1. मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है,
किसी का भी ही सर,कदमों में अच्छा नहीं लगता।।
2.इक गम है जो गुंगा है और चेहरा-चेहरा फिरता है,
देखें इस गम को मिलती है लफ्जों की खैरात कहाँ।।
3.छोड़कर जिसको गए थे आप कोई और था,
कब मैं कोई और हूँ वापस आ कर तो देखिये।।
4.अक्ल कहती है दुनिया मिलती है बाजार मेँ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए।।
5.आने न देते थे कभी हम दिल में आरजू,
पर क्या करें की लेके तेरा नाम आ गई।।
6.मेरा तो अब आलम है, अक्सर ऐसा होता है,
याद करूँ तो याद नहीं आता,घर कैसा होता है।।
7.तुम बैठे हो मगर जाते देख रहा हूँ,
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ।
8.अब तक जिन्दा रहने की तरकीब ना आई,
आखिर तुम किस दुनिया में रहते हो भाई।।
9.हमको तो तलाश है बाद नए रास्तों की,
हम वो मुसाफिर है जो मंजिल से आए है।।
10.झुक्क़ा दरख़्त हवा से,तो आंधियों ने कहा,
ज्यादा फर्क नहीं है झुकने-टूट जाने में।।
11.इन चिरागों में तेल ही कम था,
क्यों गिला हमको फिर हवा से रहे।।
12.सबका खुशी से फासिला एक कदम है,
गर घर में बस एक ही कमरा कम है।।
13.खुश भी हूँ डरता भी हूँ, मुझको खुशियाँ,
दुश्मन की भेजी सौगात लगती है।
14.अब अपना कोई दोस्त कोई यार नहीं है,
हैं जिसकी तरफ,वो भी तरफदार नहीं है।।
15.वो दरार आ जाय शीशे में तो शीशा तोड़ देते है,
जिसे छोड़े उसे हम उम्रभर को छोड़ देते है।।
16.शाम भी ढल रही है घर भी है दूर,
कितनी देर और में रुकूँ साहब ।।
17.अक्सर वो कहते है वो बस मेरे है,
अक्सर क्यों कहते है, हैरत होती है।।
18.कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मैं ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा।।
19.अब झुका तो मैं टूट जाऊंगा,
कैसे अब और मैं झुकूँ साहब।।
20.कम से कम उसको देख लेते थे,
अब के सैलाब में वो पूल भी गया।।
21.जख्म तो हमने इन आँखों में देखे है,
लोगों से सुनते है, मरहम होता है।।
22.देखकर तुमको ख्याल आया,
क्या किसी ने तम्हें छूआ होगा।।
23.देखी है चाँद चेहरों की भी चांदनी मगर,
उस चहरे पर अजब है, जहानत की रौशनी।।
24.हमारे शोंक की ये इन्तहां थी,
कदम रखा की मंजिल रास्ता थी।।
25.अजनबी हमको ये दीवार ये दर कहते है,
पर कहाँ जाएं चलों इसकों ही घर कहते हैं।।
26.इसे मैं लाख सवारूँ मैं लाख सजाऊँ,
अजब मकान है, कम्बक्त घर ही नहीं बनता।।
27.जा भी चूका वो,फिर भी मैं तन्हा नहीं अब तक,
सूरज के डूबते ही अँधेरा नहीं होता।।
28.रुसवाईयों का ताज है गम की सलीब है,
इतना भी मिल गया है तो अपना नसीब है।।
29.हमको उठना तो मुह-अँधेरा था,
लेकिन इक ख्वाब हमको घेरे था।।
30.उसकी आँखों में भी काजल फ़ैल रहा था
मैं भी मुड़के जाते जाते देख रहा थ।।
किसी का भी ही सर,कदमों में अच्छा नहीं लगता।।
2.इक गम है जो गुंगा है और चेहरा-चेहरा फिरता है,
देखें इस गम को मिलती है लफ्जों की खैरात कहाँ।।
3.छोड़कर जिसको गए थे आप कोई और था,
कब मैं कोई और हूँ वापस आ कर तो देखिये।।
4.अक्ल कहती है दुनिया मिलती है बाजार मेँ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए।।
5.आने न देते थे कभी हम दिल में आरजू,
पर क्या करें की लेके तेरा नाम आ गई।।
6.मेरा तो अब आलम है, अक्सर ऐसा होता है,
याद करूँ तो याद नहीं आता,घर कैसा होता है।।
7.तुम बैठे हो मगर जाते देख रहा हूँ,
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ।
8.अब तक जिन्दा रहने की तरकीब ना आई,
आखिर तुम किस दुनिया में रहते हो भाई।।
9.हमको तो तलाश है बाद नए रास्तों की,
हम वो मुसाफिर है जो मंजिल से आए है।।
10.झुक्क़ा दरख़्त हवा से,तो आंधियों ने कहा,
ज्यादा फर्क नहीं है झुकने-टूट जाने में।।
11.इन चिरागों में तेल ही कम था,
क्यों गिला हमको फिर हवा से रहे।।
12.सबका खुशी से फासिला एक कदम है,
गर घर में बस एक ही कमरा कम है।।
13.खुश भी हूँ डरता भी हूँ, मुझको खुशियाँ,
दुश्मन की भेजी सौगात लगती है।
14.अब अपना कोई दोस्त कोई यार नहीं है,
हैं जिसकी तरफ,वो भी तरफदार नहीं है।।
15.वो दरार आ जाय शीशे में तो शीशा तोड़ देते है,
जिसे छोड़े उसे हम उम्रभर को छोड़ देते है।।
16.शाम भी ढल रही है घर भी है दूर,
कितनी देर और में रुकूँ साहब ।।
17.अक्सर वो कहते है वो बस मेरे है,
अक्सर क्यों कहते है, हैरत होती है।।
18.कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मैं ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा।।
19.अब झुका तो मैं टूट जाऊंगा,
कैसे अब और मैं झुकूँ साहब।।
20.कम से कम उसको देख लेते थे,
अब के सैलाब में वो पूल भी गया।।
21.जख्म तो हमने इन आँखों में देखे है,
लोगों से सुनते है, मरहम होता है।।
22.देखकर तुमको ख्याल आया,
क्या किसी ने तम्हें छूआ होगा।।
23.देखी है चाँद चेहरों की भी चांदनी मगर,
उस चहरे पर अजब है, जहानत की रौशनी।।
24.हमारे शोंक की ये इन्तहां थी,
कदम रखा की मंजिल रास्ता थी।।
25.अजनबी हमको ये दीवार ये दर कहते है,
पर कहाँ जाएं चलों इसकों ही घर कहते हैं।।
26.इसे मैं लाख सवारूँ मैं लाख सजाऊँ,
अजब मकान है, कम्बक्त घर ही नहीं बनता।।
27.जा भी चूका वो,फिर भी मैं तन्हा नहीं अब तक,
सूरज के डूबते ही अँधेरा नहीं होता।।
28.रुसवाईयों का ताज है गम की सलीब है,
इतना भी मिल गया है तो अपना नसीब है।।
29.हमको उठना तो मुह-अँधेरा था,
लेकिन इक ख्वाब हमको घेरे था।।
30.उसकी आँखों में भी काजल फ़ैल रहा था
मैं भी मुड़के जाते जाते देख रहा थ।।
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