
है इक दरवाजा बिन दीवार दुनिया
मगर गम से यहां कोई नहीं है।।
हमने ढूंढे भी तो ढूंढे है सहरे कैसे,
इन सराबों पे कोई उम्र गुजरे कैसे।
हाथ को हाथ नहीं सूझे,वो तारीकी थी,
आ गए हाथ में क्या जाने सितारे कैसे।
हर तरफ शोर है उसी ना का है दुनिया में,
कोई उसको जो पुकारे तो पुकारे कैसे।
दिल बूझा जीतने थे अरमान सब खाक हुए,
राख में फिर ये चमकते शरारे कैसे।
न तो दम लेती है तू और न हवा थमती है,
जिंदगी जुल्फ तिरी कोई सवारे कैसे।।
2. यकीन का अगर
यकीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा,
तो शुक्र कीजिये की अब कोई गिला नहीं रहा।
न हिज्र है न वस्ल है, अब इनको कोई क्या कहे,
की फूल शाख पर तो है मगर खिला नहीं रहा।
खजाने तुमने पाए तो गरीब जैसे हो गए,
पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा।
बदल गई है ज़िन्दगी बदल गए है लोग भी,
खुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा।
वो दुश्मनी बखिल से हुई है तो इनती खैर है,
की जहर उसके पास है मगर पिला नहीं रहा।
लहुँ में जज्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है,
कई सवाल जहन को जो दे जिला नहीं रहा।।
3. जीना मुश्किल
जीना मुश्किल है कि आसान जरा देख लो,
लोग लगते है परेशान जरा देख तो लो।
फिर मुक़र्रर कोई सरगर्म सरे-मिम्बर है,
किसके है कत्ल का सामान जरा देख तो लो।
ये नया शहर तो है खूब बसाया तुमने,
क्यों पुराना हुआ वीरान जरा देख तो लो।
इन चिरागों के तले ऐसे अँधेरा क्यों है,
तुम भी रह जाओगे हैरान जरा देख तो लो।
ये सताइश की तम्मना ये सिले जी परवाह,
कहाँ लाए है ये अरमान जरा देख तो लो।।
4. तू किसी पे जान
तू किसी पे जान को निसार कर दे की दिल की क़दमों मेँ डाल दे,
कोई होगा तेरा यहाँ पर कभी ये ख्याल दिल से निकाल दे।
मेरा शासक भी अजीब हैं कि जवाब ले कर आय हैं,
मुझे हुक्म है कि जवाब का मुझे सीधा सीधा सवाल दे।
रंगों पै मैं जम गया सर्द खुँ न मैं चल सकूँ न मैं हिल सकूँ,
मीरे गम की धूल को तेज कर,मीरे खून को तू उबाल दे।
वो जो मुस्कुरा के मिला कभी तो ये फ़िक्र जैसे मुझे हई,
कहूं अपने दिल का जो मुद्दआ कहीँ मुस्कुरा के न ताल दे।
ये जो जहन दिन की है रौशनी तो ये दिल है रात में चाँदनी,
मुझे ख्वाब उतने ही चाहिये ये जमाना जितने ख्याल दे।।
5. एतेराफ़
सच तो ये है कुसूर अपना है
चाँद को छूने की तम्मना की
आसमान को जमीन पर माँगा
फूल चाहा की पत्थरों पे खिले
काँटों में की तलाश खुशबु की
आग से मांगते रहे ठंडक
ख्वाब जो देखा
चाहा सच हो जाए
इसकी हमको सजा तो मिलनी थी।
6. खुदा हाफ़िज़
मुझे वो धुंध में लिपटी हुई मासूम सदियां याद आती है,
की जब तुम हर जगह थे,
हर तरफ थे
हर कहीं थे तुम,
रिहाईश थी तुम्हारी आसमानो में,
जमीन के भी मकीं थे तुम,
तुम्ही थे चाँद और सूरज के मुल्कों में,
तुम्हीं तारों की नगरी में,
