1. मैं कहता हूँ
मैं कहता हूँ वो अच्छा बहुत है,
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है।
खुदा इस शहर को महफूज रख़े,
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है।
मैं तुझसे रोज मिलना चाहता हूँ,
मगर इस राह में खतरा बहुत है।
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा,
ये बच्चा रात में रोता बहुत है।
इसे आंसू का एक कतरा न समझो,
कुआँ है और ये गहरा बहुत है।।
उसे शुहरत ने तन्हा कर दिया है,
समंदर है मगर प्यासा बहुत है।।
मैं इक लम्हे में सदियां देखता हूँ,
तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है।
मेरा हंसना जरूरी हो गया है,
यहाँ हर शक्श संजीदा बहुत है।।
2. कहीँ नहीं
ये खला है अर्शेबरी नही,कहां पांव रक्खूं जमीं नहीं,
तेरे दर पे सजदे का शौक़ है, जो यहां नहीं तो कहीं नहीं।
किसी बूततराश ने शहर में मुझे आज कितना बदल दिया,
मेरा चेहरा मेरा नहीं रहा,ये जबीं भी मेरी जबीं नहीं।
है जरूरत उसमें भी मसलहत,वो जी हंस के पुछे है खैरियत,
की मुहब्बतो में गरज न हो,नहीं ऐसा प्यार कहीँ नहीं।।
वहीँ दर्दों-गम का गुलाब है, जहाँ कोई खानाखराब है,
जिसे झुक के चाँद न चुम ले,वो मुहब्बतों की जमीं नहीं।
तेरी जुफ जुल्फ सजाऊँ क्या,तुझ ख़्वाब ख्वाब दिखाऊ क्या,
मैं सफर से लौट के आऊंगा,मुझे खुद भी इसका यकीन नहीं।।
3. मेरे साथ तुम
मेरे साथ तुम भी दुआ करों यु किसी के हक में बुरा न हो,
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुड़ा न हो।
सरे शाम ठहरी हुई जमीं जहां आस्मां हे झुका हुआ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खड़ा न हो।
मेरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लकीर है,
जरा बढ़ के चाँद से पूछना वो उसी तरह से गया न हो।।
मुझे यु लगा की खमोश खुश्बू के होंठ तितली ने छु लिए,
इन्हीं जर्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो।
इसी एहतियात में वो रहा इसी एहतियात में मैं रहा,
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी को ये पता न हो।
वो फ़रिश्ते आप तलाश कीजे कहानियों की किताब में,
जो बुरा कहें न बुरा सुनें,कोई शख्स उन से खफा न हो।
वो फ़िराक हो की विसाल हो तेरी आग महकेगी एक दिन,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग बन के जला न हो।।
4. कहीँ पलकें ओस से
कहीँ पलकें ओस से धो गई,कहीँ दिन को फूलों से भर गई,
तेरी याद सोलह सिंगार है, जिसे छू दिया वो सँवर गई।
मैं सुनहरे पत्तों का पेड़ हूँ,मैं खिजां का हुस्नो वकार गई,
मेरे बाल चांदी के हो गये, मेरे सर पे धुप ठहर गई।
मेरा शायराना सा ख्वाब थी,जिसे लोग कहते है जिंदगी,
इन्हीं नाखुदाओं के खोफ से,वो चढ़ी नही में उतर गई।।
तेरी आरजू तेरी जुस्तजू में भटक रहा था गली गली,
मेरी दास्ताँ तेरी जुल्फ है, जो भिखर भिखर के सँवर गई।।
न गमों का मेरे हिसाब ले,न गमो का अपने हिसाब दे,
वो अजीब रात थी क्या कहें,जो गुजर गई सो गुजर गई।।
5. मेरे दिल की राख
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे,
ये चराग फिर भी चराग है कहीं तेरा हाथ जला न दे।
नये दौर के नय ख्वाब है नये मौसमों के गुलाब हैं,
ये मुहब्बतों के चराग है इन्हें नफरतों की हवा न दे।
जरा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर के तमाम शब,
तेरा नाम लिख्खा है रेत पर कोई लहर मिटा न दे।
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्मों जा के मजार पर,
न दिये जलें मेरी आँख में मुझे इतनी सख्त सजा न दे।
मेरे साथ चलने के शोक में बड़ी धुप सर पे उठाएगा,
