1. नक्श फरियादी है
नक्श फरियादी ह, किस की शोखी-ए-तहरीर का,
काग्जी है पैरहन,' हर पैकर-ए तस्वीर का
जजव -ए-वेइख्तियार-ए- शौक देखा चाहिए,
सीन -ए-शमशीर से वाहर है दम शमशीर का
जुज' कैस और कोई न आया वरु-ए-कार',
सहरा, मगर वतनगि-ए-चश्मे हुसूद' था.
आशुप्तगी ने नक्शे सुवैदा किया दुरुम्ते,
जाहिर हुआ कि दाग का सरमाया दूद था
था ख्वाव मे खयाल को तुझ से मुआमला,
जब भाख खुल गई न ज़िया था न सूद' था
ढापा कफन ने दाग अयूबे बरहनगी,
में वरनः हर लिवास में नगे वजूद था
कहते हो न देगे हम, दिल अगर पडा पाया,
दिल कहा कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ पाया
2. कहते तो हो ना देंगे हम
कहते हो न देगे हम, दिल अगर पडा पाया,
दिल कहा कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ पाया
इश्क से तबीयत ने जीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पाई, दर्द लादवा पाया
दोस्तदार-ए- दुश्मन है, एतमाद-ए- दिल मालूम,
आह वेअसर देखी, नाल नारसा पाया
सादगी ओ पुरकारी, वेखुदी ओ हुशियारी,
हुस्न को तगाफुल में, जुआर जुर्रत-अज़मा पाया
गुच फिर लगा खिलने, आज हम ने अपना दिल,
खू किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया
हाले दिल नही मानूम, लेकिन उम कदर यानी,
हम ने बारहा ढूढा, तुम ने बारहा पाया
हाले दिल नही मानूम, लेकिन उम कदर यानी,
हम ने बारहा ढूंढा, तुम ने बारहा पाया
शोरे पन्दे नासेह' ने जरूम पर नमक छिडका,
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मजा पाया।।
3. वा खुदराई को था
वा, खुदआराई को था मोती पिरोने का खयाल,
या, हुजूमे अश्क में तारे-नगह नायाब था
जल्व -ए-गुल ने किया था वा चरागा आवजू,
या, रवा मिजगाने चश्मे तर से खूने नाब था
या नफस करता था रौशन शम-अ-वजमें बेखुदी,
जलव-ए-गुल वा विसाते-सोहबते अहवाब था.
फर्श से ता अशं, वा तूफा था मौजे रग का,
या जमी से आसमा तक सीखतन का बाब था।
नागहा, इस रंग से खूनाव टपका ने लगा,
दिल कि जौके काविशे नाखुन मे लज्जतयाब था
नाल. ए-दिल मे शब, अदाजे असर नायाब था,
था सिपदे बजमे वस्ले गैर, गो बेताब था
कुछ न की, अपने जुनूने नारसा ने, वर्न या,
ज़र्रः जर्र रूकशे खुरशीदे आलम ताब था
आज क्यो परवा नही अपने असीरो की तुझे,
कल तलक तेरा भी दिल मेहरा-ओ-वफा का वाब था
याद कर वह दिन, कि हर इक हलक तेरे दाम का,
इतज़ारे सैंद में, इक दीद- ए-बेख्वाब था
मैं ने रोका रात गालिब को, वगर्न. देखते,
उस के सैले गिरियः में, गर्दू कफे सैलाब था.
एक एक कतरे का मुझे देना पडा हिसाब,
खूने जिगर वदीअते मिजगाने यार' था.
अब में हू और मातमे यक शहरे आरजू,
तोडा जो तू ने आईन, तिमसालदार था
गलियो मे मेरी नअश को खीचे फिरो, कि मैं,
जा दादः-ए-हवा-ए-सरे रहगुजार था.
मौजे सराबे दश्ते बफा का न पूछ हाल,
हर ज़र्रे मिस्ले जौहरे तेग आवदार था.
कम जानते थे हम भी गमे इश्क को, पर अब,
देखा तो कम हुए पर, गमे रोजगार था
4. दोस्त गमख्वारी में मेरी
दोस्त गमख्वारी मे मेरी, समि फरमाएगे क्या,
जख्म के भरने तलक, नाखुन न बढ आएगे क्या?
बेनियाजी हृद से गुजरी, वद परवर कब तलक,
हम कहेंगे हाले दिल और आप फरमाएगे क्या?
हज़रते नासेह गर आए दीदः ओ दिल फर्शेराह,
कोई मुझ को यह तो वतला दो कि समझाएगे क्या?
