1. आईना
तुझ से बिझड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना ख्याल,
एक कतरा भी नहीं बाकी की हों पलकें तो नम।
मेरी आँखों के समुन्दर कौन सहारा पी गए,
एक आंसू को तरसती है मिरी तक्रिबें गम।
मैं न रो पाया तो सोचो मुस्कुरा कर देख लूँ,
शायद उस बेजान पैकर में कोईं जिन्दा हो ख्वाब।
और लबों के तन बरहना शाखों पर अब कहाँ,
मुस्कुराहट के शुगूफ़े खदां-एं-दिल के गुलाब ।
कितना वीरान हो चूका है मेरी हंसती का जमाल,
तुझ से बिछड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना ख्याल।।
2.बाज़ औकाद,अक्सर औकाद
भूल जाएं तो आज बेहतर है
सिलसिले कुर्बे के जुदाई के,
बुझ चुकी ख्वाइशों की कंदिलें
लूट चुके शहर आशनाई के।
रायेगा साअतों से क्या लेना,
जख्म हों फूल तो सितारे हों,
मौसमों को हिसाब क्या रखना,
जिस ने जैसे भी दिन गुजारे हों।
जिंदगी से शिकायतें कैसी,
अब नहीं हैं अगर गीले थे कभी
भूल जायें की जो हुआ सो हुआ,
भूल जायें की हम मिलें ये कभीं।
अक्सर औकाद चाहने पर भी,
फासलों में कभी नहीं होती,
वाज औकाद जाने वालों की,
वापसी से ख़ुशी नहीं होती।
3. मत कत्ल करों आवाजों को!
तुम अपने अक़ीदों के नेजे,
हर दिल में उतारे जाते हो
हम लोग मुहब्बत वाले हैं
तुम ख़ंजर क्यों लहराते हो,
इस शहर में नगमें बहनें दो
बस्ती में हमें भीं रहने दो।
हम पालनहार हैं फूलों के,
हम खुश्बू के रख्वालें हैँ।
तुम किस का लहू पिने आए
हम यार सिखाने वाले हैं।
उस शहर में फिर क्या देखोगे,
जब हर्फ़ यहां मर जायेंगे।
तुझ से बिझड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना ख्याल,
एक कतरा भी नहीं बाकी की हों पलकें तो नम।
मेरी आँखों के समुन्दर कौन सहारा पी गए,
एक आंसू को तरसती है मिरी तक्रिबें गम।
मैं न रो पाया तो सोचो मुस्कुरा कर देख लूँ,
शायद उस बेजान पैकर में कोईं जिन्दा हो ख्वाब।
और लबों के तन बरहना शाखों पर अब कहाँ,
मुस्कुराहट के शुगूफ़े खदां-एं-दिल के गुलाब ।
कितना वीरान हो चूका है मेरी हंसती का जमाल,
तुझ से बिछड़ा हूँ तो आज आया मुझे अपना ख्याल।।
2.बाज़ औकाद,अक्सर औकाद
भूल जाएं तो आज बेहतर है
सिलसिले कुर्बे के जुदाई के,
बुझ चुकी ख्वाइशों की कंदिलें
लूट चुके शहर आशनाई के।
रायेगा साअतों से क्या लेना,
जख्म हों फूल तो सितारे हों,
मौसमों को हिसाब क्या रखना,
जिस ने जैसे भी दिन गुजारे हों।
जिंदगी से शिकायतें कैसी,
अब नहीं हैं अगर गीले थे कभी
भूल जायें की जो हुआ सो हुआ,
भूल जायें की हम मिलें ये कभीं।
अक्सर औकाद चाहने पर भी,
फासलों में कभी नहीं होती,
वाज औकाद जाने वालों की,
वापसी से ख़ुशी नहीं होती।
3. मत कत्ल करों आवाजों को!