हवाओं में,
फिजाओ में,दिशाओं में,
सुलगती धुप में तुम थे,
तुम्ही थे ठंडी झांवो में,
तुम्हीं खेतों में उगते थे,
तुम्ही पेड़ों पर फलते थे,
तुम्हीं बारिश की बूंदों में,
तुम्हीं सारी घटाओं में,
हर सागर के आगे तुम थे,
अगर पर्वत के ऊपर तुम थे,
वबाओं में
हर इक सैलाब में सब जलजलों में
हादसों में भी
रहा करते थे छिप कर तुम,
हर इक आंधी में
तूफ़ा में,समुन्दर में,बयांबान में,
हर एक मौसम हर एक रुत में थे,
तुम्हीं हर एक कर्म में थे,
सभी पाकीजा नदियों में,
मुकद्दस आग में तुम थे,
दरिंदो और चरिंदो
बिछुओं में नाग में तुम थे,
सभी के डंक में तुम थे,
जो इंसानों पे आते है
हर कहर में तुम थे
मगर सदियों के तन से लिपटी,
धुंध अब छट रही है,
अब कहीं रौशनी सी हो रही है,
और कहीँ कुछ तीरगी सी घट रही है,
ये उजाले साफ कहते है,
न अब तुम हो हवाओ में,
न अब तुम हो घटाओ में,
न बिच्छु में न तो अब नाग में तुम हो,
न आंधी और तूफान,
और न तो पाकीज़ा नदियों,
और मुक़द्दस आग में तुम हो,
अदब है शर्त
बस उतना कहूंगा
तुमने शायद पे है ये मेहरबानी की,
मैं अपने इल्म की मशाल लिए पहुँचा जहां हूँ,
मैंने देखा तुमने है नस्ले-मकानी की,
मगर अब भी खला के आसमान में
तुम ही रहते हो
जिसे कहते हैं किस्मत
अस्ल में हालात का बिफरा समुन्दर है,
मगर अब तक यकीन-आम है,
बनके समुन्दर तुम ही बहते हो,
मुझे ये मानना होगा,
वहां तुम हो,
जहां ये राज है पिंहाँ,
की ऐसी कायनाते-बेकरां की इब्तेदा,
और इंतिहा क्या है
वहां तुम हो
जहां ये आघ्ही है
मौत के, इस पर्दे के पीछे क्या है,
अभी कुछ दिन वहां रह लो,
मगर इतना बता दूं मैं
उधर मैं आने वाला हूँ।।
7. जब आईना कोई देखो
जन आईना कोई देखो इक अजनबी देखो,
कहां पर लाई है ये ज़िन्दगी देखों।
मुहहब्तों में कहां अपने वास्ते फुर्सत,
जिसे भी चाहो वो चाहे मिरी ख़ुशी देखो।
जो हो सके तो ज्यादा ही चाहना मुझको,
कभी जो मेरी मुहब्बत में कोई कमी देखो।
जो दूर जाए तो गम है जो पास आए तो दर्द,
न जाने क्या है वो कम्बक्त आदमी देखो।
उजाला तो नहीं कह सकते इसको लेकिन,
जरा सी कम तो हुई ये तिरंगी देखो।।
8. निगल गए सब
निगल गए सब की सब समुन्दर, जमीं बची अब कहीं नहीं है,
बचाते हम अपनी जान जसमें वो किश्ती भी अब कहीँ नहीं है।
बहुत दिनों बाद पाई फुर्सत तो मैने खुद को पलट कर देखा,
मगर मैं पहचानता था जिसको वो आदमी अब कहीँ नहीं है।
गुजर गया वक्त दिल पे लिखकर ना जाने कैसी अजीब बातें,
वर्क पलटता हूँ मैं जो दिल के तो सादगी अब कहीँ नहीँ है।
वो आग बरसी है दोपहर में की सारे मंजर झुलस गए है,
यहाँ सवेरे जो ताजगी थी वो ताजगी अब कहीँ नहीं है।
तुम अपने कस्बों में जा कर देखों वहाँ भी अब शहर ही बसे है,
कि ढूढ़ते हो जो जिंदगी तुम वो जिंदगी अब कहीँ नहीं है।।
9. बरसों की रस्मों राह थी
बरसों की रस्मों राह थी इक रोज उसने तोड़ दी,