आज वा तेग ओ कफन बाधे हुए जाता हूँ में,
वो मेरे कत्ल करने में वह अब लाएंगे क्या?
गर किया नासेह ने हम को कैद, अच्छा, यू सही,
ये जुनूने इश्क के अदाज़ छूट जाएगे क्या ?
खानः जादे जुल्फ है जजीर से भागेगे क्यो,
है गिरिफ्तारे वफा, जिंदा से घबराएगे क्या?
है अव इस मामूर' मे कहते गमे उलफत असद,
हम ने यह माना कि दिल्ली में रहे, खाएगे क्या?
5. कि यू होता तो क्या होता
यह न थी हमारी किस्मत, जो विसाले यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतजार होता
तिरे वादे पर जिए हम, तो यह जान झूट जाना,
कि खुशी से मर जाते, अगर एतबार होता
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यो न ग्रके दरिया,
न कभी जनाज़ः उठता, न कहीं मज़ार होता
उसे कौन देख सकता कि यगान है बह सकता,
जो दुई की बु भी होती, तो कही दोचार होता
यह मसाइले तसव्वुफ यह तिरा वयान, 'गालिव',
तुझे हम वली समझते, जो न बादःख्वार होता
घर हमारा, जो न रोते, तो भी वीरा होता,
बहर अगर वह्र न होता, तो बयाबा होता
तगि-ए-दिल का गिला क्या, यह वह काफिर दिल है,
कि अगर तंग न होता, तो परीशा होता
वादे यक उम्रे वर अ, वार तो देता, बारे,
काश, रिज्वा' ही दरे यार का दरबा होता
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता, तो खुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता.
हुआ जब गम से यू बेहिस, तो गम क्या सर के कटने का,
न होता गर जुदा तन से, तो जानू पर धरा होता
हुई मुद्दत, कि गालिब मर गया, पर याद आता है,
वह हर इक बात पर कहना, कि यू होता तो क्या होता
6. फिर मुझे दीद -ए - तर याद आया
फिर मुझे दीद -ए-तर याद आया,
दिल जिगर, तशन -ए-फरियाद आया
दम लिया था न कयामत ने हनोज',
फिर तेरा वक्ते सफर याद आया.
सादगी हाए-तमन्ना यानि,
फिर वह नेरगे नज़र याद आया
उजरे वामादगी, ऐ हसरते दिल,
नाल करता था, जिगर याद आया
जिंदगी यू भी गुज़र ही जाती,
क्यो तेरा राहगुज़र याद आय।
आह वह जुर्रबत-ए-फरियाद कहा,
दिल से तग आ के जिगर याद आया
फिर तेरे कुचे को जाता है खयाल,
दिल-ए-गुमगशत , मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है,
दश्त को देख के घर याद आया
मैं ने मजनू पे लडकपन में, 'असद,
सग उठाया था, कि सर याद आया
7. हुई तारीख
हुई ताखीर', तो कुछ बाइसे ताखीर भी था,
आप आते थे, मगर कोई हमागीर भी था
रेख्ती' के तुम्ही उस्ताद नही हो, गालिब',
कहते है, अगले जमाने मे कोई 'मीर' भी था
आईनः देख, अपना सा मुह ले के रह गए,
साहब को, दिल न देने पे कितना गुरूर था.
कासिद' को अपने हाथ से गरदन न मारिए,
उस की खता नहो है, यह मेरा कुसुर था
अर्ज बो नियाज़-ए-इश्क के काविल नही रहा,
जिस दिल पे नाज़ था, मुझे वह दिल नही रहा
मरने की, ऐ दिल, और ही तदबीर कर, कि में,
शायाने-दस्त ओ वाजुए कातिल नही रहा
दिल से हवा-ए-किश्ते-वफा मिट गई, कि वा,
हासिल, सिवाय हसरते-हासिल नही रहा
बेदाद'-ए-इश्क से नहीं डरता, मगर 'असदं,
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वह दिल नही रहा
8. लाजिम था की देखो मीरा
लाजिम था कि देखो मिरा रस्तः कोई दिन और,
तनहा गए क्यो, अब रहो तनहा कोई दिन और.
मिट जाएगा सर, गर तिरा पत्थर न घिसेगा,
हं दर पे तिरे नासिय फरसा कोई दिन और
आए हो कल और आज ही कहते हो, कि जाऊ,
माना, कि नही आज से अच्छा, कोई दिन और
जाते हुए कहते हो, कयामत को मिलेंगे,
क्या खूब, कयामत का है गोया कोई दिन और
हा ऐ फलक-ए-पीर, जवा था अभी आरिफ,
क्या तेरा विगडता जो न मरता कोई दिन और
तुम माह-ए-शब-ए-चार दहुम थे, मेरे घर के,
फिर क्यो न रहा घर का वह नक्शा कोई दिन और
तुम कौन से थे ऐसे खरे, दादा-ओ-सितद' के
करता मलेकुल मोत तकाजा, कोई दिन और
मुझ से तुम्हे नफरत सही, नय्यर से लड़ाई,
बच्चो का भी देखा न तमाशा कोई दिन और.
