अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चिराग़ों को आफ़ताब करूँ
बुतों से मुझको इजाज़त अगर कभी मिल जाए
तो शहर भर के ख़ुदाओं को बेनक़ाब करूँ
मैं करवटों के नए ज़ाविए लिखूँ शब भर
ये इश्क़ है तो कहाँ ज़िन्दगी अज़ाब करूँ
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे-बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है
बहुत हसीं है ये दुनिया इसे ख़राब करूँ
ये ज़िन्दगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते-जाते
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हमको वरना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते
मुझको रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते-जाते
अबके मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते
हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
सवाल घर नहीं बुनियाद पर उठाया है
हमारे पाँव की मिट्टी ने सर उठाया है
हमेशा सर पे रही एक चटान रिश्तों की
ये बोझ वो है जिसे उम्र भर उठाया है
मेरी ग़ुलेल के पत्थर का कारनामा था
मगर ये कौन है जिसने समर उठाया है
यही ज़मीं में दबाएगा एक दिन मुझको
ये आसमान जिसे दोश1 पर उठाया है
बलन्दियों को पता चल गया है फिर
मैंने हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है
महाबली से बग़ावत बहुत ज़रूरी थी
क़दम ये हमने समझ-सोचकर उठाया है
मैं बस्ती में आख़िर किससे बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझको ख़ानदानी चाहिए
मैंने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
एक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिए
शहर की सारी अलिफ़ लैलाएँ बूढ़ी हो गईं
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिए
मैंने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए
मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में
तुम ज़ुलैख़ा हो तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिए
ज़िन्दगी है एक सफ़र और ज़िन्दगी की राह में
ज़िन्दगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए
जितने अपने थे सब पराए थे
हम हवा को गले लगाए थे
जितनी क़समें थीं सब थीं
शर्मिन्दा जितने वादे थे सर झुकाए थे
जितने आँसू थे सब थे बेग़ाने
जितने मेहमाँ थे बिन बुलाए थे
सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं
सारे क़िस्से सुने-सुनाए थे
एक बंजर ज़मीं के सीने में मैंने
कुछ आसमाँ उगाए थे
वरना औक़ात क्या थी सायों की
धूप ने हौसले बढ़ाए थे
सिर्फ़ दो घूँट प्यास की ख़ातिर
उम्र भर धूप में नहाए थे
हाशिए पर खड़े हुए हैं
हम हमने ख़ुद हाशिए बनाए थे
मैं अकेला उदास बैठा था
शाम ने क़हक़हे लगाए थे
है ग़लत उसको बेवफ़ा कहना
हम कहाँ के धुले-धुलाए थे
आज काँटों भरा मुक़द्दर है
हमने गुल भी बहुत खिलाए थे
उँगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो
ख़र्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर नी
म की पत्तियों को चबाया करो
अपने सीने पे दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे-वैसों को मुँह मत लगाया करो
पहली शर्त जुदाई है
इश्क़ बड़ा हरजाई है
गुम हैं होश हवाओं के
किसकी ख़ुशबू आई है
ख़्वाब क़रीबी रिश्तेदार
लेकिन नींद परायी है
चाँद तराशे सारी उम्र
तब कुछ धूप कमाई है
मैं बिछड़ा हूँ डाली से
दुनिया क्यों मुरझाई है
दिल पर किसने दस्तक दी