तेरा नाक नक्शा है मोम सा कहीं गम की आग घुला न दे।
मैं गजल की शबनबी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूं,
मेरी सल्तनत मेरा फन रहे मुझे ताजो तख्त खुदा न दे।।
6. अजनबी पेड़ों के साये में
अजनबी पेडों के साये में मुहब्बत है बहुत,
घर से निकले तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत।
रात तारों से उलझ सकती है,ज़र्रों से नहीं,
रात को मालूम है जुगनू में हिम्मत है बहुत।
मुख़्तसर बाते करो,बेजा वजाहत मत करो,
इस नई दुनिया के बच्चों में जहानत है बहुत।
किसलिए हम दिल जलाएं,रात दिन मेहनत करें,
क्या जमाना है बुरे लोगों की इज्जत है बहुत।
सात सन्दूकों में भर कर दफन कर दो नफ़रतें,
आज इंसान को मुहब्बत की जरूरत है बहुत।
लोग जिम्मेदारियों की कैद से आजाद है,
शहर की मसरूफियत में घर से फुर्सत है बहुत।
धुप से कहना मुझे किरणों का कम्बल भेज दे,
गुबरतों का दौर है,जाड़े की शिदत है बहुत।
सच अदालत से सियासत तक बहुत मसरूफ है,
झूट बोलो,झूट में अब भी मुहब्बत है बहुत।।
7. रख दो
मैं घना अँधेरा हूँ,आज मेरी पलकों पर जुगनुओं के घर रख दो,
खुशबुओं से नहला दो इन सुलगती पलकों पर तितलीयों के पर रख दो।
मैं भी इक शजर ही हूँ जिसपे आज तक शायद फूल-फल नहीं आए,
नर्म-नर्म होठों से बंद होती पलकों पर तितलियों के पर रख दो।
चाहे कोई मोसम हो ,दिन गई बहारों में के फिर से लोट आयेगें,
एक फूल की पत्ती अपने होठं पर रखकर मेरे होंठ पर रख दो।
मेरा तन दरख्तों में इसलिए सुलगता है, सख्त धुप सहता है,
क्या पता तुम आ निकलो और मेरे कांधों पर थक के अपना सर रख दो।
रोज तार कटने से रात के समंदर में शहर डूब जाता है,
इसलिए जरूरी है कि इक दिया जलाकर तुम दिल की ताक पर रख दो।।
8. पता नहीं
सारे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं,
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे ये आज तक पता नहीं।
उसे पाक नजरों से चूमना भी इबादतों में शुमार है,
कोई फूल लाख करीब हो कभी मै ने चाहा उसको छुआ नहीं।
ये खुदा की देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है,
जिसे तू ने चाहा वो मिल गया जिसे मैं ने चाहा मिला नहीं।
इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अजीज हैं,
उन्हें मेरी कोई खबर नहीँ मुझे उन का कोई पता नहीं।।
9. खबर ना हो
वो बुझे घरों का चराग था ये कभी किसी को खबर न हो,
उसे ले गई हवा,ये कभी किसी को खबर न हो।
कई लोग जान से जायँगे मेंरे कातिलों को तलाश में,
मेरे कत्ल में मेरा हाथ था,ये कभी किसी को खबर न हो।
वो तमाम दुनिया के वास्ते जो मुहब्बतों की मिसाल था,
वहीं अपने घर में था बेवफा,ये कभी किसी को खबर न हो।
कहीँ मस्जिदों में शहादतें कहीँ मंदिरों में अदालतें,
यहां कौन करता है फैसला ये किसी को खबर न हो।
मुझे जानकर कोई अजनबी वो दिखा रहे है गली गली,
इसी शहर में मेरा घर भी था,ये कभी किसी को खबर न हो।
वो समझ के धुप के3 देवता मुझे आज पूजने आये है,
मैं चराग हूँ तेरी शाम का,ये कभी किसी को खबर न हो।।
10. कर दो
आग लहरा के चली है इसी आँचल कर दो,
तुम मुझे रात का जलता हुआ जंगल कर दो।
चाँद-सा मिसरा अकेला है मेरे कागज पर,
छत पे आ जाओ मेरा शेर मुकम्मल कर दो।
मैं तुम्हें दिल की सियासत का हुनर देता हूँ,
अब उसे धुप बना दो,मुझे बादल कर दो।
अपने आँगन जी उदासी से जरा बात करो,
नीम के सूखे हुए पेड़ को सन्दल कर दो।
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊंगा,
यूँ करो,जाने से पहले मुझे पागल कर दो।।
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मैं कहता हूँ वो अच्छा बहुत है,