गुजरी न बहरहाल यह मुद्दुत खुशा-ओ-नाखुश,
करना था, जवामगं, गुज़ारा कोई दिन और.
नादान है, जो कहते हैं क्यो जीते हो 'गालिव',
मुझ को तो है मरने की तमन्ना कोई दिन और.
9. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक,
कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होने तक.
दाम-ए-हर मौज में है, हल्क.-ए-सद कामे-निहग,
देखें क्या गुजरे है कतरे पे गुहर होने तक
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताव,
दिल का क्या रग करू, खूने-जिगर होने तक
हम ने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,
खाक हो जाएँगे हम, तुम को खवर होने तक
परंतव'-ए-खुर' से है शबनम को, फना की तालीम ,
में भी हू एक अिनायत की नजर होने तक
गम-ए-हस्ती का, 'असद' किस से हो जुज मर्ग इलाज,
शमा हर रंग मे जलती है सहर होने तक
10. की वफ़ा हम से तो गैर
की वफा हम से, तो गैर उन को जफा कहते है,
होती आई है, कि अच्छों को बुरा कहते हैं।
आज हम अपनी परीशानि-ए-खातिर उन से,
कहने जाते तो हे, पर देखिए क्या कहते है।
अगले वक्तो के है यह लोग, इन्हे कुछ न कहो,
जो मैं-ओ-नगम. को, अदोहरुवा कहते हैं।
दिल में आ जाए है, जो होती है फुरसत गश से,
और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं।
इक शरर दिल में है, उस से कोई घबराएगा क्या,
आग मतलूब है हम को, जो हवा कहते है।
देखिए लाती है उस शोख की नखवत,' क्या रंग,
उस की हर बात पे हम, नामे खुदा कहते हैं
वहशत'-ओ-शेफ्त.' अव मरसिय कहवे शायद,
मर गया 'गालिव'-ए-आशुफ्त -नवा, कहते है
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नक्श फरियादी ह, किस की शोखी-ए-तहरीर का,
काग्जी है पैरहन,' हर पैकर-ए तस्वीर का
जजव -ए-वेइख्तियार-ए- शौक देखा चाहिए,
सीन -ए-शमशीर से वाहर है दम शमशीर का
जुज' कैस और कोई न आया वरु-ए-कार',
सहरा, मगर वतनगि-ए-चश्मे हुसूद' था.
आशुप्तगी ने नक्शे सुवैदा किया दुरुम्ते,
जाहिर हुआ कि दाग का सरमाया दूद था
था ख्वाव मे खयाल को तुझ से मुआमला,
जब भाख खुल गई न ज़िया था न सूद' था
ढापा कफन ने दाग अयूबे बरहनगी,
में वरनः हर लिवास में नगे वजूद था
कहते हो न देगे हम, दिल अगर पडा पाया,
दिल कहा कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ पाया
2. कहते तो हो ना देंगे हम
कहते हो न देगे हम, दिल अगर पडा पाया,
दिल कहा कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ पाया
इश्क से तबीयत ने जीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पाई, दर्द लादवा पाया
दोस्तदार-ए- दुश्मन है, एतमाद-ए- दिल मालूम,
आह वेअसर देखी, नाल नारसा पाया
सादगी ओ पुरकारी, वेखुदी ओ हुशियारी,
हुस्न को तगाफुल में, जुआर जुर्रत-अज़मा पाया
गुच फिर लगा खिलने, आज हम ने अपना दिल,
खू किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया
हाले दिल नही मानूम, लेकिन उम कदर यानी,
हम ने बारहा ढूढा, तुम ने बारहा पाया
हाले दिल नही मानूम, लेकिन उम कदर यानी,
हम ने बारहा ढूंढा, तुम ने बारहा पाया
शोरे पन्दे नासेह' ने जरूम पर नमक छिडका,
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मजा पाया।।
3. वा खुदराई को था
वा, खुदआराई को था मोती पिरोने का खयाल,
या, हुजूमे अश्क में तारे-नगह नायाब था
जल्व -ए-गुल ने किया था वा चरागा आवजू,
या, रवा मिजगाने चश्मे तर से खूने नाब था
या नफस करता था रौशन शम-अ-वजमें बेखुदी,
जलव-ए-गुल वा विसाते-सोहबते अहवाब था.
