फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ Best Gazals

1.     मुलाक़ात

यह रात उस दर्द का शजर है,
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है।
अज़ीमतर है कि उसकी सितारों,
में कारवां,घिरे के खो गए हैं
के कारवां,घिर के खो गए हैं।
हजार महताब उसके साए
में अपना सब नूर,रो गए हैं।
यह रात उस दर्द का शजर हैं,
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है,
मगर इसी रात के शजर से,
यह चंद लम्हों के जर्द पत्ते
गिरे है और तेरे गेसुओं में
उलझ के गुलनार हो गए हैं।
इसी की शबनम से,खमोशी के,
यह चंद कतरे,तेरी जबीं पर,
बरस के,हीरे पिरो गए हैं।।

2.    जब तेरी समुन्दर आँखों में

यह धुप किनारा शाम ढले,
मिलते हैं दोनों वक्त जहाँ,
जो रात न दिन,जो आज न कल
पल भर को अमर, पल भर में धुआं
इस धुप किनारे, पल दो पल
होटों की लपक,
बाँहों की झनक
यह मेला हमारा झूट न सच
क्यों राज करो क्यों दोष धरो
किस कारण झूटी बात करो
जब तेरी समुन्दर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर दर वाले
और राही अपनी रह लेगा।

3.     यह फसल उमीदों की हमदम

सब काट दो
बिस्मिल पौधों को
बे आब सिसकते मत छोड़ों,
सब नोच को
बेकल फूलों को
साखों पे बिल्कते मत छोड़ों
यह फसल उमीदों की हमदम
इस बार भी गारत जाएगी
सब मेहनत सुबहों शामों की,
अब के भी आकरत जाएगी
खेती के कानों खद्रों में
फिर अपने लहू की खाद भरो
फिर अपने लहू की खाद भरो,
फिर मिटटी सिचों अश्कों से
फिर अगली रुत उजड़ना है
इक फसल पकी तो भर पाया
जब तक तो यही कुछ करना है।।


4.       फिलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी

मत रो बच्चे
रो रो के अभी
तेरी अम्मी की आँख लगी है,
मत रो बच्चे
कुछ ही पहले
तेरे अब्बा ने
अपने गम से रुखसत ली है,
मत रो बच्चे
तेरा भाई
अपने ख्वाब की तितली के पीछे
दूर कहीं परदेस गया है
मत रो बच्चे
तेरी बाजी का
डोला पराए देस गया है
मत रो बच्चे
तेरे आँगन में
मुर्दा सूरज नहला के गए हैं
चंद्रमा दफना के गए हैं
मत रो बच्चे
अम्मी अब्बा बाजी भाई
चाँद और सूरज
रोयेगा तो और भी तुझ की रुलवायेंगे
तू मुस्काएगा तो शायद
सारे इक दिन भेस बदल कर
तुझसे खेलने लौट आयेंगे।।


5.  ढाका से वापसी पर

हम की ठहरे अजनबी इनती मदारतों के बाद,
फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद।
कब नजर आएगी बेदाग सब्ज़े की बहार,
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद।
थे बहुत बेदर्द लम्हे खत्मे दर्दे इश्क के,
थी बहुत बे मेहर सुबहें, मेंहरबों रातों के बाद।
दिल तो चाहा पर शिकस्ते दिल ने मुहलत ही न दी,
कुछ गीले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद।
उन से जो कहने गए थे फ़ैज़ जा सदका किए,
अनकही ही रह गई वह बात सब बातों के बाद।।

6.दोनों जहांन तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के,
वह जा रहा है कोई शबे-गम गुजार के।
वीरां है मैकदा,खुम ओ सागर उदास है,
तुम क्या गए की रुठ गए दिन बहार के।
इक फुर्सत गुनाह मिली वह भी चार दिन,
देखे हैं हमने हौसले पर्वतदीदार के।
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया,
तुझसे भी दिलफ़रेब है गम रोजगार के।
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वह आज फैज़,
मत पूछ वलवले दिले नाकदारकार के।।


7.   रंग पेहरां का खुश्बू जुल्फ लहराने का नाम

रंग पैराहन का खुश्बू जुल्फ लहराने का नाम,
मौसम गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम।
दोस्तों उस चश्मा ओ लब की कुछ कहो जिसके बगैर,
गुलसितां की बात रँगी है, न मैंखाने का नाम।
फिर नजर में फूल महकते दिल में फिर समाएं जली,
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज्म में जाने का नाम।
मोहतसिब की खैर ऊँचा है उसी के फैज़ से,
रिन्द का साकी का,मय का खुम का पैमाने कानाम।
फैज़ उनको है तकाजये वफ़ा हम से जिन्हें,
आशना के नाम से प्यार है बेगाने का नाम।