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है।
खुदा इस शहर को महफूज रख़े,
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है।
मैं तुझसे रोज मिलना चाहता हूँ,
मगर इस राह में खतरा बहुत है।
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा,
ये बच्चा रात में रोता बहुत है।
इसे आंसू का एक कतरा न समझो,
कुआँ है और ये गहरा बहुत है।।
उसे शुहरत ने तन्हा कर दिया है,
समंदर है मगर प्यासा बहुत है।।
मैं इक लम्हे में सदियां देखता हूँ,
तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है।
मेरा हंसना जरूरी हो गया है,
यहाँ हर शक्श संजीदा बहुत है।।
2. कहीँ नहीं
ये खला है अर्शेबरी नही,कहां पांव रक्खूं जमीं नहीं,
तेरे दर पे सजदे का शौक़ है, जो यहां नहीं तो कहीं नहीं।
किसी बूततराश ने शहर में मुझे आज कितना बदल दिया,
मेरा चेहरा मेरा नहीं रहा,ये जबीं भी मेरी जबीं नहीं।
है जरूरत उसमें भी मसलहत,वो जी हंस के पुछे है खैरियत,
की मुहब्बतो में गरज न हो,नहीं ऐसा प्यार कहीँ नहीं।।
वहीँ दर्दों-गम का गुलाब है, जहाँ कोई खानाखराब है,
जिसे झुक के चाँद न चुम ले,वो मुहब्बतों की जमीं नहीं।
तेरी जुफ जुल्फ सजाऊँ क्या,तुझ ख़्वाब ख्वाब दिखाऊ क्या,
मैं सफर से लौट के आऊंगा,मुझे खुद भी इसका यकीन नहीं।।
3. मेरे साथ तुम
मेरे साथ तुम भी दुआ करों यु किसी के हक में बुरा न हो,
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुड़ा न हो।
सरे शाम ठहरी हुई जमीं जहां आस्मां हे झुका हुआ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खड़ा न हो।
मेरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लकीर है,
जरा बढ़ के चाँद से पूछना वो उसी तरह से गया न हो।।
मुझे यु लगा की खमोश खुश्बू के होंठ तितली ने छु लिए,
इन्हीं जर्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो।
इसी एहतियात में वो रहा इसी एहतियात में मैं रहा,
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी को ये पता न हो।
वो फ़रिश्ते आप तलाश कीजे कहानियों की किताब में,
जो बुरा कहें न बुरा सुनें,कोई शख्स उन से खफा न हो।
वो फ़िराक हो की विसाल हो तेरी आग महकेगी एक दिन,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग बन के जला न हो।।
4. कहीँ पलकें ओस से
कहीँ पलकें ओस से धो गई,कहीँ दिन को फूलों से भर गई,
तेरी याद सोलह सिंगार है, जिसे छू दिया वो सँवर गई।
मैं सुनहरे पत्तों का पेड़ हूँ,मैं खिजां का हुस्नो वकार गई,
मेरे बाल चांदी के हो गये, मेरे सर पे धुप ठहर गई।
मेरा शायराना सा ख्वाब थी,जिसे लोग कहते है जिंदगी,
इन्हीं नाखुदाओं के खोफ से,वो चढ़ी नही में उतर गई।।
तेरी आरजू तेरी जुस्तजू में भटक रहा था गली गली,
मेरी दास्ताँ तेरी जुल्फ है, जो भिखर भिखर के सँवर गई।।
न गमों का मेरे हिसाब ले,न गमो का अपने हिसाब दे,
वो अजीब रात थी क्या कहें,जो गुजर गई सो गुजर गई।।
5. मेरे दिल की राख
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे,
ये चराग फिर भी चराग है कहीं तेरा हाथ जला न दे।
नये दौर के नय ख्वाब है नये मौसमों के गुलाब हैं,
ये मुहब्बतों के चराग है इन्हें नफरतों की हवा न दे।
जरा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर के तमाम शब,
तेरा नाम लिख्खा है रेत पर कोई लहर मिटा न दे।
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्मों जा के मजार पर,
न दिये जलें मेरी आँख में मुझे इतनी सख्त सजा न दे।
मेरे साथ चलने के शोक में बड़ी धुप सर पे उठाएगा,