फर्श से ता अशं, वा तूफा था मौजे रग का,
या जमी से आसमा तक सीखतन का बाब था।
नागहा, इस रंग से खूनाव टपका ने लगा,
दिल कि जौके काविशे नाखुन मे लज्जतयाब था
नाल. ए-दिल मे शब, अदाजे असर नायाब था,
था सिपदे बजमे वस्ले गैर, गो बेताब था
कुछ न की, अपने जुनूने नारसा ने, वर्न या,
ज़र्रः जर्र रूकशे खुरशीदे आलम ताब था
आज क्यो परवा नही अपने असीरो की तुझे,
कल तलक तेरा भी दिल मेहरा-ओ-वफा का वाब था
याद कर वह दिन, कि हर इक हलक तेरे दाम का,
इतज़ारे सैंद में, इक दीद- ए-बेख्वाब था
मैं ने रोका रात गालिब को, वगर्न. देखते,
उस के सैले गिरियः में, गर्दू कफे सैलाब था.
एक एक कतरे का मुझे देना पडा हिसाब,
खूने जिगर वदीअते मिजगाने यार' था.
अब में हू और मातमे यक शहरे आरजू,
तोडा जो तू ने आईन, तिमसालदार था
गलियो मे मेरी नअश को खीचे फिरो, कि मैं,
जा दादः-ए-हवा-ए-सरे रहगुजार था.
मौजे सराबे दश्ते बफा का न पूछ हाल,
हर ज़र्रे मिस्ले जौहरे तेग आवदार था.
कम जानते थे हम भी गमे इश्क को, पर अब,
देखा तो कम हुए पर, गमे रोजगार था
4. दोस्त गमख्वारी में मेरी
दोस्त गमख्वारी मे मेरी, समि फरमाएगे क्या,
जख्म के भरने तलक, नाखुन न बढ आएगे क्या?
बेनियाजी हृद से गुजरी, वद परवर कब तलक,
हम कहेंगे हाले दिल और आप फरमाएगे क्या?
हज़रते नासेह गर आए दीदः ओ दिल फर्शेराह,
कोई मुझ को यह तो वतला दो कि समझाएगे क्या?
आज वा तेग ओ कफन बाधे हुए जाता हूँ में,
वो मेरे कत्ल करने में वह अब लाएंगे क्या?
गर किया नासेह ने हम को कैद, अच्छा, यू सही,
ये जुनूने इश्क के अदाज़ छूट जाएगे क्या ?
खानः जादे जुल्फ है जजीर से भागेगे क्यो,
है गिरिफ्तारे वफा, जिंदा से घबराएगे क्या?
है अव इस मामूर' मे कहते गमे उलफत असद,
हम ने यह माना कि दिल्ली में रहे, खाएगे क्या?
5. कि यू होता तो क्या होता
यह न थी हमारी किस्मत, जो विसाले यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतजार होता
तिरे वादे पर जिए हम, तो यह जान झूट जाना,
कि खुशी से मर जाते, अगर एतबार होता
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यो न ग्रके दरिया,
न कभी जनाज़ः उठता, न कहीं मज़ार होता
उसे कौन देख सकता कि यगान है बह सकता,
जो दुई की बु भी होती, तो कही दोचार होता
यह मसाइले तसव्वुफ यह तिरा वयान, 'गालिव',
तुझे हम वली समझते, जो न बादःख्वार होता
घर हमारा, जो न रोते, तो भी वीरा होता,
बहर अगर वह्र न होता, तो बयाबा होता
तगि-ए-दिल का गिला क्या, यह वह काफिर दिल है,
कि अगर तंग न होता, तो परीशा होता
वादे यक उम्रे वर अ, वार तो देता, बारे,
काश, रिज्वा' ही दरे यार का दरबा होता
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता, तो खुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता.
हुआ जब गम से यू बेहिस, तो गम क्या सर के कटने का,
न होता गर जुदा तन से, तो जानू पर धरा होता
हुई मुद्दत, कि गालिब मर गया, पर याद आता है,
वह हर इक बात पर कहना, कि यू होता तो क्या होता
6. फिर मुझे दीद -ए - तर याद आया
फिर मुझे दीद -ए-तर याद आया,
दिल जिगर, तशन -ए-फरियाद आया
दम लिया था न कयामत ने हनोज',
फिर तेरा वक्ते सफर याद आया.