तुम हो या तनहाई है
दरिया-दरिया नाप चुके
मुट्ठी भर गहराई है
सूरज टूट के बिखरा है
रात ने ठोकर खाई है
कोई मसीहा क्या जाने
ज़ख़्म है या गहराई है
वाह रे पागल, वाह रे दिल
अच्छी क़िस्मत पाई है
दरमियाँ एक ज़माना रक्खा जाए
तब कोई पल सुहाना रक्खा जाए
सर पे सूरज सवार रहता है
पीठ पर शामियाना रक्खा जाए
तो, ये अब तय हुआ कि अपने साथ कोई
अपने सिवा न रक्खा जाए
ख़ूब बातें रहेंगी रस्ते पर
धूप से दोस्ताना रक्खा जाए
हों निगाहें ज़मीन पर लेकिन
आसमाँ पर निशाना रक्खा जाए
ज़ख़्म पर ज़ख़्म का गुमाँ न रहे
ज़ख़्म इतना पुराना रक्खा जाए
दिल लुटाने में एहतियात रखें
ये ख़ज़ाना खुला न रक्खा जाए
नील पड़ते रहें जबीनों पर
पत्थरों को ख़फ़ा न रक्खा जाए
यार! अब उसकी बेवफ़ाई का नाम
कुछ शायराना रक्खा जाए
मौसम की मनमानी है
आँखों-आँखों पानी है
साया-साया लिख डालो
दुनिया धूप-कहानी है
सब पर हँसते रहते हैं
फूलों की नादानी है
हाय ये दुनिया! हाय ये लोग
हाय! ये सब कुछ फ़ानी है
साथ एक दरिया रख लेना
रस्ता रेगिस्तानी है
कितने सपने देख लिये
आँखों को हैरानी है
दिल वाले अब कम-कम हैं
वैसे क़ौम पुरानी है
बारिश, दरिया, सागर, ओस
आँसू पहला पानी है
तुझको भूले बैठे हैं
क्या ये कम क़ुरबानी है
दरिया हमसे आँखें मिला
देखें कितना पानी है
दाव पर मैं भी दाव पर तू भी
बेख़बर मैं भी बेख़बर तू भी
आसमाँ मुझसे दोस्ती कर ले
दर-बदर मैं भी दर-बदर तू भी
कुछ दिनों शहर की हवा खा ले
सीख जाएगा सब हुनर तू भी
मैं तेरे साथ तू किसी के साथ
हमसफ़र मैं भी हमसफ़र तू भी
हैं वफ़ाओं के दोनों दावेदार
मैं भी इस पुल-सिरात पर तू भी
ऐ मेरे दोस्त तेरे बारे में कुछ
अलग राय थी मगर, तू भी
हौसले ज़िन्दगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम एक अँधेरी धुन्ध के पार
क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो
ख़र्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने पे दो गज़ ज़मीं बांध कर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चांद सूरज कहां , अपनी मन्ज़िल कहां
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
हौसले ज़िन्दगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम इस अंधेरी धुंध के पार
क़फ़िले रोशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छांव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बांध ली है आंखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
ज़िन्दगी की हर कहानी बे असर हो जाएगी
हम न होंगे तो यह दुनिया दर ब दर हो जाएगी
पांव पत्थर करके छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी
जुगनुओं को साथ लेकर रात रोशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी
ज़िन्दगी भी काश मेरे साथ रहती उम्र भर
ख़ैर अब जैसे भी होनी है बसर हो जाएगी
तुम ने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं ना कहता था , कि दुनिया दर्द - ए - सर हो जाएगी
तलख़ियां भी लाज़मी हैं ज़िन्दगी के वास्ते
इतना मीठा बन के मत रहिये शकर हो जाएगी
नज़ारा देखिये कलियों के फूल होने का
यही है वक्त दुआएं क़बूल होने का
उन्हें बताओं के ये रास्ते सलीब के हैं
जो लोग करते हैं दावा रसूल होने का
तमाम उम्र गुज़रने के बाददुनिया में
पता चला हमेंअपनेफ़ुज़ूल होनेका
उसूल वाले हैं बेचारे इन फ़रिश्तों ने
मज़ा चखा ही नहीं बे उसूल होने का