तेरा नाक नक्शा है मोम सा कहीं गम की आग घुला न दे।
मैं गजल की शबनबी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूं,
मेरी सल्तनत मेरा फन रहे मुझे ताजो तख्त खुदा न दे।।
6. अजनबी पेड़ों के साये में
अजनबी पेडों के साये में मुहब्बत है बहुत,
घर से निकले तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत।
रात तारों से उलझ सकती है,ज़र्रों से नहीं,
रात को मालूम है जुगनू में हिम्मत है बहुत।
मुख़्तसर बाते करो,बेजा वजाहत मत करो,
इस नई दुनिया के बच्चों में जहानत है बहुत।
किसलिए हम दिल जलाएं,रात दिन मेहनत करें,
क्या जमाना है बुरे लोगों की इज्जत है बहुत।
सात सन्दूकों में भर कर दफन कर दो नफ़रतें,
आज इंसान को मुहब्बत की जरूरत है बहुत।
लोग जिम्मेदारियों की कैद से आजाद है,
शहर की मसरूफियत में घर से फुर्सत है बहुत।
धुप से कहना मुझे किरणों का कम्बल भेज दे,
गुबरतों का दौर है,जाड़े की शिदत है बहुत।
सच अदालत से सियासत तक बहुत मसरूफ है,
झूट बोलो,झूट में अब भी मुहब्बत है बहुत।।
7. रख दो
मैं घना अँधेरा हूँ,आज मेरी पलकों पर जुगनुओं के घर रख दो,
खुशबुओं से नहला दो इन सुलगती पलकों पर तितलीयों के पर रख दो।
मैं भी इक शजर ही हूँ जिसपे आज तक शायद फूल-फल नहीं आए,
नर्म-नर्म होठों से बंद होती पलकों पर तितलियों के पर रख दो।
चाहे कोई मोसम हो ,दिन गई बहारों में के फिर से लोट आयेगें,
एक फूल की पत्ती अपने होठं पर रखकर मेरे होंठ पर रख दो।
मेरा तन दरख्तों में इसलिए सुलगता है, सख्त धुप सहता है,
क्या पता तुम आ निकलो और मेरे कांधों पर थक के अपना सर रख दो।
रोज तार कटने से रात के समंदर में शहर डूब जाता है,
इसलिए जरूरी है कि इक दिया जलाकर तुम दिल की ताक पर रख दो।।
8. पता नहीं
सारे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं,
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे ये आज तक पता नहीं।
उसे पाक नजरों से चूमना भी इबादतों में शुमार है,
कोई फूल लाख करीब हो कभी मै ने चाहा उसको छुआ नहीं।
ये खुदा की देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है,
जिसे तू ने चाहा वो मिल गया जिसे मैं ने चाहा मिला नहीं।
इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अजीज हैं,
उन्हें मेरी कोई खबर नहीँ मुझे उन का कोई पता नहीं।।
9. खबर ना हो
वो बुझे घरों का चराग था ये कभी किसी को खबर न हो,
उसे ले गई हवा,ये कभी किसी को खबर न हो।
कई लोग जान से जायँगे मेंरे कातिलों को तलाश में,
मेरे कत्ल में मेरा हाथ था,ये कभी किसी को खबर न हो।
वो तमाम दुनिया के वास्ते जो मुहब्बतों की मिसाल था,
वहीं अपने घर में था बेवफा,ये कभी किसी को खबर न हो।
कहीँ मस्जिदों में शहादतें कहीँ मंदिरों में अदालतें,
यहां कौन करता है फैसला ये किसी को खबर न हो।
मुझे जानकर कोई अजनबी वो दिखा रहे है गली गली,
इसी शहर में मेरा घर भी था,ये कभी किसी को खबर न हो।
वो समझ के धुप के3 देवता मुझे आज पूजने आये है,
मैं चराग हूँ तेरी शाम का,ये कभी किसी को खबर न हो।।
10. कर दो
आग लहरा के चली है इसी आँचल कर दो,
तुम मुझे रात का जलता हुआ जंगल कर दो।
चाँद-सा मिसरा अकेला है मेरे कागज पर,
छत पे आ जाओ मेरा शेर मुकम्मल कर दो।
मैं तुम्हें दिल की सियासत का हुनर देता हूँ,
अब उसे धुप बना दो,मुझे बादल कर दो।
अपने आँगन जी उदासी से जरा बात करो,
नीम के सूखे हुए पेड़ को सन्दल कर दो।
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊंगा,
यूँ करो,जाने से पहले मुझे पागल कर दो।।
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