8.  कर्जे निगाह यार अदा कर चुके हैं हम

कर्जे निगाह यार अदा कर चुके हैं हम,
सब कुछ निसारे राहे वफ़ा कर चुके हैं हम।
कुछ इम्तहान दस्तरत का पता कर चुके हैं हम
कुछ उनकी डस्टरस का पता कर चुके हैं हम।
अब अहतिहायत की कोई सूरत नहीं रही,
कातिल से रस्म ओ राह सिवा कर चुके हैं हम।
देखें,है कौन कौन,जरूरत नहीं रही,
क्यूए सितम में हम सबको खफा कर चुके हैं हम।
अब अपना अख्तियार है चाहे जहाँ चलें।,
रहबर से अपनी राह जुदा कर चले हम।
उनकी नजर में क्या करें फीफा है अब भी रंग,
जितना लहू था,सर्फे कबा कर चुके है हम।
कुछ अपने दिल की खु का भी शुक्राना चाहिए,
सौ बार उन की खु का गिला कर चुके हैं हम।।


9. वफाये वादा नहीं वादये दीगर भी नहीं

वफाये वादा नहीं वादये दीगर भी नहीं,
वह मुझसे रूठे तो थे लेकिन इस कदर भी नही।
बरस रही है हरिमें हवस में दौलत हुस्न,
गदाएँ इश्क के कासे में इक नजर भी नहीं।
न जाने किस किये उम्मीदवार बैठा हूँ,
इक ऐसी  राह पे जो तेरी रहगुजर भी नहीं।
निगाहें शौक सरे बज्म बेहिजाब न हो,
वह बेखबर ही सही,इतने बेखबर भी नहीं।
यह अहदे तर्के मौहब्बत है किस लिए आखिर,
सुकून क्लब इधर भीं नहीं उधर भी नहीं।।

10.        हम पर तुम्हारी चाह का इल्जाम ही तो है

हम पर तुम्हारी चाह का इल्जाम ही तो है,
दुशनाम तो नहीं है यह इकराम ही तो है।
करते हैं जिसपे तअन कोई जुर्म तो नहीं,
शौके फुजूल ओ उल्फ़ते नाकाम ही तो है।
दिल मुद्दई के हर्फे मलामत से शाद है,
ऐ जाने जान,यह हर्फे तेरा नाम ही तो है।
दिल नाउमिद तो नहीं, नाकाम ही तो है।
लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है।
दस्ते फलक में गर्दिशे तकदीर तो नहीँ,
दस्ते फ़लक में गर्दिशे अय्याम ही तो है।
आखिर तो एक रोज करेगी नजर वफ़ा,
वह यारे खुशखिसाल सरेबाम ही तो है,
भीगी है रात,फैज़ गजल इब्तेता करो,
वक्तेते सरोद दर्द का हंगामा ही तो है।।


11. ख्वाब बसेरा

इस वक्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है,
महताब न सूरज न अँधेरा न सवेरा।
आँखों के दरीचों में किसी हुस्न की झलकन
और  दिल की पनाहों में किसी दर्द का डेरा
मुमकिन है कोई वहम हो मुमकिन है सुना हो
गलियों में किसी चाप का इक आखिरी फेरा
शाखों में ख्यालों के घने पेड़ और शायद
अब आके करेगा न कोई ख्वाब बसेरा
इक बैर,न इक मेहर न इक रब्त न रिश्ता
तेरा कोई अपना न पराया कोई मेरा
माना कि यह सुनसान घड़ी सख्त कड़ी है
लेकिन मेरे दिल पे तो फक्त एक घड़ी है
हिम्मत करो जीने को अभी उम्र पड़ी है।
(ये उन्होंने बीमारी के दौरान लाहौर अस्पताल में लिखा)

12.    हम मुसाफिर यूँहीं मसरुफे सफर जायेंगे,
बेनिशाँ हो गए जब शहर तो घर जायेंगे।
किस कदर होगा यहां मैहर ओ वफ़ा का मातम
हम तेरी याद से जिस रोज उतर जायेंगे।
जौहरी बन्द किये जाते है बाजारे सुखन
हम किये बेचने अल्मास ओ गुहर जायेंगे
शायद अपना हि कोई बैत हुदी ख्वा बन कर
साथ जाएगा मेरे यार जिधर जाएगा।
फैज़ आते हैं रहे इश्क में जो सख्त मकाम,
आने बालों से कहो हम तो गुजर जाएंगे।।

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