है आसमां से बुलन्द उसका मर्तबा जिसको शर्फ़ है
आप के कदमों की धूल होने का
चलो फ़लक पे कहीं मन्ज़िलें तलाश करें
ज़मीं पे कुछ नहीं हासिल हसूल होने का
हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है
वहां दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे
मुहब्बतों के सफ़र पर निकल के देखूंगा
ये पुल सिरात अगर है तो चलकेदेखूंगा
सवाल ये है कि रफ़्तार किसकी कितनी है
मैंआफ़ताबसे आगे निकलके देखूंगा
गुज़ारिशोंका कुछ उस पर असरनहीं होता
वह अब मिलेगा तो लहजा बदल के देखूंगा
मज़ाकअच्छा रहेगा यह चांद तारों से
मैं आज शाम से पहले ही ढल के देखूंगा
अजब नहीं के वही रोशनी मुझे मिल जाये
मैं अपने घर से किसी दिन निकल के देखूंगा
उजालेबांटनेवालों पे क्या गुज़रती है
किसी चिराग़ की मानिन्द जल के देखूंगा
जितना देख आये हैं अच्छा है , यही काफ़ी है
अब कहांजाइये दुनिया है , यही काफ़ी है
हमसे नाराज़ है सूरज कि पड़े सोते हैं
जागउठने का इरादाहै यहीकाफ़ी है
अब ज़रूरी तो नहीं है के वह फलदार भी हो
शाख से पेड़ का रिश्ता है यही काफ़ी है
लाओ मैं तुमको समुन्दर के इलाक़े लिख दूं
मेरे हिस्से में ये क़तरा है यही काफ़ी है
गालियों से भी नवाज़े तो करम है उसका
वह मुझे याद तो करता है यही काफ़ी है
अब अगर कम भी जियें हम तो कोई रंज नहीं
हमको जीने का सलीक़ा है यही काफ़ी है
क्या ज़रूरी है कभी तुम से मुलाक़ातभीहो
तुमसे मिलने की तमन्ना है यही काफ़ी है
अब किसी और तमाशे की ज़रूरत क्या है
ये जो दुनिया का तमाशा है यही काफ़ी है
औरअब कुछ भी नहीं चाहिये सामाने - सफ़र
पांव है , धूप है , सेहरा है यही काफ़ी है
अब सितारों पे कहां जायें तनाबें लेकर
ये जो मिट्टी का घरौंदा है यही काफ़ी है
सबको रुसवा बारी बारी कियाकरो
एहर मौसममेंफ़तवे जारी किया करो
रातों का नींदों सेरिश्ता टूट चुका
अपनेघरकीपहरेदारी कियाकरो
क़तरा क़तरा शबनम गिन कर क्या होगा
दरियाओंकी दावेदारी कियाकरो
राेज़ क़सीदे लिखाे गूंगे बहराें के
फ़ुरसत हाे ताे ये बेगारीकियाकरो
शब भर आने वाले दिन के ख़्वाब बनो
दिनभर फ़िक्र - ए - शब बेदारी किया करो
चांदज़्यादारोशनहै तोरहनेदो
जुगनू भय्या जी मतभारी किया करो
जब जी चाहे मौत बिछा दो बस्ती में
लेकिन बातेंप्यारी - प्यारीकिया करो
रात बदनदरियामें रोज़ उतरती है
इस कश्ती में खूबसवारीकिया करो
रोज़वही एक कोशिश ज़िन्दा रहने की
मरने की भी कुछ तय्यारीकिया करो
कागज़ को सब सौंप दिया ये ठीक नहीं
शेर कभी ख़ुद पर भी तारी किया करो
ऊंघती रहगुज़र के बारे में
लोग पूछेंगे घर के बारे में
मील के पत्थरों से पूछता हूं
अपने एक हमसफ़र के बारे में
मश्वरा कर रहे हैं आपस में
चन्द जुगनू सहर के बारे में
एक सच्ची ख़बर सुनानी है
एक झूठी ख़बर के बारे में
उंगलियों से लहू टपकता है
क्या लिखें चारागर के बारे में
लाख वह गुमशुदा सही लेकिन
जानता है खिज़र के बारे में
अंधेरे चारों तरफ सांय सांय करने लगे
चिराग़ हाथ उठा कर दुआएं करने लगे
तरक़्क़ी कर गये बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दुआएं करने लगे
ज़मीं पर आ गये आंखों से टूट कर आंसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएं करने लगे
झुलस रहे हैं यहां छांव बांटने वाले
वह धूप है के शजर इल्तिजाएं करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का , खूब महफ़िल थी
सफ़ेदपोश उठे कांय कांय करने लगे
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