तुम अपने अक़ीदों के नेजे,
हर दिल में उतारे जाते हो
हम लोग मुहब्बत वाले हैं
तुम ख़ंजर क्यों लहराते हो,
इस शहर में नगमें बहनें दो
बस्ती में हमें भीं रहने दो।
हम पालनहार हैं फूलों के,
हम खुश्बू के रख्वालें हैँ।
तुम किस का लहू पिने आए
हम यार सिखाने वाले हैं।
उस शहर में फिर क्या देखोगे,
जब हर्फ़ यहां मर जायेंगे।
4. लग जाते है
रोग ऐसे भी गमे यार से लग जाते हैं,
दर से उठते हैं तो दीवार से लग जाते हैं।
इश्क आगाज में हल्की सी कलिश रखता है,
बात में सैंकड़ों आजार से लग जाते है।
पहले पहले हवस एक आध दुकान खोलती है,
फिर तो बाजार के बाजार से लग जाते हैं।
बेबसी भी कभी क़ुरबत का सबब बनती हैं,
रो न पाएं तो गले यार से लग जाते हैं।
कतरनें गम की जो गलियों में उड़ी फिरती हैं,
घर में ले आओ तो अम्बार से लग जाते हैं।
आबल आबल कर देती है जब दिल को फराज,
पर्दा इल्जाम तो इजहार से लग जाते हैं।
5. अच्छा लगा
गुफ्तगू अच्छी लगी जीके नजर अच्छा लगा,
मुदतों के बाद कोई हमसफ़र अच्छा लगा।
दिल का दुःख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें,
उसका हंस देना हमारे हाल पर अच्छा लगा।
हर तरह की बे- सरों-सामनियों के बावजूद,
आज वो आया तो मुझको अपना घर अच्छा लगा।
क्या बुरा था गर पड़ा रहता तेरी दहलीज पर,
तू ही बतला क्या तुझे वो दर बदर अच्छा लगा।
हम भी कायल हैं वफ़ा ए उस्तवरी के मगर,
कोई पूछे कौन किसको उम्र भर अच्छा लगा।
मीर की मानिंद गरचे जीस्त करता था फ़राज़,
हमको वो अशुफ्ता खु शायर मगर अच्छा लगा।
6. रंजीश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पीरांदे मोहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो,
रस्मों रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ।
किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से खफा है तो जमाने के लिए आ।
इक उम्र से हूँ लज्जते गिरय से भी महरूम,
ऐ राहते जां मुझको रुलाने के लिये आ।
अब तक दिल खुश फ़हम को तुझ से हैं उमीदें,
ये आखिरी शमएं भी बुझाने के लिए आ।
7.ऐसे चुप है
ऐसे चुप हैं कि ये मंजिल भी कड़ी हो जैसे,
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ,
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे,
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर,
ये गिरह अबके मेरे दिल में पड़ी हो जैसे।
मंजिल दूर भी हैं मंजिलें नजदीक भी हैं,
अपने ही पाँव में जंजीर पड़ी हो जैसे।
आज दिल खोल के रोएं है तो खुश है फ़राज़,
चन्द लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
8.मिलें
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे फूल किताबों में मिलें।
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें।
गमें दुनिया भी गमें यार में शामिल कर लो,
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें।
तू खुदा है न इश्क फरिश्तों जैसा,
दोनों इंसां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें।
आज हम दार पे खींच गए जिन बातों पर,
क्या अजब कल वो जमाने को निसाबों में मिलें।
अब न वो हैं न वो तू न वो मोजी है फ़राज़,
जैसे दो शख्श तमन्ना के सराबों में मिलें।।
9. सुना हे लोग उसे
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बर्बाद कर के देखत हैैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोइज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनूं ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर है काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते है
सुना है हश्र है उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उसको हिरन दश्तभर के देखते हैं
सुनै है उस की स्याह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आँख भर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते है
सुना है आइना तमसाल है ज़बीं उसकी
जो सादादिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
की फूल अपनी कबायें क़तर के देखते हैंं
बस इक निगाह में लुटता है काफ़िला दिल का
सो रह-रवां-ए-तमन्ना भी डर के देखते है
सुना है उसके सबिस्तां से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
रुकें तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चलें तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैैं
कहानियाँ ही सही, सब मुबालगे ही सही
अगर ये ख़्वाब है, ताबीर कर के देखते हैं
उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाए
‘फ़राज़’ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बर्बाद कर के देखत हैैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोइज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनूं ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर है काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते है
सुना है हश्र है उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उसको हिरन दश्तभर के देखते हैं
सुनै है उस की स्याह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आँख भर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते है
सुना है आइना तमसाल है ज़बीं उसकी
जो सादादिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
की फूल अपनी कबायें क़तर के देखते हैंं
बस इक निगाह में लुटता है काफ़िला दिल का
सो रह-रवां-ए-तमन्ना भी डर के देखते है
सुना है उसके सबिस्तां से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
रुकें तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चलें तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैैं
कहानियाँ ही सही, सब मुबालगे ही सही
अगर ये ख़्वाब है, ताबीर कर के देखते हैं
उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाए
‘फ़राज़’ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
10.अभी कुछ और करिश्में
अभी कुछ और करिश्में गजल के देखते है,
फ़राज अब जरा लहजा बदल कर देखते हैं।
जुदाईयां तो मुकद्दर हैं फिर भी जाने सफर,
कुछ और दूर जरा साथ चल के देखते है।
रहे वफ़ा में हरिफे खिराफ़ कोई तो हो,
सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं।
तू सामने है तो फिर क्यूं यकीं नहीं आता
ये बार बार आंखों को मल के देखतें हैं।
ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में,
जो लालचों से तझे मुझको जल के देखते हैं।
ये कुर्ब क्या है कि यकजा हुए न दूर रहे,
हजार एक ही कालिब में ढल के देखते हैं।
न तुझको मात हुई है न मुझको मात हुई ,
सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं।
ये कौन है सरे साहिल की डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं।
अभी तलक तो न कुन्दन हुए न राख हुए,
हम अपनी आग में हर रोज जल के देखते हैं।
बहुत दिनों से नहीं हैं कुछ उसकी खैर खबर,
चलो फ़राज़ कुए यार चलके देखते हैं।
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