हुशियार हम भी कम नहीं,उम्मीद हमने छोड़ दी।
गाँठ पड़ी है किस तरह ये बात है कुछ इस तरह,
वो डोर टूटी बारहा,हर बार हमने जोड़ दी।
उसने कहा कैसे हो तुम, बस लब खोले ही थे,
और बात दुनिया की तरफ जल्दी से उसने मोड़ दी।
वो चाहता है सब कहें, सरकार तो बेऐब है,
जो देख पाय ऐब वो हर आँख उसने फोड़ दी।
थोड़ी सी पाई खुशि तो सो गई थी जिंगदी,
ऐ दर्द तेरा शुक्रिया,जो इस तरह झंझोड़ दी।।
10. प्यास की कैसे
प्यास की कैसे लाए ताब कोई,
नहीं दरिया तो हो सराब कोई।
जख्म दिल में जहाँ महकता है,
इसी क्यारी में था गुलाब कोई।
रात बजती थी दूर शहनाई,
रोया पीकर बहुत शराब कोई।
दिल को घेरे है रोजगार के गम,
रद्दी में खो गई किताब कोई।
कौन सा जख्म किसने बक्शा है,
इसका रखे कहाँ हिसाब कोई।
फिर मैं सुनाने लगा हूँ इस दिल की,
आनेवाला है फिर अज़ाब कोई।
शब की दहलीज पर शफक है लहुँ,
फिर हुआ कत्ल आफ़ताब कोई।।
11. मैं कब से कितना तन्हा हूँ
मैं कब से कितना हूँ तनहा मुझे पता भी नहीँ,
तेरा तो कोई खुदा है मेरा खुदा भी नहीं।
कभी ये लगता है अब तो ख़त्म हो गया है सब कुछ,
कभी ये लगता है कि अभी तो कुछ हुआ भी नहीं।
कभी तो बात की उसने कभी रहा खामोश,
कभी हंस के मिला और कभी मिला भी नहीं।
कभी जो तल्ख-कलामी थी वो भी खत्म हुई,
कभी गिला था हमें उनसे अब गिला भी नहीं।
वो चीख उभरी बडी देर गुंजी,डूब गई,
हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं।।
12. अभी जमीर में
अभी जमीर में थोड़ी-सी जान बाकि है,
अभी हमारा कोई इम्तेहान बाकी है।
हमारे घर को तो उजड़े हुए जमाना हुआ,
अगर सुना है अभी वो माकन बाकि है।
हमारी उनसे जो थी गुफ्तगू,वो खत्म हुई
मगर सुकूत-सा कुछ दरमियान बाकी है।
हमारे जहन की बस्ती में आग ऐसी लगी है,
की जो था खाक हुआ एक दुकान बाकि है।
जो जख्म भर गया अरसा हुआ मगर अब तक,
जरा सा दर्द जरा सा निशान बाकि है।
जरा-सी बात जो फैली तो वो दास्तां बनी,
वो बात खत्म हुई दास्तान बाकी है।
अब आया तीर चलाने का फन तो क्या आया,
हमारे हाथ मेँ खाली कमान बाकि है।।
13. वो जमाना
वो जमाना गुजर गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का।
ढूढ़ता था जो इक नई दुनिया,
लौटके अपने घर गया कबका।
वो जो लाया था, हमको दरिया तक,
पार अकेले उतर गया कब का।
उसका जो हॉल है वही जाने,
अपना तो जख्म भर गया कबका।
ख्वाब डर ख्वाब था जो शिरजा,
अब कहाँ है बिखर गया कब का।।
14. अजीब आदमी था वो
अजीब आदमी था वो
मुहब्बतों के गीत गाता था,
बगावतों का राग था
कभी वो सिर्फ फूल था
कभी वो सिर्फ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफ़्सीलों से कहता था
की एक दिन बदल भी सकते है
वो जबीरों से कहता था
तुम्हारे सर पर जो सोने के जो ताज है
कभी पिंघल भी सकते है
वो बाशिदों से कहता था
मैं तुमको तोड़ सकता हूँ
सहुलतों से कहता था
में तुमको छोड़ सकता हूँ