सादगी हाए-तमन्ना यानि,
फिर वह नेरगे नज़र याद आया
उजरे वामादगी, ऐ हसरते दिल,
नाल करता था, जिगर याद आया
जिंदगी यू भी गुज़र ही जाती,
क्यो तेरा राहगुज़र याद आय।
आह वह जुर्रबत-ए-फरियाद कहा,
दिल से तग आ के जिगर याद आया
फिर तेरे कुचे को जाता है खयाल,
दिल-ए-गुमगशत , मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है,
दश्त को देख के घर याद आया
मैं ने मजनू पे लडकपन में, 'असद,
सग उठाया था, कि सर याद आया
7. हुई तारीख
हुई ताखीर', तो कुछ बाइसे ताखीर भी था,
आप आते थे, मगर कोई हमागीर भी था
रेख्ती' के तुम्ही उस्ताद नही हो, गालिब',
कहते है, अगले जमाने मे कोई 'मीर' भी था
आईनः देख, अपना सा मुह ले के रह गए,
साहब को, दिल न देने पे कितना गुरूर था.
कासिद' को अपने हाथ से गरदन न मारिए,
उस की खता नहो है, यह मेरा कुसुर था
अर्ज बो नियाज़-ए-इश्क के काविल नही रहा,
जिस दिल पे नाज़ था, मुझे वह दिल नही रहा
मरने की, ऐ दिल, और ही तदबीर कर, कि में,
शायाने-दस्त ओ वाजुए कातिल नही रहा
दिल से हवा-ए-किश्ते-वफा मिट गई, कि वा,
हासिल, सिवाय हसरते-हासिल नही रहा
बेदाद'-ए-इश्क से नहीं डरता, मगर 'असदं,
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वह दिल नही रहा
8. लाजिम था की देखो मीरा
लाजिम था कि देखो मिरा रस्तः कोई दिन और,
तनहा गए क्यो, अब रहो तनहा कोई दिन और.
मिट जाएगा सर, गर तिरा पत्थर न घिसेगा,
हं दर पे तिरे नासिय फरसा कोई दिन और
आए हो कल और आज ही कहते हो, कि जाऊ,
माना, कि नही आज से अच्छा, कोई दिन और
जाते हुए कहते हो, कयामत को मिलेंगे,
क्या खूब, कयामत का है गोया कोई दिन और
हा ऐ फलक-ए-पीर, जवा था अभी आरिफ,
क्या तेरा विगडता जो न मरता कोई दिन और
तुम माह-ए-शब-ए-चार दहुम थे, मेरे घर के,
फिर क्यो न रहा घर का वह नक्शा कोई दिन और
तुम कौन से थे ऐसे खरे, दादा-ओ-सितद' के
करता मलेकुल मोत तकाजा, कोई दिन और
मुझ से तुम्हे नफरत सही, नय्यर से लड़ाई,
बच्चो का भी देखा न तमाशा कोई दिन और.
गुजरी न बहरहाल यह मुद्दुत खुशा-ओ-नाखुश,
करना था, जवामगं, गुज़ारा कोई दिन और.
नादान है, जो कहते हैं क्यो जीते हो 'गालिव',
मुझ को तो है मरने की तमन्ना कोई दिन और.
9. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक,
कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होने तक.
दाम-ए-हर मौज में है, हल्क.-ए-सद कामे-निहग,
देखें क्या गुजरे है कतरे पे गुहर होने तक
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताव,
दिल का क्या रग करू, खूने-जिगर होने तक
हम ने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,
खाक हो जाएँगे हम, तुम को खवर होने तक
परंतव'-ए-खुर' से है शबनम को, फना की तालीम ,
में भी हू एक अिनायत की नजर होने तक
गम-ए-हस्ती का, 'असद' किस से हो जुज मर्ग इलाज,
शमा हर रंग मे जलती है सहर होने तक
10. की वफ़ा हम से तो गैर
की वफा हम से, तो गैर उन को जफा कहते है,
होती आई है, कि अच्छों को बुरा कहते हैं।
आज हम अपनी परीशानि-ए-खातिर उन से,
कहने जाते तो हे, पर देखिए क्या कहते है।
अगले वक्तो के है यह लोग, इन्हे कुछ न कहो,
जो मैं-ओ-नगम. को, अदोहरुवा कहते हैं।
दिल में आ जाए है, जो होती है फुरसत गश से,
और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं।
इक शरर दिल में है, उस से कोई घबराएगा क्या,
आग मतलूब है हम को, जो हवा कहते है।
देखिए लाती है उस शोख की नखवत,' क्या रंग,
उस की हर बात पे हम, नामे खुदा कहते हैं
वहशत'-ओ-शेफ्त.' अव मरसिय कहवे शायद,
मर गया 'गालिव'-ए-आशुफ्त -नवा, कहते है
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