हवाओ से कहता था
मैं तुमको मोड़ सकता हूँ
वो ख्वाब से ये कहता था
की तुझको सच करूँगा मैं
वो आरजू से कहता था
मैं तेरा हमसफ़र हूँ
तेरे साथ ही चलूंगा मैं
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंजिलें
कभी नहीँ थाकुंग मैं
वो ज़िन्दगी से कहता था
की तुझको मैं सजाऊंगा
तू मुझ से चाँद मांग ले
मैं चाँद लेके आऊँगा
वो आदमी से कहता था
की आदमी से प्यार कर
उजड़ रही है ये जमीं
कुछ इसका अब सिंगार कर
अजीब आदमी था वो
वो जिंदगी के सारे गम
तमाम दुख
हर एक सितम से कहता था
मैं तुमको जित जाऊंगा
की तुमको तो मिटा ही देगा
एक रोज आदमी
भुला ही देगा ये जहाँ
मेरी अलग है दास्ताँ
वो आँखों जिनमें है सकत
वो होठं जिनपे लफ्ज है
रहूंगा उनके दरमियान
की जब मैं बीत जाऊंगा
अजीब आदमी था वो।।।
15. मेले
बाप की उंगली थामें
एक नन्हा सा बच्चा
पहले पहल मेले में गया तो
अपनी भोली भाली
कचों जैसी आँखों से
इक दुनिया देखी
ये क्या है और वो क्या है
सब उससे पूछा
बाप ने झुककर
कितनी सारी चीजों और खेलों का नाम बताया
नट का,बाजीगर का,जादूगर का,
उसको नाम बताया
फिर वो घर की जानिब लोटे
गोद के झूले में
बच्चे से बाप के कंधे पर सर रखा
बाप ने पूछा
नींद आती है?
वक्त भी एक परिंदा है
उड़ता रहता है
गाँव में फिर एक मेला आया,
बड़े बाप ने कांपते हाथों से
बेटे की बाह को थामा
और बेटे ने
ये क्या है वो क्या है जितना भी बन पाया समझाया,
बाप ने बेटे के कंधे पर सर रखा
बेटे ने पूछा नींद आती है
बाप ने मुड़के
याद की पगडंडी पर चलकर
बीते हुए सब अच्छे-बुरे और कड़वे-मीठे
लम्हों के पेरों से उड़ती
धूल को देखा फिर
अपने बेटे को देखा
होंठों पर
इक हल्की सी मुस्कान आई
होले से बोले हां!!!
मुझको अब नींद आती है।
16. याद उसे भी एक
याद उसे भी एक अधूरा अफसाना तो होगा,
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा।
डर हमको भी लगता है रस्ते ने सन्नाटे से,
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल,अब जाना तो होगा।
कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें,
जो ये फर्क समझ लेगा वो दीवाना तो होगा।
दिल की बातें नहीं है तो दिलचस्प ही कुछ बातेँ हों,
जिन्दा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा।
जीत के भी वो शर्मिंदा है, हार के भी हम नाजां,
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा।।
17. हमारे दिल में
हमारे दिल में अब तल्खी नहीं है,
मगर वो बात पहले सी नहीं है।
मुझे मायूस भी करती नहीं है,
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है।
बहुत-से फायदे है मसलेहत में,
मगर दिल की तो ये मर्जी नहीं है।
हर इक की दास्ताँ सुनते है जैसे,
कभी हमने मुहब्बत की नहीं है।
है इक दरवाजा बिन दीवार दुनिया
मगर गम से यहां कोई नहीं है।।
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